BHOPAL. मप्र में गिद्धों की नस्ल को बढ़ाने के उद्देश्य से हरियाणा के पिंजौर गिद्ध संरक्षण केंद्र से जिप्स इंडिकस और जिप्स बेंगालेंसिस प्रजाति के 10-10 गिद्ध भोपाल लाए जाएंगे। दरअसल, इस व्यवस्था से गिद्धों की आनुवांशिक विविधता में सुधार होगा और इनब्रीडिंग की समस्या से बचा जा सकेगा। वन विहार नेशनल पार्क की डायरेक्टर पद्माप्रिया बालकृष्णन के मुताबिक इन गिद्धों को भोपाल के केरवा स्थित गिद्ध प्रजनन केंद्र 23 जून को पहुंचेंगे।
विलुप्ति की कगार पर पहुंच रहे गिद्धों
भारत में इन दिनों गिद्धों की प्रजाति विलुप्ति की कगार पर है। गिद्धों की नस्ल को बचाने के लिए देशभर में 8 गिद्ध संरक्षण प्रजनन केंद्र खोले गए हैं। केरवा डेम में इन दिनों 60 गिद्ध मौजूद हैं, जिनमें 41 लंबी चोंच वाले (जिप्स इंडिकस) और 19 सफेद पीठ वाले (जिप्स बेंगालेंसिस) प्रजाति के हैं। इस केंद्र में गिद्धों के अंडों का कृत्रिम ऊष्मायन किया जाता है ताकि इनके ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा कर नस्ल को बचाया जा सके। 9 साल पहले शुरू हुए इस गिद्ध प्रजनन केंद्र में हरियाणा के पिंजौर से ही 2014 में 15 गिद्ध यहां लाए गए थे।
मप्र में बचे 9,500 गिद्ध
भारत में 1980 के दशक तक गिद्धों की संख्या 4 करोड़ से अधिक थी। साल 2000 तक भारत में 99% गिद्ध समाप्त हो गए। वर्तमान में भारत में एक लाख से भी कम गिद्ध बचे हुए हैं। 2021 में हुई अंतिम गणना के मुताबिक मप्र में 7 प्रजातियों के सिर्फ 9,446 ही गिद्ध बचे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक गिद्धों की मौत का सबसे बड़ा कारण डाइक्लोफेनेक नामक दर्द निवारक दवा है, जिसे मवेशियों को दर्द और सूजन दूर करने के लिए दिया जाता है। इस दवा को खाने के बाद 72 घंटे के भीतर यदि पशु मर जाता है और उसे गिद्ध खा ले, तो गिद्ध भी मर जाते हैं। यह दवा गिद्धों की किडनी खराब करती है।