सिंहासन छत्तीसी : कांग्रेस के नेताओं में कैबिन पर हो रहा झगड़ा, गुटबाजी का मर्ज है कि जाता ही नहीं

कांग्रेस में दिग्गजों की मीटिंग हुई। मीटिंग थी कि रायपुर विधानसभा में उपचुनाव और आने वाले निकाय चुनाव कैसे लड़ें कि कुछ जीत हासिल हो जाए और कटी हुई नाक भी बच जाए। लेकिन ये कांग्रेस है जो किसी भी हार से सुधरती नहीं। 

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Arun tiwari
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सिंहासन
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इन दिनों सिंहासन को लेकर कांग्रेस और बीजेपी दोनों में घमासान मचा हुआ है। सीएम विष्णुदेव साय कैबिनेट विस्तार नहीं कर पा रहे वो भी तब जबकि दो मंत्री ही बनाना है। वहीं कांग्रेस में भी कुर्सी और कैबिन को लेकर झगड़ा चल रहा है।

कांग्रेस के सीनियर नेता बैठक में ही आपस में भिड़ गए। वहीं कांग्रेस नेताओं की अलमारी में अब दीनदयाल उपाध्याय की किताबों ने जगह बना ली है। आखिर माजरा क्या है। सियासत की ऐसी ही अनदेखी,अनसुनी खबरों के लिए पढ़ते रहिए द सूत्र का साप्ताहिक कॉलम सिंहासन छत्तीसी। 

मुझे भी चाहिए कैबिन 

हारने के बाद भी कांग्रेस के कुनबे में कलह का मर्ज है कि जाता ही नहीं। विधानसभा चुनाव हारे फिर लोकसभा हार गए लेकिन गुटबाजी नहीं जा रही। कांग्रेस में दिग्गजों की मीटिंग हुई। मीटिंग थी कि रायपुर विधानसभा में उपचुनाव और आने वाले निकाय चुनाव कैसे लड़ें कि कुछ जीत हासिल हो जाए और कटी हुई नाक भी बच जाए।

लेकिन ये कांग्रेस है जो किसी भी हार से सुधरती नहीं। बैठक का एजेंडा तो एक तरफ रहा और बात कैबिन पर आ गई। एक नेताजी के समर्थक बोले कि उनके नेता को पीसीसी में कैबिन मिलना चाहिए। दूसरे दिग्गज नेता को ये नागवार गुजरा। उन्होंने दो टूक कह दिया कि ऐसी कोई परंपरा नहीं है। सीनियर की लड़ाई में पीसीसी के मुखिया लाचारी से इधर उधर देखते रहे। आखिर किससे कहें कि चुप हो जाइए। 

दीनदयाल का अंत्योदय पढ़ रहे कांग्रेस नेता 

आजकल कांग्रेस नेता बीजेपी के पितृ पुरुषों की किताबें पढ़ रहे हैं। कांग्रेस के एक नेता की सेल्फ में पंडित दीनदयाल उपाध्याय और पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी की किताबें रखी हुई हैं।

जाहिर है महान पुरुषों की किताबें तो कोई भी पढ़ सकता है, लेकिन आश्चर्य इसलिए है क्योंकि कांग्रेस इनको महान माने तब न। या ये भी हो सकता है कि बीजेपी की काट के लिए उनके नेताओं की किताबों का अध्ययन किया जा रहा हो। जिस तरह से बीजेपी ने प्रदेश में विधानसभा और लोकसभा चुनाव जीता उससे कांग्रेस की चिंता और चिंतन दोनों लाजिमी है। हो सकता है इन किताबों से बीजेपी की कोई काट ही मिल जाए। 

मंत्रीपद है या लॉलीपॉप 

छत्तीसगढ़ में मंत्री पद लॉलीपॉप बन गया है। अब लोकसभा के बाद जो नगरीय निकाय चुनाव में परफॉर्म करेगा उसे मिलेगा मंत्रीपद का लॉलीपॉप। बीजेपी ने शायद यही फॉर्मूला अपना लिया है। केदार कश्यप को संसदीय कार्य का प्रभार देकर सीएम ने ये साफ कर दिया है कि कैबिनेट विस्तार अभी नहीं होगा।

अभी नहीं होगा मतलब निकाय चुनाव के बाद होगा। इससे बीजेपी को लगता है कि मंत्री पद के दावेदार अच्छा परफॉर्म करने की कोशिश करेंगे जिससे पार्टी को फायदा होगा। यदि अभी कैबिनेट विस्तार का जोखिम उठा लिया तो कहीं राजी नाराजी चुनाव पर बुरा असर न डाल दे। क्योंकि कुर्सी हैं दो और बैठने वाले हैं आधा दर्जन। तो सीएम को हिसाब किताब से चलना होगा। 

कका अभी जिंदा है 

मध्यप्रदेश में एक बात बहुत चर्चा में रही कि टाइगर अभी जिंदा है। पहले शिवराज सिंह ने कहा कि टाइगर अभी जिंदा है फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कह दिया कि टाइगर अभी जिंदा है। छत्तीसगढ़ में भी अब यही नारा लग रहा है।

बस टाइगर शब्द बदल गया है। पूर्व सीएम भूपेश बघेल को छत्तीसगढ़ का कका कहा जाता है। उनके बंगले पर पोस्टर लग गए हैं कि कका अभी जिंदा है। यानी मतलब साफ है कि जिस तरह से बीजेपी पिछले सरकार के घोटालों का बार बार जिक्र छेड़कर भूपेश को घेरने की कोशिश कर रही है, तो बघेल ने उनका यही जवाब दिया है। यानी वे डरने वाले नहीं है। खासतौर पर संसद सत्र में जिस तरह से महादेव सट्टा एप और शराब घोटाले का जिक्र आया उसके बाद यह पोस्टर लग गए।

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