BHOPAL. ये दौर 1976-77 की है, जब देश में इमरजेंसी लगाई गई थी। उसी दौरान दिल्ली यूनिवर्सिटी के आर्कियालॉजी डिपार्टमेंट के छात्रों का एक दल अयोध्या के लिए रवाना हुआ। बता दें कि इस दल में केरल के कोझिकोड में जन्मा एक 24 वर्ष का एक मुस्लिम छात्र शामिल था, करिंगमन्नू कुझियिल मुहम्मद (केके मोहम्मद) दिखने में छोटे कद के थे, लेकिन 80 और 90 के दशक में रामलला से जुड़े वैज्ञानिक तथ्यों और साक्ष्यों का ऐसा पहाड़ खड़ा कर दिया, जिसे लांघना किसी झूठ के बस की बात नहीं।
केके मुहम्मद एक सच्चे देशभक्त
बता दें कि राम जन्मभूमि के पुरातत्विक तथ्यों को जुटाना केके मुहम्मद के लिए किसी संघर्ष से कम नहीं था। उन्होंने ये काम तब किया जब देश में कांग्रेस की सरकार थी। ऐसे में वे मुस्लिम होने के नाते सरकार के अलावा अपने ही मजहब के कट्टरपंथी लोगों की लानत-मलानत भी झेल रहे थे। लेकिन वे पीछे नहीं हटे। जब केके से पूछा गया कि वो राममंदिर के लिए ये सब क्यों कर रहे हैं? तो उन्होंने बड़े ही सौम्य तरीके से इसका जवाब दिया कि वे जो कुछ भी कर रहे थे, वो देश के हित को ध्यान में रखकर कर रहें थे। वह एक ऐसे देशभक्त थे जो कभी भी झूठ के आगे झुका नहीं और राष्ट्र के हित के आगे चाहे कितना भी बड़ा नुकसान सामने था फसे झेलने के लिए तैयार रहे।
रामजन्म भूमि की खोज यात्रा
केके मुहम्मद ने अपने जीवन यात्रा को मलयाली भाषा की एक किताब में लिखा है। जिसका हिंदी अनुवाद है 'मैं भारतीय हूं'। इस किताब में उन्होंने राम जन्मभूमि मंदिर की खोज यात्रा को बहुत ही विस्तार से लिखा है। वो लिखते हैं कि जब अयोध्या में राम जन्मभूमि के मालिकाना हक को लेकर 1990 में पहली बार पूरे देश में बहस जोर पकड़ रही थी तब मुझे 1976-77 वाले कॉलेज के दिन याद आ रहे थे, जब शिक्षा के लिए मुझे अयोध्या भेजा गया था। प्रो. बीबी लाल की अगुवाई में अयोध्या में खुदाई करने वाली आर्कियोलॉजिस्ट टीम में दिल्ली स्कूल ऑफ आर्कियोलॉजी के 12 छात्रों में एक मैं भी शामिल था। उस समय के उत्खनन में हमें मंदिर के स्तंभों के नीचे के भाग में ईंटों से बनाया हुआ आधार देखने को मिला। मुझे हैरानी हो रही थी कि अब तक किसी सरकार ने इसे कभी पूरी तरह खोदकर देखने की जरूरत क्यों नहीं समझी?
झूठ बोलने से अच्छा है, मौत को गले लगाना : केके
बता दें कि केके जब खुदाई के लिए वहां पहुंचे तब बाबरी मस्जिद की दीवारों में मंदिर के खंभे साफ-साफ दिखाई दे रहे थे। मंदिर के उन स्तंभों का निर्माण काले बसाल्ट पत्थरों से किया गया था। स्तंभ के निचले भाग में 11वीं और 12वीं सदी के मंदिरों में दिखने वाले पूर्ण कलश साफ दिखाई दे रहे थे। बता दें कि मंदिर कला में पूर्ण कलश आठ ऐश्वर्य चिन्हों में से एक माने जाते हैं।1976 में राम जन्म भूमि संबंधी पुरातात्विक पड़ताल करने वाले पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के प्रो. बीबी लाल ने उस दौरान ये बयान देकर सनसनी फैला दी थी कि अयोध्या में राम का अस्तित्व है। इस बयान के बाद उन्हें विभागीय कार्रवाई का सामना भी करना पड़ा था। लेकिन केके मोहम्मद अपने बयान पर कायम हुए थे और उन्होंने कहा था कि झूठ बोलने से अच्छा है कि मुझे मृत्यू मिल जाए।
अयोध्या खुदाई में लगे थे 137 मजदूर
मुहम्मद लिखते हैं कि अयोध्या में हुई खुदाई में कुल 137 मजदूर लगाए गए थे, जिनमें से 52 मुसलमान थे। बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के प्रतिनिधि के तौर पर सूरजभान मंडल, सुप्रिया वर्मा, जया मेनन आदि के अलावा इलाहाबाद हाईकोर्ट का एक मजिस्ट्रेट भी इस पूरी खुदाई की निगरानी कर रहा था। केके को सबसे ज्यादा हैरानी तब हुई जब इलाहाबाद हाईकोर्ट के मंदिर के पक्ष में सुनाए गए फैसले को वामपंथी इतिहासकार मानने को तैयार नहीं हुए। केके बताते हैं, खुदाई के दौरान जिन इतिहासकारों को शामिल किया गया था वो निष्पक्ष न होकर बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के प्रतिनिधि के तौर पर काम कर रहे थे। इनमें से सिर्फ 3-4 को ही आर्कियोलॉजी की तकनीकी बातें पता थीं। कई तो कभी अयोध्या गए भी नहीं थे, सबसे बड़ी बात कि ये लोग चाहते ही नहीं थे कि, अयोध्या का ये मसला कभी हल हो। शायद इसलिए क्योंकि वो चाहते थे कि भारत के हिंदू और मुसलमान हमेशा ऐसे ही आपस में उलझे रहें।
