BHOPAL. मध्यप्रदेश में कांग्रेस की बुरी गत होने और छत्तीसगढ़-राजस्थान में कुर्सी गंवाने के बाद अब तीनों प्रदेशों के बड़े नेताओं का क्या होगा? सवाल सुर्खियों में है। अनुमान लगाया जा रहा है कि कांग्रेस कमलनाथ, अशोक गहलोत और भूपेश बघेल को क्या जिम्मेदारी देगी? और इससे पहले इसी तरह के हालात में कांग्रेस अपने दिग्गजों का किस तरह से इस्तेमाल करती रही है। यहां हम पुराने कुछ उदाहरणों के साथ जानने का प्रयास कर रहे हैं कांग्रेस अब कमलनाथ, गहलोत बौर बघेल को क्या- क्या जिम्मेदारी दे सकती है।
इन नेताओं के बारे में ये फैसले क्या इशारा करते हैं
मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर जीतू पटवारी को कमान सौंपी है। छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को नेशनल अलायंस कमेटी में शामिल किया है। ये फैसले क्या इशारा कर रहे हैं?
यहां हम जानेंगे कि कमलनाथ, गहलोत और भूपेश का आगे क्या होगा? हारे हुए बड़े नेताओं के साथ कांग्रेस क्या सलूक करती आई है? कुछ उदाहरणों से समझने का प्रयास करते हैं-
तीन राज्यों के 4 उदाहरण, जहां जीतने और हारने वाले नेताओं के साथ कांग्रेस ने क्या फैसले लिए…
उदाहरण-1: मध्यप्रदेश में अर्जुन सिंह को सीएम की जगह राज्यपाल बना दिया
1985 की बात है। जब अर्जुन सिंह के सीएम रहते कांग्रेस ने जबरदस्त वापसी की थी। अर्जुन सिंह ने मंत्रिमंडल की लिस्ट बना ली थी और उसे दिखाने के लिए प्रधानमंत्री राजीव गांधी के पास गए थे। राजीव ने उन्हें सीएम बनाने की बजाय पंजाब का राज्यपाल बना दिया था।
ये वो समय था जब मप्र में अुर्जन सिंह की ताकत गांधी-नेहरू परिवार से ज्यादा हो चली थी। अर्जुन सिंह की ताकत कम करने के लिए उन्हें राज्यपाल बनाया गया था। 13 मार्च 1985 को अर्जुन सिंह ने पंजाब के राज्यपाल की शपथ ली। नवंबर 1985 में राजीव गांधी ने उन्हें केंद्र में वाणिज्य मंत्री बना दिया था। आठ महीने बाद ही अर्जुन सिंह ने वापसी की थी। अर्जुन सिंह को गांधी परिवार का वफादार माना जाता था। यही कारण था कि जब उन्हें पंजाब का राज्यपाल बनाया गया तो उन्होंने बिना सवाल किए हां, कह दिया था। अर्जुन सिंह की जगह मोतीलाल वोरा को एमपी का सीएम बनाया गया था।
उदाहरण 2: दिग्विजय सिंह बुरी तरह हारे, लेकिन महासचिव बना दिया
2003 मध्यप्रदेश में कांग्रेस राज का खत्म हो चुका था। दस साल तक सीएम रहने वाले दिग्विजय सिंह ने अगले दस साल तक चुनाव न लड़ने का ऐलान किया था। चार महीने बाद 2004 में लोकसभा चुनाव होने थे। दिग्विजय के भाई लक्ष्मण सिंह ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया था और वे राजगढ़ से बीजेपी के उम्मीदवार थे।
दिग्विजय ने कहा कि ये धर्म युद्ध है और वे अपने सगे भाई के खिलाफ प्रचार करेंगे। चुनाव खत्म होते-होते मई में ही कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें महासचिव बना दिया था। वे 2014 तक कांग्रेस महासचिव रहे। इस दौरान वे राहुल गांधी के अघोषित सलाहकार भी रहे।
उदाहरण -3: शीला दीक्षित को राज्यपाल बनाया, फिर प्रदेश अध्यक्ष पद दिया
2013 दिल्ली में शीला दीक्षित पंद्रह साल तक सीएम रहने के बाद सत्ता गंवा चुकी थीं। 28 दिसंबर तक वे सीएम थीं। दो महीने बाद मार्च 2014 में उन्हें केरल का राज्यपाल बनाया गया। केंद्र में यूपीए सरकार जा चुकी थी और मोदी सरकार आ चुकी थी। यूपीए सरकार के समय नियुक्त हुए राज्यपाल इस्तीफा दे रहे थे। शीला ने भी पांच महीने बाद बिना शोर-शराबे के शांति से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद उन्हें 2019 की शुरुआत में दिल्ली कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया।
उदाहरण-4: गुजरात में ठाकोर को हटाया नहीं, बल्कि प्रमोशन देकर केंद्र में बुलाया
2022 में गुजरात विधानसभा का चुनाव कांग्रेस ने जगदीश ठाकोर की लीडरशिप में लड़ा। ठाकोर गुजरात के कांग्रेस अध्यक्ष थे। बुरी तरह से हारने के बाद ठाकोर ने हार का नैतिक दायित्व लिया और इस्तीफा देने की पेशकश की, जिसे स्वीकार नहीं किया गया। 9 जून 2023 तक ठाकोर गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। इसके बाद कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य के रूप में प्रमोशन दिया।
इन 4 उदाहरण से समझ सकते हैं कि जिन राज्यों में कांग्रेस हार जाती है, तो वहां के दिग्गजों के साथ 3 तरह का फार्मूला आजमाया जाता है-
- 1. उन्हें पद पर बनाए रखा जाता है।
- 2. संगठन में दूसरे राज्यों के काम में लगाया जाता है।
- 3. दो-तीन महीने के रेस्ट के बाद केंद्र की राजनीति में लाया जाता है।
अब जानते हैं कि कमलनाथ, गहलोत और बघेल का क्या हो सकता है...
