सिंहासन छत्तीसी : मंत्रीजी को क्यों लगा जोर का झटका, संघ ने सिखाया सरकार को सबक

छत्तीसगढ़ में इन दिनों भ्रष्टाचार का खुला खेल चल रहा है। उपर से नीचे तक सभी पैसा कमाने में लगे हुए हैं। संघ ने इस पर कड़ी नाराजगी जता दी है।

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Arun tiwari
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minister get big shock Sangh taught lesson to government

छत्तीसगढ़ में इन दिनों भ्रष्टाचार का खुला खेल चल रहा है। उपर से नीचे तक सभी पैसा कमाने में लगे हुए हैं। संघ ने इस पर कड़ी नाराजगी जता दी है। अपनी कुर्सी बचाने के लिए मंत्री अपने स्टॉफ की छंटनी करने लगे हैं। एक मंत्रीजी को तो बड़े जोर का झटका लगा है। वहीं कांग्रेस अपनी हार के सदमों से नहीं उबर पा रही है। अब अंदरखाने में बड़े स्तर पर बदलाव की बातें चलने लगी हैं। सभी एक दूसरे की टांग खींचने में लगे हुए हैं। प्रदेश प्रभारी तक ये शिकायतें पहुंच रही हैं। छत्तीसगढ़ की ऐसी ही अनसुनी खबरों के लिए पढ़िए द सूत्र का साप्ताहिक कॉलम सिंहासन छत्तीसी। 


जब पड़ी मंत्री को फटकार


एक मंत्रीजी को सीएम हाउस में बड़ी जोर की फटकार लगी है। फटकार इतनी तेज थी कि उसकी गूंज राजनीतिक गलियारों में खूब गूंज रही है। मंत्रीजी तबादलों का कारनामा कर तफरी करने निकल गए। जब मामला बढ़ा तो साहब ने मंत्री को तलब किया। लेकिन मंत्री होते तभी तो मिलते।

मंत्री तो घूमने निकले हुए थे। मंत्री तक खबर पहुंची तो वे दौड़ते दौड़ते साहब के दरबार में मत्था टेकने पहुंच गए। साहब उनको देखकर आग बबूला हो गए। साहब ने मंत्री को जो खरी खरी सुनाई कि जिसने सुनी वो भी सकपका गया। अब मंत्री कायदे में चल रहे हैं। यह वही मंत्री हैं जिनके नाम पर तबादले का बिल फटा था। 


ओएसडी बने वसूली भाई


इन दिनों में मंत्रियों के ओएसडी और पीए बेलगाम हो गए हैं। कई मंत्रियों के ओएसडी तो वसूली भाई बन गए हैं। एक मंत्री को अपने ओएसडी की इन हरकतों का पता चला तो उन्होंने उनको गेटआउट कर दिया। ओएसडी ऐसे विभाग से आते हैं जिसे भ्रष्टाचार का विभाग ही माना जाता है।

ओएसडी को कमाई के सारे पेंच पता थे। विभाग में कमाई करते करते उन्होंने मंत्रीजी से सेटिंग लगा ली और उनके विभाग में आ गए। यहां भी उनका वसूली का काम शुरु हो गया। एक दिन संगठन ने मंत्रीजी को बुलाकर कड़ी समझाइश दे दी। बस फिर क्या था मंत्री ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए ओएसडी को गेटआउट कर दिया। इससे पहले तीन मंत्री अपने स्टॉफ के लोगों को हटा चुके हैं। सूत्र तो यहां तक कह रहे हैं कि अभी तीन मंत्री के ओएसडी का भी नंबर लगा हुआ है। अब मंत्री स्टाफ मे पोस्टिंग संगठन और सीएम से नाम ओके होने के बाद होगी। 


मंत्रियों की छवि से नाराज संघ


 
सरकार की कमजोर परफार्मेंस और मंत्रियों के स्टॉफ में बने वसूली भाई की छवि से संघ नाराज है। संघ कार्यालय में एक एक कर मंत्रियों को तलब किया जा रहा है। अब तक आधा दर्जन मंत्रियों की संघ के दफ्तर में हाजिरी लग चुकी है। संघ ने दो टूक शब्दों में चेता दिया है कि यदि उनकी कार्यशैली नहीं बदली तो इसके परिणाम गंभीर होंगे। आने वाले समय में निकाय और पंचायत चुनाव हैं और मंत्री का स्टॉफ वसूली में लगा हुआ है।

काम कराने से लेकर तबादलों तक में पैसा चल रहा है। तबादलों के लेनदेन में खुलकर मंत्रियों के नाम आने लगे हैं। अगर जनता के काम  नहीं किए और कार्यकर्ताओं की सुनवाई नहीं हुई तो निकाय और पंचायत चुनाव हार जाएंगे। संघ ने साफ कहा कि उनके स्वयंसेवक ग्रास रुट पर काम कर रहे हैं और उनके जरिए ही ये शिकायतें संघ तक पहुंच रही हैं। 

 

कांग्रेस मुखिया पर लगा हार का टैग


कांग्रेस के मुखिया सबसे कमजोर अध्यक्ष माने जा रहे हैं। कांग्रेस के गलियारों में अब सुगबुगाहट शुरु हो गई है। चर्चा तो यहां तक चलने लगी है कि उनकी कोई मानता ही नहीं है। कांग्रेस के मुखिया पर हार का टैग भी लग गया है। उनके नेतृत्व में कांग्रेस विधानसभा चुनाव हार गई, लोकसभा चुनाव हार गई, वे खुद विधानसभा चुनाव हार गए, लोकसभा में अपनी टिकट ही नहीं बचा पाए, पहले टिकट कटी फिर जीती हुई सीट पर हार का मुंह देखना पड़ा।

कांग्रेस नेता कहते हैं कि अब रायपुर सीट पर उपचुनाव जीतना कांग्रेस बूते की बात नहीं। कहीं ऐसा न हो कि निकाय चुनावों में भी लुटिया डूब जाए। कांग्रेस के कुछ नेताओं ने यह सब बातें प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट से भी कहीं हैं कि आखिर ऐसे कैसे होगा कांग्रेस का उद्धार जबकि गुटबाजी में फंसी कांग्रेस की कार्यसमिति ही घोषित नहीं हो पा रही। 


कुलपति या इवेंट मैनेजर


इन दिनों रायपुर की एक सरकारी यूनिवर्सिटी सरकारी इवेंट का अड्डा बन गई है। और उसके कुलपति इवेंट मैनेजर। आए दिन वहां पर सरकारी कार्यक्रम होते रहते हैं। कभी मुख्यमंत्री तो कभी मंत्रियों की आमद से मंच सजा रहता है। यूनिवर्सिटी के कुलपति आव भगत में ही व्यस्त रहते हैं। छात्रों की पढ़ाई का जो भी हो लेकिन कुलपति की कुर्सी सलामत रहती है।

इन सबका असर यूनिवर्सिटी के मूल काम पर पड़ रहा है। यहां रिसर्च का काम प्रभावित हो रहा है। एक तरफ तो विश्व विद्यालय में प्रोफेसर्स की कमी है वहीं जो व्याख्याता हैं उनको रिसर्च की जगह इवेंट मैनेजमेंट करने में लगा दिया गया है। यहां पढ़ाई तो प्रभावित हो ही रही है साथ ही प्लेसमेंट में भी कमी आई है। छात्र ही कहने लगे हैं कि अब उनकी यूनिवर्सिटी इवेंट कंपनी में तब्दील हो गई है।

 

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