4 दिसंबर, 1990
डॉ. इरावतम महादेवन नेहरू के समय के आईएएस अधिकारी, एक मुद्राशास्त्री, अभिलेखशास्त्री, और संस्कृत और शास्त्रीय तमिल साहित्य और इतिहास के जानकार, इसके साथ ही हड़प्पा मुहरों पर अपने काम के लिए प्रसिद्ध थे और प्रतिष्टित अखबार दिनमणि के संपादक थे। वह 1990 के दशक तक वे संघ के साथ थे पर अब वो उसके विश्व दृष्टिकोण से दूर हो चुके थे। वह सैद्धांतिक तौर पर ऐतिहासिक गलतियों को आधुनिक समय में सुधारने के खिलाफ थे। 4 दिसंबर, 1990 को चेन्नई में एक व्याख्यान के दौरान डॉ. महादेवन ने प्रो. बीबी लाल की रिपोर्ट के आधार पर कहा कि मंदिर के अस्तित्व के पुरातात्विक प्रमाण से इनकार करने वाले वामपंथी इतिहासकारों को बीबी लाल की रिपोर्ट को देखना चाहिए। लाल ने अपनी रिपोर्ट में एक खास अभिलेख के साक्ष्य का खुलासा किया था। इसके बाद उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा कि यदि इतिहासकारों को अभी भी मस्जिद के नीचे मंदिर के अस्तित्व पर संदेह है तो आगे की खुदाई करके इस तरह के संदेह को दूर किया जा सकता है।
केके मुहम्मद ने इंडियन एक्सप्रेस को लिखा था पत्र
डॉ. महादेवन के बयान और उनके आर्टिकल को पढ़कर केके मुहम्मद से रहा नहीं गया। उस समय वे मद्रास में कार्यरत थे। चूंकि मुहम्मद बीबी लाल की उस टीम का हिस्सा थे जिन्होंने अयोध्या में खुदाई की थी इसलिए वे विवादित बाबरी ढांचे के नीचे खंभों वाली संरचना की खोज के गवाह भी थे, जिसका जिक्र बीबी लाल ने अपनी रिपोर्ट में किया था। केके मुहम्मद ने इंडियन एक्सप्रेस को एक पत्र लिख डाला कि वास्तव में 'बाबरी' ढांचे के नीचे एक गैर-इस्लामिक हिंदू संरचना के पुरातात्विक प्रमाण मौजूद हैं। फिर क्या था, इस केके मुहम्मद के इस लेख के छपते ही कोहराम मच गया।
केके मुहम्मद ने गीता के श्लोक के रूप में दिया था उत्तर
सामाजिक विज्ञान शोध संस्थानों पर पकड़ रखने वाले मार्क्सवादी इतिहासकारों में प्रमुख इरफान हबीब गुस्से में थे। लेकिन वे और कुछ नहीं कर सके। पत्र के प्रकाशन के तुरंत बाद चेन्नई में रेशम मार्ग पर यूनेस्को द्वारा प्रायोजित सेमिनार के दौरान एएसआई के महानिदेशक एमसी जोशी ने भारत सरकार के संस्कृति विभाग के संयुक्त सचिव आरसी त्रिपाठी की उपस्थिति में मुहम्मद से पूछताछ की. डॉ. जोशी ने मुहम्मद से पूछा कि एक सरकारी कर्मचारी के रूप में वह बिना पूर्व अनुमति के इस तरह का सार्वजनिक बयान कैसे दे सकते हैं। उन्होंने संभावित जांच और निलंबन की चेतावनी दी। केके मुहम्मद ने शांति से गीता के श्लोक के रूप में अपना उत्तर दिया, लोकसमग्रमेवपि संपास्यं कर्तुमर्हसि। केके मुहम्मद ने आगे मुस्कुराते हुए कहा - भयानक फल देने वाले पराये धर्म में जीने से, निज धर्म में रहकर ही मरना बेहतर है। सौभाग्य से बात निलंबन पर ही खत्म हुई और सजा के तौर पर उन्हें गोवा स्थानांतरित कर दिया गया।
2012 में मिला था केके को पद्मश्री सम्मान
राम मंदिर की ऐतिहासिक सच्चाई को स्थापित करने वाले केके मुहम्मद ने आगे चलकर कई बड़े काम किए हैं। चंबल के बीहड़ों में मौजूद बटेश्वर मंदिरों का जीर्णोद्धार करना भी उनका एक साहसिक मिशन था। इस काम को करने के लिए उन्हें डाकुओं से भी संवाद स्थापित करना पड़ा। उन्हें प्राचीन मंदिरों को सहेजने में अपनी पूरी जिंदगी लगा दी। फतेहपुर सीकरी में अकबर के इबादत खाना सहित कई अन्य प्रमुख खोजो में भी मुहम्मद शामिल रहे हैं। रिटायरमेंट के बाद 2012 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया, वे अभी 71 साल के हैं, लेकिन देश की सांस्कृतिक विरासत को सहेजने का जज्बा उनमें थमा नहीं हैं। उनके बकेट लिस्ट में कई ऐतिहासिक मंदिरों के अलावा इमारतों के सहजने की छटपटाहट दिखती है।