संजय गुप्ता, INDORE. बीजेपी की पांचवीं सूची जारी होने के साथ ही इंदौर की सभी नौ सीटों के प्रत्याशी सामने आ गए हैं। इंदौर विधानसभा तीन से बीजेपी ने प्रत्याशी बदलने का क्रम लगातार बरकरार रखते हुए फिर प्रत्याशी बदल दिया है। मौजूदा विधायक आकाश विजयवर्गीय का टिकट काटकर गोलू उर्फ राकेश शुक्ला नए प्रत्याशी हुए हैं। वहीं इंदौर पांच से चार बार के विधायक महेंद्र हार्डिया को पांचवी बार मैदान में उतारा गया है और महू से फिर लगातार दूसरी बार ऊषा ठाकुर ही प्रत्याशी है।
गोलु शुक्ला क्यों बने प्रत्याशी
इंदौर विधानसभा तीन से उषा ठाकुर को पार्टी ने प्रस्ताव दिया था लेकिन विजयवर्गीय गुट के साथ नहीं बनने के चलते वह यहां से चुनाव की इच्छुक नहीं थी। वहीं मिलिंद महाजन का नाम चला लेकिन मराठी समाज के अलावा मैदानी पकड़ नहीं थी। गौरव रणदिवे का नाम विधानसभा पांच के लिए सर्वे में था। इसलिए यहां विचार नहीं हुआ। वहीं सीएम शिवराज सिंह चौहान की गुडलिस्ट में हैं और विजयवर्गीय को भी उनके नाम पर आपत्ति नहीं थी। यहां चुनाव जीतने के लिए विजयवर्गीय गुट को साधना बहुत जरूरी है, क्योंकि आकाश के विधायक रहने के चलते सभी कार्यकर्ता इस गुट के काफी करीब है। इसलिए आखिर में युवा चेहरे नाम पर गोलू पर मुहर लग गई। गोलु का यह पहला चुनाव है, वह अभी आईडीए में उपाध्यक्ष होकर राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त है। युवा मोर्चा में भी रह चुके हैं।
महेंद्र हार्डिया इसलिए बने प्रत्याशी
इस विधानसभा से बीजेपी के नगराध्यक्ष गौरव रणदिवे का नाम आगे था, अभी तक बीजेपी नगराध्यक्षों को टिकट देती आई है चाहे वह सुदर्शन गुप्ता, रमेश मेंदोला हो या गोपी नेमा। लेकिन इस बार परंपरा बदल गई क्योंकि जैसा द सूत्र ने पहले खुलासा किया था प्रदेश के दो बड़े नेता रणदिवे के खिलाफ था। इसलिए टिकट कटा, फिर विकल्प की बात आई तो बाकी विकल्प चाहे वह नानूराम कुमावत का हो या फिर संघ के अशोक अधिकारी के। बहुत कमजोर पाए गए। हार्डिया के नाम पर सभी सहमत इसलिए भी हुए थे कि यह उनका आखरी चुनाव होगा ऐसे में प्रदेश के कई नेता आगे की सोच रहे हैं तब वह अपने व्यक्ति को यहां ला सकेंगे। हार्डिया किसी गुटबाजी में भी नहीं है, सीएम के करीबी होने के साथ ही वह किसी अन्य के लेने-देने में नहीं है। इसलिए गोलू की तरह ही हार्डिया भी सभी के लिए मुफीद हुए। हार्डिया साल 2003, 2008, 2013 औऱ् 2018 लगातार चुनाव जीत चुके हैं।
उषा ठाकुर इसलिए बनी प्रत्याशी
उषा ठाकुर के साथ विकल्प के तौर पर स्थानीय मांग के रूप में राज्यसभा सांसद कविता पाटीदार थी। लेकिन वह भी इतना मजूबत चेहरा पार्टी के लिए नहीं थी, उन्हें भी आखिर में कार्यकर्ताओं के भरोसे ही रहना पड़ता। वहीं ठाकुर वोट बैंक भी पार्टी की नजर में था, वहीं सनातनी धर्म को भी पार्टी मुद्दा लगातार बना रही है। इन सभी के तौर पर ऊषा ही सभी की पसंद बनी। बाकी स्थानीय दावेदार चाहे दिनेश कंचन चौहान हो या फिर ठाकुर, लोकेश यह सभी इतने मजबूत चेहरे नहीं थे कि इनके नाम पर चुनाव जीता जा सके। आखिर में पार्टी के पास उषा और कविता ही बचे थे औऱ् पार्टी ने ठाकुर लॉबी, सनातनी धर्म इन सभी को देखते हुए उन्हें टिकट दे दिया। उषा साल 2003 में विधानसभा एक से जीती, 2008 में टिकट कटा, 2013 में विधानसभा 3 से जीती, 2018 में महू से जीती, अब फिर महू से उतरेंगी।