BHOPAL: चुनावी साल में मप्र सरकार के खजाने की स्थिति कितनी खराब हो चुकी है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शासन के वित्त विभाग ने 41 विभागों का बजट वापस लेकर विभागों और जिला कोषालय से भुगतान रोक दिया है। वित्त विभाग ने 30 जून की स्थिति में सभी विभागों के पास मौजूद बजट को लेप्स कर दिया है जिससे अब विभागों के खाते बजट की रकम से खाली हो गए हैं। अब कोई भी विभाग अपनी योजनाओं के लिए डायरेक्ट भुगतान नही कर पाएगा बल्कि विभागों को भुगतान से पहले वित्त विभाग की अनुमति लेना पड़ेगा। वित्त विभाग के इस कदम का सीधा असर अब जनकल्याण की योजनाओं पर पढ़ना जाहिर है। कैसे? जानने के लिए पढ़े ये रिपोर्ट...
क्या कहता है वित्त विभाग का फरमान
दरअसल, मध्यप्रदेश में सरकार के विभिन्न विभागों की योजनाओं के क्रियान्वयन को लेकर 30 जून 2023 को वित्त विभाग ने एक सर्कुलर जारी किया है। इसके जरिये संचालक बजट आइरीन सिंथिया ने 41 विभागों के अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव, सचिव तथा बजट नियंत्रण अधिकारियों को निर्देशित किया है कि चालू वित्तीय वर्ष की शेष अवधि में वे उनके विभागों के अंतर्गत संचालित योजनाओं पर राशि खर्च करने के लिए पहले वित्त विभाग से अनुमति प्राप्त करे और उसके बाद ही इन योजनाओं पर खर्च करें। अब तक कि व्यवस्था में विभाग अपनी किसी भी योजना के लिए डायरेक्ट भुगतान स्वयं या जिला कोषालय के माध्यम से कर सकते थे। लेकिन 1 जुलाई से वित्त विभाग ने यह प्रक्रिया बदल दी है। अब बजट वित्त विभाग के पास ही रहेगा और किसी भी विभाग को भुगतान करना है तो इसके लिए पहले वित्त विभाग की अनुमति लगेगी और अनुमति मिलने के बाद ही भुगतान हो सकेगा। नोट करने वाली बाद है कि लाडली बहना योजना पर इस फरमान का कोई असर नहीं होगा।
मुख्य विभाग जिनपर वित्त विभाग ने कसा शिंकजा
मप्र में कुल 55 विभाग हैं। और उनमें से 41 विभागों के बजट पर वित्त विभाग ने प्रतिबंध लगा दिया है। यानी 75 फीसदी विभागों को अब सीधे भुगतान यानी डायरेक्ट पेमेंट की इजाजत नहीं है। जिन 41 विभागों पर इस सर्कुलर का असर होगा उसमें मुख्य हैं: नगरीय प्रशासन विभाग, उद्योग विभाग, संस्कृति विभाग, पर्यटन विभाग, पर्यावरण विभाग, स्कूल शिक्षा विभाग, तकनीकी शिक्षा विभाग, उच्च शिक्षा विभाग, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, खेल एवं युवक कल्याण विभाग, सामाजिक न्याय विभाग, कुटीर उद्योग विभाग, पशुपालन विभाग, सहकारिता विभाग, मछली पालन विभाग, कृषि विभाग, पंचायत विभाग, उद्यानिकी विभाग, खाद्य आपूर्ति विभाग, स्वास्थ्य विभाग, अल्पसंख्यक कल्याण विभाग, पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग, लोक सेवा प्रबंधन विभाग, नर्मदा घाटी विभाग, ऊर्जा विभाग, पीएचई विभाग, जलसंसाधन विभाग, नवीन ऊर्जा विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग विभाग
फैसले का आम आदमी पर क्या फर्क पड़ेगा?
