मनीष गोधा, JAIPUR. राजस्थान में इस बार भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस में चुनाव जीतने की ऐसी होड़ लगी है कि जिताऊ प्रत्याशी को अपने पक्ष में करने के लिए दोनों ही दलों ने अपनी विचारधारा और व्यवस्थाएं जैसे ताक पर धर दी हैं। स्थिति यह देखने में आ रही है कि जिसे टिकिट नही मिलता वह विरोधी दल में पहुंच जाता है। वहां उसे सदस्यता मिल जाती है और अगले ही दिन टिकिट भी पकड़ा दिया जाता है। राजस्थान के पिछले चुनावों में आमतौर पर ऐसा तीसरे मोर्चे के दल करते थे, लेकिन इस बार तो बीजेपी और कांग्रेस भी ऐसा ही करते दिख रहे हैं।
राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के नेताओं ने इस बार चुनाव से पहले साफ कर दिया था कि प्रत्याशी चयन में एकमात्र फार्मूला विनेबिलिटी का रहेगा। यानी जो जिताऊ होगा उसी को टिकट दिया जाएगा। लेकिन इस जिताऊ वाले फार्मूले के चलते इस बार दोनों ही दलों में बहुत कुछ ऐसा होता देखा जा रहा है जो पहले नहीं देखा गया। बीजेपी और कांग्रेस आमतौर पर अंतिम समय में दल बदल करके आने वाले लोगों को टिकट देने से परहेज करते रहे हैं लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो रहा है। खासतौर पर भारतीय जनता पार्टी जो अपने विचारधारा और संस्कारों की बात करती है वहां पर भी बरसों तक कांग्रेस में काम करने वाले लोगों को ना सिर्फ सदस्यता दी जा रही है बल्कि टिकट भी थमाए जा रहे हैं। यही स्थिति कांग्रेस में भी दिख रही है। वहीं जिन लोगों को इन दोनों दलों में टिकट नहीं मिल रहा है उनके लिए हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी और मायावती की पार्टी बसपा के द्वार खुले हैं जहां इन्हें जाते ही टिकट मिल जाता है।
आइए देखते हैं कैसे दल बदलुओं की हो रही है पौ बारह
कांग्रेस
कांग्रेस अब तक भाजपा के तीन बागी नेताओं को टिकट दे चुकी है। इनमें विकास चौधरी को किशनगढ़, शोभारानी कुशवाह को धोलपुर और सुरेंद्र गोयल को जैतारण से टिकट दिया गया है।
विकास चौधरी: 2018 में किशनगढ़ से भाजपा के प्रत्याशी थे। इस बार टिकट कटा तो पहले निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा की और फिर कांग्रेस में शामिल हो गए और पार्टी ने उन्हें किशनगढ़ से टिकट भी दे दिया
सुरेंद्र गोयल: वसुंधरा राजे की पिछली सरकार में मंत्री थे। वर्ष 2018 के चुनाव में पार्टी ने उनका टिकट काट दिया। इस पर उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। इस बार में कांग्रेस में शामिल हो गए हैं और पार्टी ने उन्हें जैतारण से उम्मीदवार बना दिया है।
शोभारानी कुशवाह: 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर धोलपुर सीट जीतीं थी। लेकिन राज्यसभा के चुनावों में उन्होंने भाजपा के व्हिप का उल्लंघन कर कांग्रेस प्रत्याशी को वोट किया। इसके बाद भाजपा ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया। पिछले दिनों झुंझुनू में प्रियंका गांधी की सभा में उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता लिए और उसके अगले ही दिन पार्टी इन्होंने धौलपुर सीट से कांग्रेस का प्रत्याशी बना दिया।
इमरान खान: इमरान को कांग्रेस पार्टी ने तिजारा विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इमरान खान ने पिछली बार इसी सीट से बसपा के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था और इस बार भी बसपा ने उन्हें यहां से उम्मीदवार बना दिया था लेकिन उन्हें कांग्रेस ने हाईजैक कर लिया और टिकट भी दे दिया।
ममता शर्मा: भाजपा से कांग्रेस में एक और नेता ममता शर्मा की वापसी हुई है। वे बूंदी से विधायक रह चुकी हैं। पिछली बार टिकट नहीं मिला तो बीजेपी में चली गई थी। इस बार बीजेपी से टिकट की संभावना को नहीं देखते हुए फिर से कांग्रेस में आ गई है और अपने बेटे के लिए टिकट चाह रही है।
बीजेपी
