ASHOKNAGAR/NEW DELHI. गीता में लिखा है शरीर नश्वर है, जिस प्रकार हम कपड़े बदलते रहते हैं उसी प्रकार आत्मा केवल शरीर बदलती रहती है। लेकिन भारतीय लोकतंत्र में कुछ नेता ऐसे भी हैं जिनकी जातियां बदलती रहती हैं। ताजा मामला अशोक नगर विधायक जजपाल सिंह जज्जी का रहा। सुप्रीम कोर्ट ने तो उन्हें राहत प्रदान कर दी है लेकिन बीत समय में ग्वालियर हाईकोर्ट ने उनका निर्वाचन शून्य कर दिया था, फिर हाईकोर्ट में डबल बेंच ने उनके जाति प्रमाण पत्र को सही करार दिया था।
यह है मामला
दरअसल बीजेपी नेता लड्डूराम कोरी ने विधायक जज्जी की जाति का मामला अदालत में उठाया था। कोरी द्वारा दायर याचिका में यह दलील दी गई थी कि जजपाल सिंह जज्जी नट जाति से ताल्लुक रखते हैं, और उनके पास पंजाब राज्य का जाति प्रमाण पत्र है। मध्यप्रदेश में नट जाति अनुसूचित जाति की श्रेणी में नहीं आती, अतः वे सामान्य जाति के हैं। इसलिए सुरक्षित सीट से चुनाव लड़कर निर्वाचित हुए जज्जी का निर्वाचन शून्य किया जाना चाहिए। हाई कोर्ट की ग्वालियर बेंच में यह मामला याचिकाकर्ता लड्डूराम कोरी के पक्ष में आया था परंतु डबल बेंच ने जजपाल सिंह जज्जी के पक्ष में फैसला सुनाया।
यह कहा सुप्रीम कोर्ट ने
इस मामले में हाईकोर्ट की डबल बेंच के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को शीर्ष कोर्ट ने यह कहकर सुनने से इनकार कर दिया कि जब हाई कोर्ट ने जाति प्रमाण पत्र को सही माना है तो हम इस पर सुनवाई नहीं करेंगे।
राज्य ही नहीं जिले बदलने पर भी बदल जाती है जाति
मध्यप्रदेश में अनेक जातियां ऐसी भी हैं जो राज्य क्या जिला बदलने पर भी बदल जाती हैं। मसलन मांझी जाति का ही उदाहरण समझ लें। मांझी जाति मध्यप्रदेश के अनेक जिलों में पिछड़ा वर्ग में आती है, वहीं कुछ जिलों में इसे जनजाति का दर्जा प्राप्त है।
पूर्व मंत्री मोती कश्यप की जाति पर भी हुआ था विवाद
इससे पहले पूर्व मंत्री मोती कश्यप की जाति पर भी विवाद हो चुका है, मोती कश्यप की जाति मांझी है। जबकि मांझी जाति के कुछ जिलों के मूल निवासी ओबीसी में आते हैं और कुछ जिलों की मूल निवासी मांझी अनुसूचित जनजाति में। मोती कश्यप ने भी अपनी जाति को लेकर अदालत में लंबी लड़ाई लड़ी थी और अंततः फैसला उनके पक्ष में आया था।