वित्त विभाग के इस फैसले से सरकार की करीब 134 योजनाओं अहम योजनाओं पर सीधा असर पड़ने वाला है। जिन योजनाओं पर इसका असर होगा उसमें जनता से सरोकार रखने वाली कई स्कीम्स हैं जैसे: मुख्यमंत्री उद्यम क्रांति योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, स्वच्छ भारत मिशन, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, किसानों की ब्याज माफी योजना, फसल बीमा योजना, अन्नपूर्णा योजना, मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना, मुख्यमंत्री जन आवास योजना, ग्रामीण आजीविका मिशन, ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, उदिता योजना, श्रमिक सेवा प्रसूति योजना, नेशनल हेल्थ मिशन, आयुष्मान भारत योजना, सीएम राइज और उत्कृष्ट विद्यालयों का अनुदान, स्कूलों के इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च, छात्राओं की स्कॉलरशिप योजना, भोपाल गैस राहत एवं त्रासदी पुर्नवास, ग्रामीण नल जल योजना, मुख्यमंत्री मेधावी विद्यार्थी योजना, उच्च शिक्षा के लिए गांव की बेटी योजना और प्रतिभाकिरण योजना, देश की सीमाओं का भ्रमण कराने शुरु की गई मां तुझे प्रणाम योजना, राजस्व विभाग द्वारा आपराओं की रोकथाम के लिए किए जाने वाले खर्च, औद्योगिक नीति एवं निवेश प्रोत्साहन विभाग की निवेश प्रोत्साहन योजना
फैसले के पीछे सरकार का तर्क
अब सरकार ने ये फैसला क्यों लिया तो बताया जा रहा है कि विभाग योजनाओं के लिए जो सीधा भुगतान कर रहे थे उसमें कोषालयों की तरफ से मनमानी की जा रही थी।
सरकार के मंत्री कर रहे फैसले का बचाव
हालांकि, इस मामले में जब द सूत्र ने मध्य प्रदेश के वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा से बात की तो उन्होंने इस पूरे मामले को टाल दिया। वहीँ जिन विभागों के बजट पर प्रतिबंध लगाया गया है जैसे नगरीय प्रशासन या संस्कृति विभाग, द सूत्र ने इन विभागों के मंत्रियों से जब सवाल किया तो वो सरकार के इस फैसले का बचाव करते नज़ार आए और कहा कि उनके विभागों की योजना पर इस फैसले का कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
भूपेंद्र सिंह, नगरीय प्रशासन मंत्री: इस फैसले का हमारे विभाग की योजनाओं पर कोई असर नहीं पड़ेगा। हमारे विभाग के पास योजनाओं को संचालित करने के लिए पर्याप्त फण्ड है।
ऊषा ठाकुर, संस्कृति मंत्री: सरकार अपनी प्रायोरिटी के हिसाब के काम करती है। ऐसा बिलकुल नहीं होगा कि सर्कार किसी योजना के संचालन में फंड की कमी होने देगी।
अब विभागीय मंत्री जरूर ये कहते नजर आ रहे हैं कि योजनाओं के संचालन में वित्त मंत्रालय के इस फैसले से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन जानकार मान रहे हैं कि इससे बिल पेंडेंसी बढ़ जाएगी और हितग्राहियों को भुगतान में देरी होगी।
मध्य प्रदेश सरकार वित्तीय प्रबंधन में फेल: विपक्ष
इस पूरे मामले में विपक्ष का तो सीधा आरोप है कि मप्र सरकार इस समय आर्थिक कुप्रबंधन के दौर से गुजर रही है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सज्जन सिंह वर्मा, जयवर्धन सिंह, और जीतू पटवारी, सभी का कहना है कि सरकार की वित्तीय बुद्धि कमज़ोर है। ये सरकार की नाकामी ही है कि राज्य पर 4 लाख करोड़ का कर्ज़ा चढ़ा दिया है। सरकार की वोट बटोरने के लिए शुरू की गई लाड़ली बहना जैसी चुनावी योजनाओं के चलते अच्छी जनकल्याण की योजनाएं बंद हो रहीं हैं। कांग्रेस के नेताओं ने आरोप लगाया कि सरकार की गलत नीतियों के चलते राज्य की वित्तीय हालत खस्ता हो गई है।
विभागों के बजट पर रोक पर चुनावी योजनाओं के सम्मेलनों पर 33 करोड़ से ज्यादा का खर्च!