कमलनाथ पहले ही बोल चुके हैं मैं रिटायर होने वाला नहीं, मतलब दिल्ली जा सकते हैं। विधानसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस आलाकमान ने 77 साल के कमलनाथ की जगह 50 साल के जीतू पटवारी को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। कमलनाथ के पास फिलहाल विधायक के अलावा और कोई पद नहीं है।
कमलनाथ को छिंछवाड़ा से लड़ाया जा सकता है लोकसभा चुनाव
जानकार मानते हैं कि प्रदेश में काम करने के लिए अब कमलनाथ के पास कोई स्कोप नहीं है। अभी एक विकल्प उनके लिए हो सकता है कि विधायक रहते हुए छिंदवाड़ा से लोकसभा चुनाव लड़ें। यदि वे जीत जाते हैं तो उनकी विधानसभा सीट से उनके बेटे नकुल नाथ चुनाव लड़ाया जाए। अभी नकुल नाथ छिंदवाड़ा से सांसद हैं।
यहां बता दें कि मप्र विधानसभा चुनाव का रिजल्ट के बाद उन्होंने कहा था कि मैं रिटायर नहीं होने वाला। आखिरी सांस तक आपके साथ रहूंगा। आने वाले समय में हमारी असली अग्नि परीक्षा है। इस बयान के मायने हैं कि कमलनाथ छिंदवाड़ा से जुड़े रहकर अपनी भूमिका केंद्रीय राजनीति में देख रहे हैं। जानकार मानते हैं कि कमलनाथ को कांग्रेस चाहकर भी दरकिनार नहीं करेगी। लोकसभा चुनाव संभवत: अप्रैल में होना हैं ऐसे में मध्यप्रदेश कांग्रेस का कोई नेता ये दावा नहीं कर सकता कि वो लोकसभा चुनाव लड़े और जीत जाए, लेकिन कमलनाथ ऐसा कर सकते हैं।
कमलनाथ को लेकर ये भी विकल्प
कमलनाथ के लिए एक रास्ता और देखा जा रहा है कि कांग्रेस उन्हें केंद्र ले जाए और उन्हें INDIA अलायंस में कोई जिम्मेदारी सौंप दी जाए। कमलनाथ अन्य दलों के नेताओं से सामंजस्य बिठाने में माहिर हैं। ऐसे में यदि कमलनाथ लोकसभा चुनाव हार भी जाते हैं तो उनका अनुभव देखते हुए उन्हें नेता प्रतिपक्ष के रूप में सामने लाया जा सकता है। यहां बता दें कमलनाथ 9 लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं और संसदीय कार्यमंत्री रह चुके हैं। इसके अलावा विधानसभा चुनाव में कमलनाथ का छिंदवाड़ा जिले में जादू तो चला है। वहां की सभी कांग्रेस ने जीती हैं।
भूपेश को लोकसभा चुनाव लड़ाया जा सकता है या भेज सकते हैं यूपी
पूर्व सीएम भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का एकमात्र ऐसा चेहरा हैं, जो एग्रेशन के लिए जाना जाता है। इस समय प्रदेश की राजनीति में उसी एग्रेशन की जरूरत होगी। 2018 में जब वे सत्ता में आए थे, तो परिवर्तन यात्रा के दौरान उनका तीखा अंदाज लोगों ने पसंद किया था। उन्होंने छत्तीसगढ़ के सीएम रहते देश में ओबीसी चेहरे के रूप में अपनी छाप छोड़ी है। ऐसे में कांग्रेस उनका लोकसभा चुनाव में इस्तेमाल करना चाहेगी। सूत्र बताते हैं कि वे प्रदेश अध्यक्ष बनना चाहेंगे। पार्टी ने ओबीसी नेता को नेता प्रतिपक्ष बना दिया है। ऐसे में पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी ओबीसी नेता को मिले, संभावना ना के बराकर है। उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ाया जा सकता है। साथ ही प्रियंका की गुड में होने के चलते भूपेश को उत्तर भारत के किसी राज्य का प्रभार दे दिया जाए।
गहलोत की परिस्थितियां कमलनाथ से मिलती- जुलती
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सियासी भविष्य को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं। गहलोत वर्तमान में सिर्फ विधायक रह गए हैं। जानकार मानते हैं कि ऐसे में गहलोत को प्रदेश अध्यक्ष या नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी से भी अलग रखा जाएगा। उन्हें लेकर एक संभावना बन रही है कि पार्टी गलोतत को जोधपुर से लोकसभा चुनाव लड़ा दे। जिससे राजस्थान में कांग्रेस क्लीनस्वीप से बच सके। पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने सभी 25 सीटों पर कब्जा किया था। गहलोत के चुनाव जीतने पर एमपी में कमलनाथ की तरह उनकी सीट पर भी उनके बेटे वैभव गहलोत को विधानसभा चुनाव लड़ाया जा सकता है। हालांकि, अन्य नेताओं की तरह गहलोत भी राजस्थान में ही रहना चाहते हैं।
इन सब के बीच जिस तरह से 'नेशनल अलायंस कमेटी' में गहलोत को शामिल किया गया है। उससे लगता है कि उन्हें कांग्रेस केंद्र में रख कर लोकसभा चुनाव में उनका ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करे।