JAMNAGAR. क्रिकेटर रवींद्र जडेजा ( Cricketer Ravindra Jadeja) के पिता अनिरुद्ध सिंह जडेजा अपने बेट और बहू रीवाबा से इतने परेशान हो गए हैं। उन्हें अब पक्षतावा हो रहा है कि रवि को क्रिकेटर नहीं बनाया होता तो अच्छा रहता। वे रवि के व्यवहार में आए बदलाव के लिए रीवाबा को भी कम दोषी नहीं मानते हैं। उनका कहना है कि सबकुछ रवि की शादी के बाद हुआ है।
ये अनिरुद्ध सिंह जडेजा हैं, जाने-माने क्रिकेटर रवींद्र जडेजा के पिता। उन्होंने रवींद्र जडेजा और बहू रीवाबा के साथ अपने रिश्तों पर एक मीडिया से खुलकर बात की। वे प्यार से रवींद्र को रवि कहते हैं।
‘मैं आपको सच बताऊं, मेरा रवि या उसकी पत्नी रीवाबा से किसी तरह का संबंध नहीं है। हम उन्हें नहीं बुलाते और वे हमें नहीं बुलाते। रवि की शादी के दो-तीन महीने बाद ही विवाद होने लगा था। फिलहाल मैं जामनगर में अकेला रहता हूं, रवींद्र अलग रहता है। पता नहीं पत्नी ने उस पर क्या जादू कर दिया है। मेरा तो बेटा है, दिल जलकर राख हो जाता है। उसकी शादी ना की होती तो अच्छा होता। उसे क्रिकेटर ना बनाता तो अच्छा होता। हम इस हाल में नहीं होते।'
... तब मीडिया से परेशानी शेयर की जडेजा के पिता ने
बीती 14 जनवरी को मकर सक्रांति के मौके पर रीवाबा ने रवींद्र जडेजा के साथ पतंग उड़ाते हुए फोटो पोस्ट की थीं। इसके बाद अफवाह उड़ी कि रीवाबा प्रेग्नेंट हैं।
क्या रवींद्र के घर में खुशियां आने वाली हैं, इस सिलसिले में एक न्यूज पेपर ने उनके पिता अनिरुद्ध सिंह से फोन पर बात की। हालांकि, इस चर्चा में अनिरुद्ध सिंह ने कई चौंकाने वाले खुलासे किए।
अनिरुद्ध सिंह जामनगर के एक फ्लैट में अकेले रहते हैं। उन्होंने परिवार में चल रही कड़वाहट पर खुलकर बात की। बातचीत के अंश...
रवींद्र की शादी के तीन महीने बाद से ही घर में कलह
अनिरुद्ध सिंह जडेजा बताते हैं, 'मैं आपको सच बता रहा हूं। शादी के तीन महीने बाद ही रीवाबा कहने लगीं कि सब कुछ मेरा होना चाहिए, मेरे नाम पर होना चाहिए। उन्होंने परिवार को परेशान करना शुरू कर दिया। वे परिवार नहीं चाहतीं, अकेले आजादी से रहना चाहती थीं। चलो मान लिया कि मैं बुरा हूं, रवींद्र की बहन नयनाबा भी खराब है, लेकिन परिवार में 50 लोग हैं, क्या सब बुरे हैं। ये बस उनकी नफरत है।'
रवि की जिंदगी में सास का दखल ज्यादा, 5 साल से पोती का चेहरा नहीं देखा
अनिरुद्ध सिंह जडेजा कहते हैं, 'मैं कुछ भी नहीं छिपा रहा हूं। हमारे बीच कोई रिश्ता नहीं है। 5 साल से मैंने उनकी बेटी का चेहरा भी नहीं देखा है। रीवाबा के माता-पिता, खासतौर से रवींद्र की सास ही सब कुछ संभालती हैं। उनका दखल बहुत ज्यादा है।'
20 हजार रुपए पेंशन, उसी से घर खर्च चल रहा
अनिरुद्ध सिंह बताते हैं, 'मेरे पास गांव में जमीन है। पत्नी की 20 हजार रुपए पेंशन आती है। इसी से अपना खर्च चलाता हूं। 2 BHK फ्लैट में अकेला रहता हूं। दिन में दो बार मेड से खाना बनवाता हूं। अच्छे से रहता हूं। जिंदगी अपने तरीके से जीता हूं।'
शील्ड और जर्सी सजाकर रखीं, इससे यादें सामने रहती हैं
अनिरुद्ध सिंह के मुताबिक, ‘आज भी मेरे फ्लैट में रवींद्र के लिए अलग कमरा है। पहले वो इसी कमरे में रहता था। इसमें रवींद्र की शील्ड और जर्सी सजाकर रखी हैं। इससे उसकी सारी यादें आंखों के सामने रहती हैं। अब भी रवि मैच खेलता है, तो नजर उसी पर रहती है।’
मजदूरी करके रवि को क्रिकेटर बनाया, बहन ने मां की तरह पाला
रवींद्र जडेजा के बचपन को याद करते हुए अनिरुद्ध सिंह कहते हैं, 'हमने रवींद्र को क्रिकेटर बनाने के लिए बहुत मेहनत की। मैंने चौकीदारी का काम किया। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। मुझसे ज्यादा नयनाबा ने मेहनत की।'
