गंगेश द्विवेदी, RAIPUR. पार्टी सें बगावत यानी अपनी बरसों की मेहनत पर पानी फेरना। बरसों बरस पार्टी में रहकर उसकी सेवा करने के बाद चुनाव के वक्त उसे छोड़ना एक अच्छे नेता या कार्यकर्ता के लिए कठिन होता है। प्रश्न फिर शून्य से शुरू करने का भी रहता है। ऐसे में पार्टी से निष्कासित नेताओं का रिकॉर्ड खंगाला तो पता चला कि कुछ को पीढ़ियों के इंतजार के बाद तवज्जो नहीं मिली तो बगावत करना पड़ा, इसका खामियाजा रिश्तेदारों को भी भुगतना पड़ा है। तो कहीं अपने नेता के बारे में पार्टी फोरम में सच बोलना महंगा पड़ गया। प्रस्तुत है टिकट आवंटन के बेरहम चाबुक से फटकारे गए कुछ नेताओं की दर्द भरी दास्तान। ये दास्तान सुनने के बाद यही लगता है कि यू ही नहीं कोई बागी हो जाता है...कहीं न कहीं पार्टियों के बड़े नेता भी आंकलन करने में चूक करते हैं, या डैमेज कंट्रोल के दौरान उस स्तर पर बागी हो रहे नेताओं को मरमम नहीं लगाया जाता है, जितना गहराए असंतोष खत्म करने के लिए चाहिए।
50 साल का इंतजार क्या कम है ?
छत्तीसगढ़ में 2018 में आए बंपर बहुमत के बाद पार्टी में अपने लोगों को मैनेज करना कठिन हो चुका है। इनमें से कई प्रत्याशी ऐसे हैं, जिनका इंतजार इतना लंबा हो गया है कि उन्हें पार्टी छोड़ने का रास्ता चुनना पड़ा । रायपुर उत्तर से बागी होकर निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरे अजीत कुकरेजा के पीछे एक पीढ़ी का इंतजार है। अजीत कुकरेजा के पिता आनंद कुकरेजा पिछले 50 से अधिक वर्षों से कांग्रेस की सेवा कर रहे हैं। उनका जीवन पार्षदी में कट गया लेकिन उन्हें रायपुर उत्तर से विधानसभा का टिकट नहीं मिला। इसके बाद उन्होंने दावेदारी करनी ही छोड़ दी और बेटे अजीत को कांग्रेस में ही रहकर निगम की राजनीति में निपुण बनाने के साथ वे विधानसभा की तैयारी भी करने को प्रेरित करते रहे।
...और फिर अजीत कांग्रेस से हो गए बागी
अजीत ने पिता की आकांक्षा को अपना लक्ष्य बनाया और निगम की पार्षदी को अपनी सीढ़ी बनाकर उत्तर विधानसभा क्षेत्र में लगातार मेहनत करते रहे। राजनीति के साथ समाज सेवा को हथियार बनाकर कुछ ही वर्षो में अजीत अपने क्षेत्र में खासे लोकप्रिय भी हो गए। 2018 के चुनाव में उन्होंने विधानसभा की दावेदारी रायपुर उत्तर से की थी लेकिन अगली बार का आश्वासन मिला। इस बार फिर पूरी तैयारी और हर तरह से समीकरण में फिट बैठने के बाद नाम फाइनल होने का हल्ला भी मचा लेकिन अंतत: कांग्रेस ने विधायक कुलदीप जुनेजा को रिपीट कर दिया। पार्टी का यह फैसला नागवार गुजरा और अजीत बागी हो गए। उनके पिता का भी दिल कांग्रेस से टूट गया उन्होंने भी पार्टी की परवाह न कर नामांकन दाखिल कराने से लेकर अब तक के चुनाव प्रचार में लगातार अपने बेटे का साथ दिया। परिणाम आना था पहले बेटे को और फिर पिता को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
भाई आम आदमी पार्टी से मैदान में उतरा तो पूर्व विधायक को किया निष्कासित
कवर्धा में राजपरिवार के कांग्रेस से दो बार विधायक रह चुके योगेश्वर राज सिंह के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। 2018 के चुनाव में उन्होंने अपने लिए कवर्धा से टिकट मांगी थी। लेकिन कांग्रेस के कद़दावर नेता और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के करीबी मोहम्मद अकबर को वहां से टिकट दे दी गई। विधायक ने बागी होकर निर्दलीय मैदान में उतर गए थे। लेकिन यहां सरगुजा महाराज टीएस सिंहदेव की मध्यस्थता में उन्होंने नाम वापस लेकर मोहम्मद अकबर को पूरा सहयोग किया। बताते हैं कि राजपरिवार के सहयोग की वजह से ही मोहम्मद अकबर बाहरी प्रत्याशी होते हुए भी यहां से प्रदेश में सर्वाधिक मतों से विजयी हुई थे।
पूर्व विधायक का भूपेश पर आरोप
पूर्व विधायक योगेश्वर राज सिंह का आरोप है कि चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस के लोग मंत्री अकबर और सीएम भूपेश उन्हें भूल गए। वे जिला कांग्रेस कमेटी कवर्धा के अध्यक्ष रह चुके हैं, लेकिन उन्हें और समर्थकों को भी पार्टी की बैठकों की सूचना मिलना बंद हो गई। हाल ही में कांग्रेस पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के कार्यक्रम में किसी भी प्रकार से आमंत्रित नहीं किया गया। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को इसकी लिखित शिकायत की थी। इसके बावजूद किसी भी प्रकार की सूचना नहीं दी गई। अब लोहारा रियासत के राजा खड्गराज सिंह आम आदमी पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं तो अपने भाई का साथ देना मेरा कर्तव्य है। बिना नोटिस दिए अचानक प्रदेश कांग्रेस ने वोटिंग थमने के बाद निष्कासित पत्र जारी किया। कांग्रेस पार्टी से निष्कासित होने के बाद किसी अन्य पार्टी में प्रवेश करने के सवाल पर योगेश्वर राज सिंह ने सीधे-सीधे कोई भी पार्टी में जाने से इनकार किया है।
