भोपाल. टीटी नगर स्टेडियम में दूसरी नेशनल पिट्टू चैंपियनशिप (2nd senior National Pittu Championship) का शुभारंभ हुआ। ये प्रतियोगिता 3 दिनों तक चलेगी। चैंपियनशिप के पहले दिन मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) ने तमिलनाडु (Tamil Nadu) को हराया। प्रतियोगिता के पहले दिन कई रोमांचक मुकाबले हुए। दर्शकों को अपने बचपन के दिन याद आ गए, कि कैसे वे बचपन में पिट्टू खेला करते थे। 7 पत्थर बिखरते ही उन्हें फिर से जमाने की जद्दोजहद होती थी। पिट्टू फेडरेशन ऑफ इंडिया ने पिट्टू की दूसरी सीनियर राष्ट्रीय चैंपियनशिप आयोजित की है। इसमें 14 राज्यों के करीब 350 खिलाड़ी हिस्सा ले रहे हैं।
पिट्टू के कई नाम, फायदे भी अनेक: पिट्टू दो टीमों के बीच खेला जाने वाला खेल है। इस खेल को अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है। लागोरी, सतोलिया, सात पत्थर, डिकोरी, सतोदिया, लिंगोचा, ईझू, डब्बा काली जैसे नामों से भी पिट्टू को जाना जाता है। ये खेल हमारे शरीर को चुस्त-दुरुस्त रखता है। इसके साथ ही हमें कई बातें सिखाता है। पिट्टू से टीम स्प्रिट की भावना जागती है। पिट्टू जैसे खेल न सिर्फ हमें भारतीयता से जोड़ते हैं बल्कि शारीरिक रूप से भी मजबूत करते हैं। आपसी प्रेम और भाईचारा बढ़ाने में इन खेलों का बेहद महत्व है।
पिट्टू को बढ़ावा देने के लिए बनाया फेडरेशन: गेम्स का नाम सुनते ही हमारे मन में क्रिकेट, हॉकी, टेबल टेनिस या फिर मोबाइल गेम की तस्वीरें आती है। लेकिन क्या आपने कभी भारतीय पारंपरिक खेल पिट्टू, गिल्ली-डंडा, कंचे जैसे खेलों के बारे में सोचा है। ये खेल बदलते वक्त के साथ खत्म होने की कगार पर आ गए हैं। कई खेल गांव तक ही सिमटकर रह गए हैं। भारत के सबसे लोकप्रिय प्राचीन और पारंपरिक खेल पिट्टू को विलुप्त होने से बचाने के लिए पिट्टू फेडरेशन ऑफ इंडिया (Pittu Federation of India) का गठन किया गया। इस फेडरेशन का उद्देश्य पिट्टू को दोबारा लोकप्रिय बनाना है। फेडरेशन ग्रामीण से राष्ट्रीय स्तर तक प्रतियोगिताएं आयोजित करता है।