5वीं पास मजदूर से हार गए मंत्री रविंद्र चौबे, पूर्व सैनिक ने कांग्रेस के गढ़ में खिलाया 'कमल', जानें क्या रही बीजेपी की रणनीति

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Vikram Jain
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5वीं पास मजदूर से हार गए मंत्री रविंद्र चौबे, पूर्व सैनिक ने कांग्रेस के गढ़ में खिलाया 'कमल', जानें क्या रही बीजेपी की रणनीति

गंगेश द्विवेदी, RAIPUR. छत्तीसगढ़ में बीजेपी बंपर जीत के साथ सत्ता में वापस आ गई है। वहीं लगातार जीत का दावा करने वाली कांग्रेस चारों खाने चित्त हो गई, इस चुनाव में कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। भूपेश सरकार के कई मंत्री भी अपनी कुर्सी नहीं संभाल पाए। इस चुनाव में बीजेपी के प्रत्याशियों को दिग्गज नेताओं शिकस्त दी है। जिनमें कई मंत्री भी शामिल है। इन सब के बीच जिस एक सीट को लेकर चर्चा ज्यादा हो रही है वह बेमेतरा जिले की साजा विधानसभा सीट है। इस सीट से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और आठ बार के विधायक रविंद्र चौबे को हार का सामना करना पड़ा है।

5 हजार 297 वोटों से हारे मंत्री रविंद्र चौबे

मंत्री रविंद्र चौबे को पांचवी पास मजदूर ईश्वर साहू के हाथों हार का सामना करना पड़ा। रविंद्र चौबे को एक पांचवी पास मजदूर ईश्‍वर साहू ने परास्त किया हैं। खास बात यह है कि रविंद्र चौबे को जिस कैंडिडेट से हार मिली, उन्होंने इससे पहले चुनाव लड़ने के बारे में कभी सोचा भी नहीं था। बिरनपुर में मॉब लिंचिंग में मारे गए बेटे भुवनेश्‍वर साहू को न्‍याय दिलाने की यह मुहीम सफल रही। साजा सीट पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और आठ बार के विधायक रविंद्र चौबे को BJP प्रत्याशी ईश्वर साहू ने 5297 वोटों से हरा दिया। ईश्वर साहू को 1 लाथ 1 हजार 789 वोट मिले, वहीं रविंद्र चौबे को 96 हजार 593 वोट मिले हैं। वहीं तीसरे स्थान पर निर्दलीय सुनील कुमार रहे। जिन्हें 2 हजार 874 वोट मिले हैं।

मौत की कीमत 10 लाख को ठुकराया

अप्रैल 2023 में साजा विधानसभा क्षेत्र के बिरनपुर गांव में सांप्रदायिक दंगे हुए थे। स्कूल से मारपीट से शुरू हुई घटना सांप्रदायिक दंगे में बदल गई। इस घटना में तीन लोगों की मौत हुई थी। मारे गए लोगों में ईश्वर साहू के बेटे भुवनेश्वर साहू भी शामिल थे। छत्तीसगढ़ सरकार ने साहू समाज के लोगों की पहल पर भुवनेश्वर साहू के परिवार के लिए 10 लाख रुपए के मुआवजे और सरकारी नौकरी का ऐलान किया था। लेकिन ईश्‍वर साहू ने इसे लेने से इनकार कर दिया था। ईश्‍वर का कहना था कि मेरे बेटे के जान की कीमत 10 लाख रुपए नहीं हो सकती।

