यूं मध्यप्रदेश में विधानसभा के लिए औपचारिक चुनाव प्रचार की शुरूआत अभी होनी है, लेकिन इसके अनौपचारिक मंगलाचरण में दोनों मुख्य सियासी पार्टियां क दूसरे को ज्यादा भ्रष्ट और अपनी कमीज उजली दिखाने की कोशिश में लग गई हैं। यह एक ऐसी बीन है, जो आस्तीन के सांप बजा रहे हैं। इसी मकसद से राजधानी भोपाल सहित प्रदेश में हाल में पोस्टर वॉर दिखाई दिया। जिसमें गुमनाम लोगों ने पहले कमलनाथ को ‘करप्टनाथ’ बताने वाले पोस्टर लगाए और शाम होते-होते होते शिवराज सरकार को भहाभ्रष्ट बताते हुए उसके भ्रष्ट कारनामों की माला का जाप सुनाई दिया। दिलचस्प बात यह है कि इस तरह के चरित्र हनन वाले पोस्टरों को लेकर प्रशासन ने कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की। इससे आम पब्लिक में संदेश यही गया कि कम से कम भ्रष्टाचार के मामले में सब एक हैं। बीजेपी ने खुद कमलनाथ को भ्रष्ट बताया तो जवाबी कार्रवाई में कांग्रेस ने कमल निशान लेकर चलने वाले शिवराज को महाभ्रष्ट बता दिया। लेकिन वर्तमान में भ्रष्टाचार को लेकर होने वाले मिसाइल हमलों में ज्यादा नुकसान बीजेपी को होने की संभावना है, क्योंकि वह सत्ता में है। सवाल सिर्फ इतना है कि कमल का भ्रष्टाचार भारी है या कमलनाथ का?
बीजेपी ने पल्ला झाड़ा
बीते 23 जून की सुबह जब कमलनाथ को करप्टनाथ बताने वाले पोस्टर भोपाल की दीवारों पर नमूदार हुए तो स्वाभाविक रूप से शक की निगाहें बीजेपी की तरफ उठीं। लेकिन बीजेपी ने यह कहकर पल्ला झाड़ा कि कांग्रेस में कई आस्तीन के सांप हैं। शायद उन्होंने ही ऐसा किया होगा। इन पोस्टरों से बिफरी कांग्रेस ने पुलिस में शिकायत भी दी। लेकिन आगे क्या हुआ, पता नहीं चला। उधर शाम होते होते यही ‘आस्तीन के सांप’ बीजेपी के खेमे में भी फुफकारते दिखलाई पड़े, जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्रित्व में राज्य के बड़े भ्रष्टाचार के मामलों की पूरी फेहरिस्त ही दीवारों पर नमूदार होने लगी। अब प्रदेश में भ्रष्टाचार की इतनी डिटेल जानकारी कांग्रेस को किस आस्तीन के सांप ने दी, यह भाजपा खोजने में जुटी है। हालांकि सार्वजनिक रूप से प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा ने यह कहकर खारिज किया कि वह मुख्यमंत्री पर अनर्गल आरोप लगा रही है।
नहीं कराई शिवराज सरकार ने जांच
वैसे बतौर मुख्यमंत्री कमलनाथ के मात्र सवा साल के कार्यकाल में जो भी भ्रष्टाचार के मामले हुए, उस पर शिवराज सरकार ने बीते तीन साल में कोई भी कार्रवाई नहीं की। ज्यादातर मामलों में एफआईआर तक नहीं हुई। उल्टे प्रदेश के आला नेताओं के निजी मधुर सम्बन्धों की चर्चा ज्यादा हुई। ऐसे में कमलनाथ के खिलाफ भ्रष्टाचार का पोस्टर अटैक रस्मअदायगी से भी ज्यादा शिवराज सरकार पर लग रहे भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों का बचाव में काउंटर अटैक ज्यादा लगा। यही भाजपा की परेशानी भी है कि विकास के बड़े-बड़े दावों पर रोजाना खुलने वाले करप्शन के मामले कहीं भारी न पड़ जाएं। कारम बांध फूटने, किसान सम्मान निधि में भ्रष्टाचार, कर्मचारियों की पीएफ राशि का गबन, राज्य के प्रमुख प्रशासनिक भवन सतपुड़ा में आग, करोड़पति होते भ्रष्ट कर्मचारियों अधिकारियों से लेकर महाकाल लोक तक में भ्रष्टाचार के सवालों पर पार्टी को ठीक से जवाब देते नहीं बन रहा है। बहुचर्चित व्यापमं घोटाले, पोषण आहार घोटाले और ई-टेंडर घोटाले में आज तक प्रभावी कार्रवाई नहीं हुई। दूसरी तरफ मंत्रियों से लेकर कार्यकर्ताओं तक के आपसी झगड़े अब सड़कों पर आने लगे हैं। मंत्री सीएम की मौजूदगी में खुलेआम लड़ रहे हैं। एक वरिष्ठ मंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत की लोकायु्क्त जांच शुरू हो चुकी है, लेकिन किसी में हिम्मत नहीं कि उस मंत्री से इस्तीफा मांग ले।
भाजपा अपना हाई फाई चुनाव अभियान आगे बढ़ा रही
इन तमाम बातों से बेपरवाह भाजपा अपना हाई फाई चुनाव अभियान आगे बढ़ा रही है। दूसरी तरफ प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व के साथ साथ जमीनी मु्द्दों पर फोकस कर रही है। हालांकि उसके खेमे में टिकट वितरण को लेकर अभी से घमासान शुरू हो गया है। इसी के मद्देनजर पार्टी के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह को कहना पड़ा कि टिकट कमलनाथ के फॉर्मूले के हिसाब से ही बंटेंगे। टिकट के लिए घमासान तो बीजेपी में भी होना तय है। अगर यह घमासान कर्नाटक की तर्ज पर हुआ तो भाजपा के पांचवी बार सत्ता में लौटने की राह मुश्किल कर सकता है। दूसरी तरफ जनता अभी मौन है। मतदाता दोनों पार्टियों को देख समझ रहा है। कुल मिलाकर विधानसभा चुनाव के मद्देनजर मुकाबला टफ है। ऊंट कब करवट बदल ले, कहना मुश्किल है।