संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर में ब्यूरोक्रेसी V/S नेताओं के बीच चल रहा संघर्ष सतह पर आता जा रहा है। सीएम शिवराज सिंह चौहान से शनिवार 3 जून दोपहर में जब बीजेपी के नगर पदाधिकारी, मंडल अध्यक्ष एयरपोर्ट लाउंज में मिले तो उन्होंने अधिकारियों की मनमानियों के किस्से सुना डाले। नगर निगम के भारी-भरकम संपत्ति कर, ट्रैफिक पुलिस पर छोटी-छोटी बातों पर चालान बनाना भले ही ट्रैफिक नहीं सुधर रहा हो, बिजली कंपनी से बिजली के आ रहे भारी बिल के नाम पर लूट को लेकर जमकर खरी-खरी बातें कही गई। इस पर सीएम ने अधिकारियों को बुलाकर इस मामले में ध्यान रखने के लिए तो कहा है, लेकिन कितना ध्यान रखेंगे यह अलग बात है। इस मामले में चौंकाने वाली बात यही है कि छोटे पदाधिकारी तो जमकर बोल गए, लेकिन इसी दौरान मौजूद बड़े नेताओं ने चुप्पी ही साधे रखी।
खुद सीएम का भी नेताओं से ज्यादा ब्यूरोक्रेसी पर अधिक भरोसा
नेताओं ने भले ही सीएम को इसकी शिकायत की है लेकिन खुद सीएम का भी भरोसा अधिकारियों पर अधिक रहा है, यह बात खुद बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने अपने एक इंटरव्यू में ही कह दी थी। नगर निगम चुनाव के बाद उन्होंने कहा था कि सीएम जिस तरह अधिकारियों पर भरोसा करते हैं, यदि वह कार्यकर्ताओं पर करें तो अधिक बेहतर होगा। इसी तरह एक मंच पर विजयवर्गीय ने मीडिया को भी नसीहत देते हुए कहा था कि अधिकारियों की मालिश करना बंद कर दीजिए, अधिकारियों में दम होता तो यहां से दूसरे शहर जाने पर वहां भी नंबर 1 बना देते। विजयवर्गीय ने यह बात बीजेपी की कई कोर कमेटी की बैठकों में भी कही है कि अधिकारी नहीं सुनते हैं।
मेयर को बोलना पड़ रहा है डंडा लेकर चलना पड़ेगा
इस मामले में नगर निगम की हालत सबसे ज्यादा खराब है। महापौर और पार्षदों की बैठक में तो जमकर अधिकारियों के खिलाफ गुस्सा फूट चुका है और महापौर यहां तक कह चुके कि लाल फीताशाही नहीं चलेगी। साथ ही सफाई निरीक्षण में यहां तक बोल गए कि प्रेम की भाषा नहीं समझते हो अब डंडा लेकर चलना पड़ेगा। एमआईसी सदस्य अभिषेक बबलू शर्मा भी सूर्यदेव नगर में मंदिर टूटने पर कह चुके कि अधिकारियों को जहां बताओ वहां तो अवैध निर्माण तोड़ते नहीं है, बाकी जगह मनमाने ढंग से काम करते हैं।
बड़े नेता को केवल अपने काम से मतलब, छोटे बैचेन
समस्या सबसे बडी यह है कि बीजेपी के शहर के शीर्ष नेताओं ने अपने काम से मतलब रख लिया है, मंत्री तुलसी सिलावट की प्राथमिकता खुद की विधानसभा सांवेर है, तो सांसद शंकर लालवानी की कार्यशैली भी अधिकारियों को नाराज नहीं करने वाली ही है, वहीं मंत्री ऊषा ठाकुर का भी अधिकारियों पर कोई कमांड नहीं है, वहीं कोई विधायक मुश्किल तो अपनी विधानसभा में अधिकारियों से कोई काम करा पाते हैं। ऐसे में बीजेपी के छोटे पदाधिकारियों की हालत खराब है औऱ् कोई उन्हें सुनने को तैयार नहीं है, इसके चलते उनके बूथ और प्रभाव वाले क्षेत्रों में जनता उनसे नाराज हो रही है, जिसका सीधे असर आने वाले चुनाव में दिखेगा।