सरकार ने बना रखी थी दूरी

बिरनपुर में हुई मॉब लिंचिंग के बाद बीजेपी एक्टिव हुई और बेमेतरा जिले के इस हिस्‍से पर उग्र आंदोलन किया। इस घटना को लेकर सरकार ने अजीबोगरीब दूरी बनाए रखी। जिले के प्रभारी मंत्री ताम्रध्‍वज साहू, विधायक और मंत्री रविंद्र चौबे सहित सरकार का कोई भी जिम्‍मेदार पीड़ित परिवार को ढांढस बंधाने नहीं पहुंचा था। साहू समाज का प्रतिनिधि मंडल जब मुख्‍यमंत्री भूपेश बघेल से मिलने सीएम हाउस पहुंचा तो सीएम ने 10 लाख मुआवजा और मृतक के पिता को सरकारी नौकरी देने की घोषणा की। लेकिन बेटे लिए न्याय की लड़ाई में पिता ईश्वर साहू ने सरकार का ऑफर ठुकरा दिया।

जनता की सहानुभूति का मिला फायदा

बीजेपी ने ईश्‍वर साहू के इस फैसले के बाद उन्‍हें साजा सीट से अपना प्रत्‍याशी बना दिया। बीजेपी को उम्‍मीद थी कि इस घटना में सरकार के रवैये से उपजी जनता की सहानुभूति का फायदा उन्‍हें मिलेगा। परिणाम भी आशातीत आया। साजा की जनता ने ईश्वर साहू का समर्थन किया और उन्हे बड़ी जीत दिलाई। जनता ने सहानुभूति दिखाते हुए ईश्वर साहू को विधायक बनाते हुए मंत्री रविंद्र चौबे को सत्ता से बाहर कर दिया।

जनता ने चुनाव लड़ने के लिए दिए रुपए

ईश्‍वर साहू के मुताबिक वो साजा के बिरनपुर प्राइमरी स्कूल से पांचवी पास हैं। उनके बैंक अकाउंट में करीब 16 लाख रुपए हैं। ये पैसा बेटे की मौत के बाद चंदे के तौर पर उन्हें मिला है। ईश्‍वर बताते हैं कि कैंडिडेट लिस्ट आने से दो पहले BJP ने उन्हें चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया था। जिसे शुरुआत में तो उन्होंने नकार दिया था। लेकिन फिर सोच विचार करने के बाद उन्होंने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था।

पूर्व सैनिक से हार गए मंत्री अमरजीत भगत

कांग्रेस का अभेद्य किला माना जाने वाले सीतापुर को बीजेपी ने जीत लिया है। अब तक हुए चुनाव में यहां बीजेपी को कभी जीत नसीब नहीं हो सकी थी। दो बार निर्दलीय प्रत्याशियों ने जरूर यहां से जीत दर्ज कर ली थी लेकिन बीजेपी को पहली जीत का इंतजार था। इस इंतजार को पूर्व सैनिक रामकुमार टोप्पो ने खत्‍म किया। सेना की नौकरी से त्याग पत्र देकर आए चुनावी मैदान में उतरे रामकुमार ने मंत्री अमरजीत भगत को करारी शिकस्त दी है। बीजेपी ने रामकुमार टोप्पो की बदौलत कांग्रेस के अभेद किले में सेंध लगाने में सफलता पाई है।

पूर्व सैनिक ने ढहा दिया कांग्रेस का मजबूत किला

छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद से अमरजीत भगत सीतापुर विधानसभा सीट से चुनाव जीतते आ रहे थे। पिछले चार चुनाव में उन्होंने जीत दर्ज की थी। यह उनका पांचवा चुनाव था। इस चुनाव में जीत दर्ज कर अमरजीत भगत नया रिकार्ड बनाने की मंशा से चुनाव मैदान में उतरे थे। बीजेपी ने यहां पूर्व सैनिक रामकुमार टोप्पो को पहली बार चुनाव मैदान में उतारा था। रामकुमार टोप्पो 13 सालों तक सेना में सेवा देने के बाद राजनीति में आए थे। उनके चुनाव मैदान में उतरने मात्र से ही सीतापुर विधानसभा क्षेत्र का राजनीतिक माहौल बदल गया, युवाओं के साथ समाज के सभी वर्गों का समर्थन नए प्रत्याशी रामकुमार टोप्पो को मिला। रामकुमार टोप्पो की हर रैली में जबरदस्त भीड़ उमड़ती थी। वे बार- बार यही कहते थे कि क्षेत्र की जनता ने उन्हें पत्र लिखकर चुनाव लड़ने के लिए आमंत्रित किया था, इसलिए वे सेना की नौकरी छोड़ जनसेवा के लिए राजनीति में आए हैं।