सचिव को अपने नेता के खिलाफ पार्टी में बोलना महंगा पड़ा
छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस ने प्रदेश सचिव मनीष श्रीवास्तव, विधायक प्रतिनिधि शिशिर श्रीवास्तव और सुरेश पाटले को अपने ही नेता के खिलाफ पार्टी फोरम में बोलना महंगा पड गया। तीनों से पार्टी की आंतरिक बैठक में कोंडागांव से वर्तमान विधायक मोहन मरकाम की जगह किसी दूसरे प्रत्याशी को उतारने की वकालत की थी। तीनों मोहन मरकाम के करीबी है, उनका कहना था कि प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद मोहन मरकाम पिछले तीन वर्षो से सक्रिय नहीं हैं, उनकी स्थिति क्षेत्र में कमजोर पड़ गई है। मोहन मरकाम को कोंडागाव से टिकट देने के बाद तीनों नेताओ को प्रचार के लिए दंतेवाड़ा भेज दिया गया। चुनाव खत्म हुआ तो 6 वर्षों के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया है। इन तीनों पर आरोप लगा कि चुनाव में बीजेपी के लिए काम करने में जुटे हुए थे। मनीष श्रीवास्तव की मानें तो उन्हें निलंबन के पूर्व कारण भी नहीं पूछा। उनका कहना है कि मैंने कभी भी बीजेपी का समर्थन नहीं किया है। मैंने पार्टी में यह बात जरुर रखी थी कि मोहन मरकाम का जनाधार कम है, उनकी जगह किसी और नए उम्मीदवार को टिकट दिया जाए। मुझ पर बीजेपी का प्रचार करने का जो आरोप लगा है, वह पूरी तरह गलत है। मुझे पार्टी ने ही दंतेवाड़ा प्रचार में भेजा था, मैं पार्टी के साथ था और साथ रहूंगा।
मरवाही के प्रत्याशी के खिलाफ 27 थे लामबंद निष्कासित हुए 6
मरवाही में 2020 में हुए उपचुनाव में विधायक बने डॉ केके ध्रुव को रिपीट करने पर कांग्रेस में बड़ी बगावत हो गई। विधायक के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए 27 दावेदारों ने एकजुटता दिखाई थी। लेकिन 2018 के प्रत्याशी गुलाब सिंह राज के जोगी कांग्रेस में जाने के बाद सभी 27 लोगों में फूट पड़ गई। गुलाब सिंह के समर्थन में जोगी कांग्रेस जाने वालों को कांग्रेस ने निष्कासित कर दिया। कांग्रेस छोड़कर जेसीसीजे में जाने वालों में मरवाही प्रत्याशी गुलाब राज, सरपंच संघ अध्यक्ष अजीत श्याम, वरिष्ठ कांग्रेसी नेता शंकर पटेल, गौरेला ब्लॉक कांग्रेस कार्यकारी अध्यक्ष मुद्रिका सर्राटी, नारायण आर्मो और गुलाब सिंह आर्मो शामिल है। लेकिन माना जा रहा है कि जो कांग्रेस में बचे हैं वे अब भी गुलाब राज के संपर्क में हैं। ऐसे में विधायक केके ध्रुव की राह आसान नहीं दिख रही है। केके ध्रुव बताते हैं कि 2018 में गुलाब राज कांग्रेस की टिकट पर मरवाही से विधानसभा चुनाव लड़े थे और उनकी जमानत जब्त हो गई थी। इस बार फिर वे टिकट की दावेदार कांग्रेस की ओर से कर रहे थे, लेकिन पार्टी ने उनका टिकट काट दिया। जिसके बाद कांग्रेस से बगावत कर जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ का दामन थाम लिया।
BJP ने किया 43 का निष्कासन खत्म किया, इतनों को दिखाया बाहर का रास्ता
2018 के बाद 15 सीटों पर सिमटन के बाद 2023 चुनाव के पहले अपने पुराने नेताओं को समेटना शुरू किया। आचार संहिता लगने के ठीक पहले पार्टी की प्रदेश अनुशासन समिति की अनुशंसा पर प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष अरुण साव ने बीजेपी से निलंबित, निष्कासित 43 नेताओं, कार्यकर्ताओं का निलंबन, निष्कासन समाप्त कर दिया। इनमें 2018 से लेकर अभी तक के नगर निगम, नगर पालिका और नगर पंचायतों में निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ने के कारण पार्टी ने जिनपर कार्रवाई की थी, उन्हें पार्टी में वापस ले लिया गया। लेकिन विधानसभा का टिकट वितरण होते ही बागियों ने तेजी से सिर उठाया। ज्यादातर जगहों पर डैमेज कंट्रोल हो गया लेकिन इसके बावजूद 12 लोगों को पार्टी से छह साल के निष्कासित करना पड़ा। इनमें से अधिकांश पार्टी से बागी होकर निर्दलीय या दूसरी पार्टी में जाकर चुनाव लड़ने वाले नेता शामिल हैं।