अब सरकार विभागों के बजट पर प्रतिबंध तो लगा रही है, लेकिन चुनावी साल में मप्र में कई सारी ऐसी योजनाएं भी शुरू कर दी है जिसमें बहुत पैसा खर्च हो रहा है। सरकार का जितना बजट है उतना ही सरकार ने कर्ज लिया हुआ है। अगले तीन महीने में आरबीआई से 10 हजार करोड़ का कर्ज और लिया जा रहा है। यानी सरकार कर्ज में लगातार डूबती जा रही है। इतने भारी क़र्ज़ के बावजूद सरकार अपनी फ्लैगशिप योजनाओं का प्रचार प्रसार करने में पैसा बहाने में पीछे नहीं है। सरकार की महत्वाकांक्षी लाड़ली बहना योजना के प्रमोशन के लिए लाड़ली बहना सम्मेलन का आयोजन कर रही है। और ऑफिशियल आंकड़े के अनुसार अब तक इन सम्मेलनों पर 33 करोड़ से ज्यादा का खर्च हो चुका है। तो वहीँ एक अनुमान ये भी है कि आंकड़ा 50 करोड़ रुपए के करीब है। दरअसल, विधानसभा में कांग्रेस के विधायक जीतू पटवारी ने ये सवाल पूछा कि पिछले 6 महीने में लाड़ली बहना योजना के लिए कितने सम्मेलन का आयोजन हुआ और उनपर कितना पैसा खर्च हुआ। इस सवाल के जवाब में सरकार की तरफ से जवाब दिया कि...
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने लाड़ली बहना योजना की घोषणा के बाद से राज्य भर के अलग-अलग 27 जिलों में 5 मार्च 2023 से लेकर 13 जून 2023 तक 27 बार समारोह / सम्मेलन आयोजित कर दौरे किये। इनमें से 17 समारोह / सम्मेलन के आयोजन हेतु महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा संचालक जनसम्पर्क विभाग को 33 करोड़ 84 लाख 35 हज़ार 289 रुपए दिए गए। इसमें से 15 जगहों बड़वानी, मंदसौर, जबलपुर, शाजापुर, सीधी, मंडला, खंडवा, निवाड़ी, सिवनी, बैतूल, अलीराजपुर, मुरैना, रतलाम, हरदा, डिंडोरी को अपने-अपने सम्मलेन के लिए 2 करोड़ रुपए दिए गए। तो वहीँ बेवस के सम्मलेन के लिए 18778829 रुपए और सतना के सम्मलेन के लिए 19656460 रुपए दिए गए।
5 मार्च 2023 से लेकर 13 जून 2023 तक इन जगहों पर 27 बार आयोजन हुए: भोपाल, खरगोन, बैतूल, खंडवा, शहडोल, मुरैना, रतलाम, शाजापुर, बड़वानी, सीधी, हरदा, सिवनी, मंडला, अलीराजपुर, मंदसौर, सतना, निवाड़ी, देवास, धार, उमरिया, डिंडोरी, छत्तरपुर, झाबुआ, बालाघाट, रायसेन, जबलपुर, राजगढ़
यानी हर जिले में इस सम्मेलन में करीब डेढ़ करोड़ से दो करोड़ रु. तक की राशि खर्च की गई। अब ये केवल 17 जिलों का हिसाब किताब है। बचे हुए 10 जिलों में भी 2 करोड़ के करीब खर्च मान लें तो 27 सम्मेलनों में खर्च की गई राशि 50 करोड़ रु. से ज्यादा होती है। एक तरफ 41 विभागों के बजट पर प्रतिबंध लगाया गया है और दूसरी तरफ लाड़ली बहना योजना के प्रचार प्रसार के लिए आयोजित सम्मेलनों पर 50 करोड़ से ज्यादा का खर्च। तो विपक्ष सवाल उठाएगा ही। एक पहलु ये भी है कि अगर सरकार ये 50 करोड़ रुपए प्रचार-प्रसार नहीं करती तो 5 लाख लाड़ली बहनाओं के खाते में आ सकते थे। लोकतंत्र की परिभाषा है कि "जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन। पर इस मामले के संदर्भ में इसे कुछ ऐसा कहा जाएगा कि जनता का पैसा.. जनता द्वारा.. सरकार के प्रचार के लिए।