पहली बार राजपरिवार के हाथ से गया अंबिकापुर

अंबिकापुर विधानसभा सीट को कांग्रेस का शुरु से गढ़ माना जाता रहा है। छत्तीसगढ़ के उप मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव का मुकाबला यहां बीजेपी के अनुराग सिंह देव से होता रहा। डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव राजपरिवार से आते हैं। सिंहदेव के खिलाफ बीजेपी ने कभी भी कोई दमदार चेहरा मैदान में नहीं उतारा। पिछले तीन विधानसभा चुनावों की बात करें तो, टीएस बाबा का मुकाबला अनुराग सिंह देव से ही हुआ है। बीजेपी ने कभी भी प्रत्याशी नहीं बदला। अंबिकापुर सीट पर हमेशा से ही लड़ाई एकतरफा रही। सिंहदेव यहां हर बार लीड मार्जिन से चुनाव जीतते रहे। इससे पहले उनकी मां यहां से चुनाव जीतती रही।

नेता प्रतिपक्ष रहते जीते सिंहदेव और डिप्‍टी सीएम बनकर हारे

2018 विधानसभा चुनाव के दौरान भी बड़े मार्जिन से सिंहदेव ने जीत दर्ज की थी। छत्तीसगढ़ में इस बात लेकर भी सियासी मिथक थी कि जो भी नेता प्रतिपक्ष रहता है वो दूसरी बार नहीं जीतता। सिंहदेव ने इस मिथक को तोड़ा और नेता प्रतिपक्ष रहते हुए चुनावों में बड़े अंतर से जीत हासिल की। लेकिन इस चुनाव में अंबिकापुर सीट से डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव हार का सामना करना पड़ा। बीजेपी के राजेश अग्रवाल ने सिंहदेव को करीबी मुकाबले में 94 वोटों से हराया।

तीन किलों पर कांग्रेस बरकरार

कांग्रेस के इन तीन अभेद्य किले कोंटा, कोटा और खरसिया पर कांग्रेस ने अपनी जीत बरकरार रखी है। कोंटा से कवासी लकमा ने त्रिकोणीय मुकाबले में बीजेपी के सोयम मुका 1 हजार 981 वोटों से पराजित किया। लकमा को 32 हजार 776 मिले वहीं भाजपा के सोयम मुका को 30 हजार 795 वोट मिले। सीपीआई के मनीष कुंजाम को 29 हजार 40 वोट मिले वे लकमा से 3 हजार 736 वोट पीछे रह गए। कोटा सीट जीतने के लिए इस बार बीजेपी ने जशपुर राजपरिवार से प्रबल प्रताप सिंह जूदेव को चुनाव मैदान में उतारा था। जेसीसीजे की तीन बार की विधायक रेणू जोगी भी मैदान में थीं लेकिन आखिरकार जीत कांग्रेस के अटल श्रीवास्‍तव की हुई। अटल श्रीवास्तव को 73 हजार 479 वोट पड़े जबकि बीजेपी के प्रबल प्रताप जुदेव को 65 हजार 522 वोट मिले और वे 7 हजार 957 वोट से हार गए। वहीं विधायक रेनू अजित जोगी को आठ हजार वोटों से संतोष करना पड़ा। इधर खरसिया से कांग्रेस के उमेश पटेल जीत गया ने 21 हजार 656 वोटों से जीत हासिल की। उमेश को 1 लाख 988 मिले थे जबकि बीजेपी के महेश साहू को 79 हजार 332 वोट मिले।

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