कांग्रेस के मुकाबले इस बार बीजेपी ने दल बदल कर आने वाले लोगों को ज्यादा मौके दिए हैं और उनमें कांग्रेस के कई महत्वपूर्ण नाम शामिल है।
ज्योति मिर्धा: ज्योति मिर्धा कांग्रेस की सांसद रह चुकी हैं और 2014 तथा 2019 में नागौर सीट से ही कांग्रेस की सांसद प्रत्याशी भी रह चुकी है। कुछ समय पहले उन्हें भारतीय जनता पार्टी में सदस्य बनाया गया और अब पार्टी ने उन्हें नागौर से टिकट भी दे दिया है।
सुभाष महरिया: सुभाष महरिया केंद्र में अटल बिहारी वाजपेई की सरकार में मंत्री थे। बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए। पिछले लोकसभा चुनाव में सीकर से कांग्रेस के टिकट पर लड़े। भाजपा के सुमेधानंद से हारे। इस बार लक्ष्मण गढ़ से कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के सामने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।
शिवचरण कुशवाह: कुशवाह 2018 में कांग्रेस के टिकट पर धोलपुर सीट से चुनाव लड़े थे। इनकी रिश्तेदार भाजपा प्रत्याशी शोभारानी कुशवाह ने इन्हें चुनाव हराया था। कुछ समय पहले वे बीजेपी में शामिल हुए और अब स्थिति यह है कि इस बार धोलपुर सीट से शोभारानी कांग्रेस प्रत्याशी हैं और शिवचरण कुशवाह बीजेपी के प्रत्याशी बन गए हैं।
दर्शन सिंह गुर्जर, सुभाष मील और उदय लाल डांगी को पार्टी ने गुरुवार को जारी सूची में करौली, खंडेला और वल्लभनगर सीट से प्रत्याशी बनाया है। दर्शन सिंह गुर्जर और सुभाष मील बरसों तक कांग्रेस में काम कर चुके हैं और दर्शन सिंह गुर्जर तो विधायक भी रह चुके हैं। उदयलाल डांगी हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी में थे। तीनों ने ही बुधवार को पार्टी की सदस्यता ली थी और गुरुवार को ही है उन्हें उनकी चाही गई सीटों से प्रत्याशी बना दिया गया।
इनके अलावा जयपुर में कांग्रेस के दो बड़े नेता रहे सुरेश मिश्रा और पूर्व महापौर ज्योति खंडेलवाल ने भी भारतीय जनता पार्टी के सदस्यता ली है। इनमें से ज्योति खंडेलवाल को किशनपोल विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया जाना लगभग तय माना जा रहा है।
वही उदयपुर राजघराने के सदस्य विश्वराज सिंह मेवाड़ को पार्टी ने नाथद्वारा सीट से टिकट दिया है। इन्हें भी पार्टी ने शामिल होते ही टिकिट दिया वहीं पूर्वी राजस्थान में पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना को लेकर आंदोलन चला रहे रामनिवास मीणा को गुरुवार शाम को पार्टी में शामिल किया गया और शुक्रवार सुब्श उन्हें टोडाभीम सीट से प्रत्याशी बना दिया गया।
आरएलपी और बीएसपी
सांसद हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी और मायावती की पार्टी बसपा राजस्थान में सक्रिय तो है लेकिन निचले स्तर पर उनके पास संगठन और नेताओं की कमी है। यही कारण है कि यह दोनों ही दल बीजेपी और कांग्रेस के बागियों की शरणगाह बन गए हैं। कांग्रेस ने पूर्व मंत्री भरोसी लाल जाटव का टिकट कटा तो उन्होंने अपने बेटे के साथ दो दिन पहले ही बसपा ज्वाइन कर ली। वहीं भाजपा ने भी पूर्व विधायक जसवंत सिंह गुर्जर का टिकट कटा तो वह भी बसपा की शरण में चले गए। इनके अलावा कांग्रेस के प्रदेश पदाधिकारी रहे रामलाल चौधरी को बसपा ने सांगानेर से टिकिट दे दिया वही पूर्व विधायक रामचंद्र सरधना विराटनगर से आरएलपी का टिकिट पा गए। भाजपा के दिग्गज नेता रहे पूर्व मंत्री रोहिताश शर्मा को आरएलपी की सहयोगी पार्टी आजाद समाज पार्टी ने बानसूर से विधायक का टिकट दे दिया। लंबे समय तक कांग्रेस में सक्रिय रहे प्रोफेसर विक्रम सिंह गुर्जर भी आरएलपी के सदस्य बनकर देवली उनियारा सीट से पार्टी के प्रत्याशी बन गए हैं।
दल बदल कर आने वाले लोगों को टिकट देने के मामले में दोनों ही दलों के नेता ऑन रिकॉर्ड कुछ कहने के लिए तैयार नहीं है क्योंकि यह निर्णय पार्टी आला कमान के स्तर का है। हालांकि हालांकि आपसे बातचीत में वे इसे बहुत गलत मानते हैं क्योंकि इससे पार्टी का आम कार्यकर्ता निराश हो जाता है।