रीवाबा के परिवार को सिर्फ पैसे से मतलब
रवींद्र की पत्नी रीवाबा के परिवार पर आरोप लगाते हुए अनिरुद्ध सिंह कहते हैं, 'रीवाबा अपने माता-पिता की इकलौती बेटी हैं। उन लोगों को रवींद्र की जरूरत नहीं है, उन्हें सिर्फ पैसों से मतलब है। हमें इसकी जरूरत भी नहीं है। मेरे पास खेत और पेंशन है। होटल ( जड्डूस ) भी हमारा है, जिसका मैनेजमेंट बेटी नयनाबा करती है।'
रीवाबा ने होटल अपने नाम करवाना चाहा, इसी से रिश्ते हुए खराब
अनिरुद्ध सिंह बताते हैं, 'रवींद्र की शादी को एक महीना भी नहीं हुआ था कि होटल के मालिकाना हक को लेकर विवाद शुरू हो गया। रीवाबा ने रवींद्र से कहा था कि होटल मेरे नाम कर दो। इस बात पर उनके बीच झगड़ा भी हुआ। फिर रवींद्र ने नयनाबा को फोन किया और होटल रीवाबा के नाम करने के लिए कहा। नयनाबा ने भी सोचा कि रवींद्र सब संभाल लेगा, हमें क्या करना है। उसने कहा, आ जाओ और साइन करा लो।'
अनिरुद्ध सिंह आगे कहते हैं, 'ये बात गलत है कि रवींद्र के ससुराल के लोग बिजनेसमैन हैं। रवींद्र ने ऑडी कार ऑर्डर की थी, उसका चेक हमारे नाम पर है। अगर वे बड़े बिजनेसमैन होते तो उसकी सास काम नहीं करती। उनकी नौकरी से घर चल रहा है। आज भी वे रेलवे क्वार्टर में रहते हैं। हाल ही में रवींद्र के पैसों से 2 करोड़ का बंगला खरीदा है।'
रवींद्र मुझे कॉल नहीं करता... दुख में रोता हूं, रक्षाबंधन पर बहन रोती है
'मैं रवींद्र को फोन नहीं करता और मुझे इसकी जरूरत भी नहीं है। मैं उसका पिता हूं, वो मेरा पिता नहीं है। अगर मैं उसे कॉल नहीं करता तो वो भी मुझे कॉल नहीं करता। मैं इस दुख में रोता हूं। रक्षाबंधन के दिन उसकी बहन रोती है।' ये बात बोलते हुए अनिरुद्ध सिंह का गला भर जाता है। वे आगे कुछ नहीं बोल पाते।
मेरा मन जानता है हमने वे दिन कैसे बिताए
रवींद्र जडेजा के पिता अनिरुद्ध सिंह बेटे के साथ रिश्ते को लेकर इतने परेशान क्यों हैं, ये जानने के लिए इस परिवार का अतीत जानना जरूरी है। ज्यादातर लोग जानते हैं कि क्रिकेटर रवींद्र जडेजा का बचपन काफी मुश्किलों में बीता। उन्हें क्रिकेटर बनाने के लिए परिवार ने बहुत मेहनत की।
अनिरुद्ध सिंह इस बारे में बताते हैं, 'रवींद्र सिर्फ 17 साल के थे और उनकी मां लताबा की एक हादसे में मौत हो गई थी। रवींद्र की मां तीन बच्चों को मेरी गोद में छोड़ गईं। आप समझ सकते हैं कि ये मेरे लिए कितना मुश्किल था। मेरे पास नौकरी नहीं थी। पूरा परिवार बिना सहारे के रह गया। मेरा मन जानता है कि हमने वे दिन कैसे बिताए।'
मैं ही तीनों बच्चों की मां और पिता दोनों था
'रवींद्र की मां नहीं थी, इसलिए मैं ही तीनों बच्चों की मां और पिता दोनों था। मैंने कुछ भी बिगड़ने नहीं दिया। अगर उन्हें कोई समस्या होती थी, तो हम बिना झिझक बात करते थे और उसे दूर करते थे। मैं उनसे कोई भी बात नहीं छिपा सकता था और उनके लिए भी ऐसा ही था।'
रवींद्र जडेजा को आर्मी अफसर बनाना था
अनिरुद्ध सिंह बताते हैं, 'मेरी इच्छा रवींद्र को आर्मी ऑफिसर बनाने की थी। इसके लिए मैंने उसे आर्मी ट्यूशन स्कूल में 6 महीने तक ट्रेनिंग दिलाई। ट्यूशन की आखिरी परीक्षा में वो पास भी हो गया। रवींद्र भी आर्मी ऑफिसर ही बनता, लेकिन उसकी किस्मत उसे कहीं और ले जाना चाहती थी।’
'सैनिक स्कूल में एडमिशन लेने से एक दिन पहले उसने तय कर लिया कि उसे क्रिकेटर बनना है। हमने घर पर इस बारे में बात की। फिर फैसला लिया कि वो क्रिकेटर ही बनेगा। उसकी मां का सपना था कि रवि एक दिन भारतीय टीम में खेले।'
'रवींद्र ने भी बचपन से इसके लिए मेहनत की थी। उन्होंने छोटी उम्र में ही मां से कहा था कि मैं एक दिन भारत के लिए क्रिकेट खेलूंगा। आज हम सभी खुश हैं कि उन्होंने अपना वादा पूरा किया।'