मनीष गोधा @ JAIPUR.
हैलिकाप्टर, कारों का काफिला और मोटर साइकिल रैली से चुनावों में चौड़ जमाना अब पुरानी बातें हो चुकी हैं। इस बार स्वागत का नया शगल है- JCB से फूलों की बरसात… राजस्थान से शुरू हुआ यह सिलसिला अब मप्र में भी शुरू हो चुका है। दरअसल नेताओं के भव्य स्वागत के लिए हैलिकाॅप्टर से फूल बरसाने के खर्च को हर कोई अफोर्ड नहीं कर सकता, इसलिए क्रेन या जेसीबी जैसे भारी वाहनों से फूल बरसाने का नया ट्रेंड शुरू हुआ है। राजस्थान, मध्यप्रदेश जैसे चुनावी राज्यों में इसका जबर्दस्त इस्तेमाल देखा जा रहा है। चिंता की बात यह है कि इन भारी उपकरणों के ऐसे सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए कोई नियम-कायदे ही नहीं हैं। प्रशासन की ओर से कार्यक्रम की अनुमति देते समय यूं तो कई शर्तें लगाई जाती हैं, लेकिन भीड़ भरे कार्यक्रमों में ऐसे भारी उपकरणों या वाहनों के इस्तेमाल को लेकर कोई गाइड- लाइन नहीं है। ऐसे में कहीं कोई अनहोनी हो जाए तो जवाब कौन देगा? जिम्मेदारी कौन लेगा? पता नहीं!
यूपी से शुरुआत तो राजस्थान ने तरीका बदला
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपराधियों को सबक सिखाने के लिए उनकी सम्पत्तियों पर बुल्डोजर चलाने की शुरुआत की और उनके चाहने वालों ने उन्हें बुल्डोजर बाबा तक बना दिया। अब चुनावी राज्यों में यही बुल्डोजर भाजपाई बेहतर कानून व्यवथ्स्था की गारंटी के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। यूपी में जब भाजपा की सरकार बनी तो पार्टी के राजस्थान में तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया बुल्डोजर के काफिले के साथ पार्टी कार्यालय पहुंचे थे। वहीं इन दिनों पार्टी की परिवर्तन यात्रा चल रही है और कई जगह इसका स्वागत बुल्डोजर और क्रेन के जरिए फूल बरसाकर किया गया है। पार्टी की परिवर्तन यात्रा के संयोजक नारायण पंचारिया ने पिछले दिनों मीडिया से बातचीत में यहां तक कहा कि बुल्डोजर आतताई के विध्वंस का प्रतीक है।
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अन्य दल भी कर रहे है इस्तेमाल
हालांकि बुल्डोजर के जरिए फूल बरसा कर स्वागत करने का ट्रेंड अब सिर्फ भाजपा तक सीमित नहीं रह गया है। पिछले दिनों नागौर जिले के परबतसर में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के संयोजक हनुमान बेनीवाल का स्वागत करने के लिए यही तरीका इस्तेमाल किया गया। वहीं कांग्रेस के नेता सचिन पायलट का भी पिछले दिनों जयपुर से अजमेर जाते समय कुछ जगहों पर इसी तरह फूल बरसा कर स्वागत किया गया।
भव्य लगता है, इसलिए करते हैं
जोधपुर की लूणी विधानसभा सीट पर दो दिर पहले भाजपा की परिवर्तन यात्रा का स्वागत इसी तरह किया गया था। यह इंतजाम करने वाले पार्टी के जोधपुर दक्षिण देहात के जिला सचिव रमेश विश्नोई कहते हैं कि इस तरह का स्वागत में भव्यता आ जाती है। पहले कार्यकर्ता नीचे खडे़ होकर फूल बरसाते थे तो मजा नहीं आता था। अब क्रेन में चढ़कर फूल बरसाते हैं तो ज्यादा अच्छा लगता है। विश्नोई कहते हैं कि खतरे जैसी कोई बात नहीं है, क्योंकि क्रेन भारी होती है और एक जगह खड़ी कर दी जाती है। इसे कार्यक्रम खत्म करने के बाद ही हटाया जाता है। हालांकि दुर्घटना की आशंका को अस्वीकार नहीं करते। दरअसल राजस्थान में माइनिंग का काम काफी होता है। इसलिए ऐसे वाहन आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। विश्नोई बताते हैं कि दूरी के हिसाब से इनका किराया तय होता है। जैसे पांच किलोमीटर के लिए ये 2000 रुपए तक लेते हैं।
नहीं हैं कोई नियम
क्या क्रेन या बुल्डोजर जैसे उपकरणों के ऐसे इस्तेमाल को लेकर कोई सरकारी गाइडलाइन है? इस बारे में हमने पता करने की कोशिश की तो ऐसी कोई गाइडलाइन नजर नहीं आई। खनन के काम और मनरेगा के कामों में इनके इस्तेमाल को लेकर कुछ नियम जरूर बने हुए हैं, लेकिन सार्वजनिक स्थानों पर इन्हें स्वागत जैसे कामों के लिए इस्तेमाल करने के बारे में कोई नियम नहीं है। इस बारे में जब हमने परबतसर जहां हनुमान बेनीवाल का कई जेसीबी से स्वागत किया गया था, वहां के उपखण्ड अधिकारी बलबीर सिंह से बात की तो उनका कहना था कि कार्यक्रम की स्वीकृति जारी करते समय हमारा मुख्य फोकस कानून-व्यवस्था पर ही रहता है। सरकार की ओर से जो शर्तें लगाई जाती हैं, उनमें आयोजकों से कानून-व्यवस्था बनाए रखने की अपेक्षा की जाती है। जेसीबी का इस्तेमाल कर सकते हैं या नहीं इसे लेकर अलग से कोई नियम नहीं है। वहीं जयपुर के एडिशनल पुलिस कमिश्नर कुंवर राष्ट्रदीप ने तो यह कहते सवाल खारिज कर दिया कि जयपुर में ऐसे स्वागत अभी हुए ही नहीं हैं। इसलिए वे इस बारे में क्या कह सकते हैं। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम की अनुमति लेने वाला यह थोडे़ ही बताएगा कि वह किसी का कैसे स्वागत करेगा?
ये भारी उपकरण मोटर वाहन अधिनियम में भी नहीं आते
स्थिति यह है कि इन क्रेन और बुल्डोजर जैसी अर्थ मूविंग और भारी मशीनों के रजिस्ट्रेशन और चलाने के लिए रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस तक की जरूरत नहीं है। क्योंकि इन्हें एक मशीन माना गया है और ये मोटर वाहन अधिनियम में शामिल तक नहीं हैं। इस बारे में जुलाई 2020 में केंद्र सरकार सभी राज्यों को निर्देश दे चुकी है कि इनके रजिस्ट्रेशन या ड्राइविंग लाइसेंस के लिए जोर ना डाले।
बहरहाल भले ही इनके लिए कोई नियम कायदे ना बने हों, लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि नेताओं के स्वागत का यह तरीका किसी भी दिन किसी बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकता है और शायद तभी सरकारें जागेंगी।