संजय गुप्ता, INDORE. राज्य सेवा परीक्षा 2019 एक अंतहीन कहानी बनकर रह गई है। इस परीक्षा को हाईकोर्ट में चले कई केस के चलते स्थितियां लगातार बदल रही हैं। अब जबलपुर हाईकोर्ट का नया आदेश आया जिसमें आश्चर्य जताया गया है कि आयोग ने उनके 23 अगस्त के पुराने फैसले को लागू ही नहीं किया और केवल याचिकाकर्ता उम्मीदवारों को ही इसके इंटरव्यू के लिए मान्य किया, बाकी को मौका ही नहीं दिया गया। पीएससी की इस परीक्षा में 571 पद हैं और उम्मीदवार चार साल से अंतिम रिजल्ट का इंतजार कर रहे हैं। जबलपुर हाईकोर्ट ने नवंबर-दिसंबर 2022 में ही इसमें स्पेशल मेंस कराकर पूरी प्रक्रिया छह माह में पूरा करने का आदेश दिया था। नए आदेश के बाद तय है कि अब इस परीक्षा का अंतिम रिजल्ट इतनी जल्दी नहीं आने वाला है, क्योंकि इन 125 उम्मीदवारों के इंटरव्यू आवेदन लेने के बाद इन्हें कराने के लिए तीन दिन की विंडो चाहिए।
नए फैसले से करीब 125 को और मिलेगा मौका
जबलपुर हाईकोर्ट में अलग-अलग स्तर पर याचिका लगाने वाले करीब 240 उम्मीदवारों को तो मप्र लोक सेवा आयोग ने इंटरव्यू के लिए कॉल लैटर जारी कर दिया और उनके इंटरव्यू भी शेड्यूल कर दिए गए। लेकिन इस परीक्षा में इंटरव्यू के लिए पहले क्वालीफाई घोषित और बाद के रिजल्ट में बाहर किए गए करीब 125 और उम्मीदवार है जिन्हें कॉल लैटर जारी नहीं किया गया था। अब आयोग इन्हें भी कॉल लैटर जारी कर इंटरव्यू शेड्यूल करेगा। पीएससी प्रवक्ता डॉ. रविंद्र पंचभाई ने कहा कि आदेश एक दिन पहले ही आया है इस पर विधिक चर्चा चल रही है और माननीय हाईकोर्ट के आदेश का पालन करते हुए जल्द फैसला लेकर सूचित किया जाएगा।
क्या हुआ है फैसला
हाईकोर्ट ने राज्य सेवा परीक्षा-2019 के मामले में मप्र लोक सेवा आयोग की मनमानी कार्रवाई पर आश्चर्य जताया है। न्यायमूर्ति जीएस आहलूवलिया की एकल पीठ ने साफ किया कि 23 अगस्त को हाई कोर्ट ने जो आदेश पारित किया था, वह सार्वजनिक था और सभी पर लागू था। लिहाजा, पीएससी जिस तरह से इस प्रकरण को निपटा रही है, वह अत्यंत आश्चर्यजनक है।
याचिकाकर्ता प्रियंका पांडे की ओर से अधिवक्ता अंशुल तिवारी ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि हाई कोर्ट के 23 अगस्त के आदेश के बाद पीएससी ने शुद्धिपत्र जारी कर कहा कि उन्हीं उम्मीदवारों को साक्षात्कार के लिए बुलाया जा रहा है, जिन्होंने अदालत में मामला दायर किया था। पीएससी ने इसके लिए गत 21 सितंबर के आदेश का हवाला दिया।
हाईकोर्ट ने पीएससी को दिए थे निर्देश
हाई कोर्ट ने 23 अगस्त को राज्य सेवा परीक्षा-2019 के मामले में पीएससी को निर्देश दिए थे कि पहली मुख्य परीक्षा और बाद में हुई विशेष मुख्य परीक्षा के परिणामों को मिलाकर उनका नॉर्मलाइजेशन करने के बाद रिजल्ट जारी करें। आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि पहली मुख्य परीक्षा में 1918 (जो इंटरव्यू के लिए सफल घोषित हो चुके थे) के साथ विशेष मुख्य परीक्षा में बैठे 2712 उम्मीदवारों के रिजल्ट को मिलाकर उनका नार्मलाइजेशन किया जाए। हाई कोर्ट ने कहा कि 23 अगस्त का आदेश सार्वजनिक था यानि सभी उम्मीदवारों पर लागू था।
हाईकोर्ट ने यह कहा
हाईकोर्ट ने कहा कि यह आश्चर्य का विषय है कि कानूनी प्रविधानों को अपनाने के स्थान पर पीएससी अपनी मनमर्जी से निर्णय ले रही है। हाई कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर कहा कि उक्त आदेश उन सभी उम्मीदवारों पर लागू होगा, जिन्होंने पहले राउंड में परीक्षा उत्तीर्ण की है और साक्षात्कार के लिए पात्र घोषित हुए थे। पीएससी यह कह कर उम्मीदवारों से भेदभाव नहीं कर सकती कि चूंकि कोई अभ्यर्थी हाई कोर्ट नहीं आया, अत: उसे आदेश का लाभ नहीं दिया जाएगा।
अभी भी उम्मीदवारो के दो अहम सवाल
1-उम्मीदवार जिन्हें हाईकोर्ट के आदेश के बाद इंटरव्यू के लिए बुलाया जा रहा है, उन्हें आयोग 87 फीसदी मूल रिजल्ट सूची में रख रहा है या फिर 13 फीसदी के प्रोवीजनल रिजल्ट सूची में, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है।
2-दूसरा बड़ा सवाल जिन्हें इंटरव्यू लेटर आए हैं., उन्हें पदों की प्राथमिकता सूची भरना है, उम्मीदवारों के सामने दिकक्त यह है कि पदों का वितरण 87-13 फीसदी के फार्मूले से हो गया है, ऐसे में उम्मीदवारों को जब पता ही नहीं है कि वह किस कैटेगरी में चयनित है तो वह फिर पदों की प्राथमिकता किसा आधार पर भर कर देंगे। क्योंकि कुछ पद तो 13 फीसदी कैटेगरी में ही नहीं है।