आखिर क्यों ताव में हैं छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री। ऐसा क्या हुआ सूबे की सियासत में कि राजनीतिक गलियारों में ये कहा जाने लगा है कि साव के भाव घट गए हैं। वहीं एक मंत्रीजी ने जाते जाते 600 टीचरों के ट्रांसफर आदेश तैयार करवा दिया।
अब ये इन टीचरों की पसंद के लिए है या फिर परेशानी के लिए। ये तो साहब ही जानें। ऐसी तमाम खबरों के लिए पढ़िए द सूत्र का वीकली कॉलम सिंहासन छत्तीसी।
गुरु गुड़ और चेला शक्कर हो गया
प्रदेश के उपमुख्यमत्री बेहद गंभीर लेकिन सरल स्वभाव के माने जाते हैं। लेकिन आजकल उनका मूड थोड़ा सा उखड़ा नजर आ रहा है। यह हम नहीं कह रहे बल्कि उनके करीबी ही कह रहे हैं। उनके इलाके के नेता जो उनसे बहुत जूनियर हैं, वे केंद्रीय मंत्री बन गए।
यहां तक भी ठीक है लेकिन मूड खराब होने की वजह कुछ और है। दरअसल उपमुख्यमंत्री जिस जाति वर्ग से आते हैं उसी के केंद्रीय मंत्री हैं। दोनों का गांव एक है, जिला एक है और लोकसभा और विधानसभा सीट भी एक ही है।
पूरा मामला कद और पद का है। दोनों के पास एक ही विभाग है। एक केंद्र का मंत्री है तो दूसरा राज्य का। ऐसे में साहब को अपनी पूछ परख कम होने की चिंता सताने लगी है। आखिर गुरु गुड़ ही रह गए और चेला शक्कर हो गया।
600 को निपटा गए मंत्री जी
बृजमोहन अग्रवाल ने भारी मन से अपना मंत्री पद छोड़ दिया। मन भारी होगा भी क्योंकि सूबे में जिसकी तूती बोलती हो और जो सबसे सीनियर लीडर हो, उनको पीएम मोदी ने सांसद बना दिया, लेकिन मंत्रीपद नहीं दिया।
मोदी ने ऐसा क्यों किया वो तो वही जानें लेकिन उन्होंने यहां के मंत्रीजी का मन भारी कर दिया। मंत्रीपद छोड़ने से पहले उनमें गजब की सक्रियता दिखी। विभाग की बैठक ले ली और बड़े फैसले भी ले लिए। लेकिन राजनीतिक गलियारों में जो चर्चा है वो दूसरी है।
विधायकी छोड़ने से पहले साहब 600 टीचर के ट्रांसफर की फाइल पर साइन कर गए। लोग दबी जुबान में कह रहे हैं कि साहब ने जाते जाते 600 को निपटा दिया।
बृजमोहन की हां पर भारी संगठन की न
बृजमोहन अग्रवाल जब खुले आम कह चुके थे कि वे बिना विधायक रहे भी छह महीने मंत्री रह सकते हैं। जाहिर है उनकी मंशा रही होगी कि वे छह महीने और मंत्री रहें। लेकिन आखिर ऐसा क्या हुआ कि उनको मंत्री पद छोड़ना पड़ा। यही नहीं उसी दिन सीएम के जरिए इस्तीफा राज्यपाल तक पहुंच गया और मंजूर होकर अधिसूचना भी जारी हो गई। आखिर इतनी तेजी की जरुरत क्या थी। सूत्र कुछ और बताते हैं। दरअसल बृजमोहन मंत्री रहना चाहते थे लेकिन ये बात संगठन को मंजूर नहीं थी। आखिर मंत्रीजी पर संगठन भारी पड़ा और मंत्री की कुर्सी चली गई।
खतरे में विधायकी
हाल ही में लोकसभा चुनाव हारने वाले कांग्रेस विधायक की विधायकी भी खतरे में आ गई है। हाईकोर्ट ने भिलाई के कांग्रेस विधायक देवेंद्र यादव के निर्वाचन को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और विधानसभा में उम्मीदवार रहे प्रेमप्रकाश पांडेय ने यह याचिका दायर की थी।
दायर याचिका में पांडेय ने कहा कि यादव ने जन प्रतिनिधित्व कानून का उल्लंघन कर नामांकन में अपनी संपत्ति की जानकारी छिपाई है। साथ ही आपराधिक केस का भी अपने शपथपत्र में उल्लेख नहीं किया,इसलिये उनका निर्वाचन निरस्त किया जाये। अब देखते हैं कि विधायकी बचती है या जाती है।
एक अनार- सौ बीमार
बृजमोहन अग्रवाल के इस्तीफे के बाद खाली हुई रायपुर दक्षिण सीट पर बीजेपी में एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति पैदा हो गई है। दरअसल यह हर चुनाव में होता है, लेकिन इस बार माजरा कुछ और है। यह सीट बीजेपी की परंपरागत सीट मानी जाती है और आठ बार से बृजमोहन यहां पर विधायक रहे हैं। इसलिए जो भी यहां से खड़ा होगा उसको जीतने की चिंता नहीं है क्योंकि यहां जीत की गारंटी है।
समस्या यह है कि यहां पर टिकट का फैसला संगठन नहीं बृजमोहन अग्रवाल करेंगे। यही कारण है कि दावेदार संगठन की जगह बृजमोहन के दिये में तेल डालने में लगे हुए हैं।
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