बेतकल्लुफ वे औरों से हैं
नाज उठाने को हम रह गए
इस शे'र में छिपी है कांग्रेस के दो शेरों की कहानी। दोनों उम्रदराज हो चुके हैं। पर राजनीति के जंगल पर कब्ज़े का ज़ज़्बा बरक़रार है। दोनों में सत्ता की बेकरारी है। सिंहासन को बचाने की तड़प भी। शिकार को झपटने के लिए शेर दो कदम पहले पीछे जाता है। राजनीति में शिकार के लिए शेरों में सुलह भी होती देखी है। पर ये दोनों न सुलह को कदम आगे बढ़ा रहे, न ही शिकार के लिए पीछे जा रहे। बस अपनी ताकत को बताने आगे और आगे ही कदम बढ़ा रहे हैं।
ये कहानी है दिग्विजय और कमलनाथ की। एक बिज़नेस का किंग तो दूसरा 'राजा' साहब। दोनों पूर्व मुख्यमंत्री। सयाने इतने कि चालीस साल की दोस्ती का हवाला सरेआम देते हैं, वहीं दोस्ती के लिए कड़वे घूंट पीने को दोनों राजी नहीं। दोनों के बीच एक ही कॉमन फैक्टर है। वो हैं बेटे। कमलनाथ अपने बेटे को छिंदवाड़ा के कांग्रेसी सिंहासन पर छत्रसाल बनाना चाहते हैं। इसके लिए कांग्रेस के संविधान को भी किनारे कर करने में गुरेज नहीं। दूसरी तरफ राजा साहब अपने बेटे को 'महाराज' बनाने में लगे हैं। कांग्रेस में महाराज का पद अभी रिक्त है ही।
अब आते हैं किस्से पर। किस्सा कपडे़ फाड़ने का। कमलनाथ ने भाजपा से कांग्रेस में आए वीरेंद्र रघुवंशी के समर्थकों से कहा मेरे बंगले पर शोर मत करो।
जाके, दिग्विजय और जयवर्धन के कपडे़ फाड़ो। रघुवंशी समर्थकों ने कोलारस से टिकट न मिलने पर कमलनाथ को घेरा था। इसके दूसरे दिन वचन पत्र जारी करने के मंच पर कांग्रेस के फटे कपडे़ सरेआम सामने आये। जब कमलनाथ ने दिग्विजय से कहा कि मैंने पॉवर ऑफ़ अटॉर्नी आपको दी है, तो गालियां आप ही खाइये। दिग्विजय ने भी तत्काल माइक पकड़ा। बोले - बी फार्म पर दस्तखत पीसीसी चीफ के होते हैं, तो कपडे़ किसके फटने चाहिए।
दिग्विजय ने इसके बाद जो कहा वो कांग्रेस की आंतरिक दोस्ती- दुश्मनी को साफ़ करता है। दिग्विजय बोले -गलती कौन कर रहा है, ये सबको पता चलना चाहिए। खुद को शंकर भी बता गए। बोले शंकर का काम विष पीना ही है तो पीएंगे। दो शेरों की इस जंग में कांग्रेस का नुकसान हो गया। जो वचन पत्र सालभर की मेहनत से तैयार हुआ। उसे आधे मिनट की 'वाचालता' ने डुबो दिया। मीडिया को वचन से ज्यादा टीआरपी इस जंगल के झगडे़ में दिखी। उसने सब कुछ किनारे कर पूरे दिन चलाया-कपड़ा फाड़ लाइव।
सोशल मीडिया पर कांग्रेस के शुभचिंतक इसे मीठी लड़ाई, सौहार्द्रपूर्ण संबंध। दोस्ती हो तो ऐसी जैसे जुमलों पर खूब वायरल कर रहे हैं। पर जो कपडे़ फटे हैं वो अब सिलकर पहले जैसे तो होंगे नहीं , उन पर रफू की कारीगरी जनता को पूरे चुनाव में दिखती रहेगी।
पंकज मुकाती,
(Thesootr के संपादक हैं )