मध्यप्रदेश में BJP ने निकाला बगावत का तोड़, अब मंत्री-विधायक खुद देंगे कुर्बानी, क्या ऐसे खत्म होगी नाराजगी?

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Harish Divekar
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मध्यप्रदेश में BJP ने निकाला बगावत का तोड़, अब मंत्री-विधायक खुद देंगे कुर्बानी, क्या ऐसे खत्म होगी नाराजगी?

असंतोष पर ‘मनमानी’, मंत्री देंगे बड़ी ‘कुर्बानी’

विधायकों का ‘त्याग’, बचाएगा बीजेपी की ‘लाज’

BHOPAL. बीजेपी में नेताओं में नाराजगी, कार्यकर्ताओं में असंतोष- ये सारी बातें कई बार हो चुकीं। मध्यप्रदेश बीजेपी में अब ये बात नई नहीं है। अगर कुछ नया है तो बीजेपी का साइक्लोजिकल ट्रीटमेंट। जी हां आप यकीन नहीं करेंगे, लेकिन बीजेपी अब किसी रणनीति या पॉलीटिकल प्लानिंग से अपने कार्यकर्ताओं को मनाने की कोशिश में नहीं है। बल्कि अब रिवर्स साइक्लोजी के साथ बीजेपी अगली कुछ लिस्ट जारी करने की तैयारी है। कोशिश ये है कि बगावत का सांप भी मर जाए और कार्यकर्ताओं नाम की लाठी भी न टूटे, लेकिन पार्टी की इस मंशा को पूरा करने के लिए मंत्री और विधायकों को बड़ी कुर्बानी देनी होगी।

बीजेपी रिवर्स साइक्लोजी से ट्रीटमेंट की तैयारी में

बीजेपी की इस रिवर्स साइक्लोजी को समझने से पहले रिवर्स साइक्लोजी क्या होती है ये समझ लीजिए। वो भी थोड़ी आसान भाषा में। प्रश्न उत्तर वाली साईट कोरा के मुताबिक रिवर्स साइक्लोजी का मतलब होता है विपरीत मानसिकता। मसलन नो पार्किंग के बोर्ड के सामने गाड़ी खड़ी कर खुश होना, लेकिन मध्यप्रदेश में अब बीजेपी इस रिवर्स साइक्लोजी को एक ट्रीटमेंट के तौर पर लेने वाली है। आने वाली कुछ लिस्ट में इसके उदाहरण भी देखने को मिल सकते हैं। इस थेरेपी के जरिए बीजेपी की तैयारी ये है कि जिन मंत्री और विधायकों के टिकट काटने हैं। उनके टिकट भी काट लिए जाएं और कार्यकर्ता भी इस बात से नाराजगी न जता सके। इसके लिए बीजेपी ने जबरदस्त प्लानिंग की है। जिसके नतीजे दिखने लगे हैं और जल्द और भी ज्यादा नजर आएंगे।

बीजेपी ने इससे पहले ऐसी रणनीति कभी नहीं अपनाई

इस रिवर्स साइक्लोजी की पहली दवा है वो चिट्ठी जो मंत्री और विधायकों से लिखवाई जानी है। बीजेपी इतने सालों से प्रदेश में चुनाव लड़ रही है और जीतती भी आ रही है, लेकिन ऐसी रणनीति बीजेपी को इससे पहले कभी नहीं अपनानी पड़ी। अब मजबूती ये है कि लगातार जीत रहे नेताओं की वजह से हो रही एंटी इंकंबेंसी से भी निपटना है और कद्दावर नेता का टिकट काटने के बाद कार्यकर्ताओं में गुस्सा फैलने से भी रोकना है। इसके लिए नई जुगत लगाई गई है। जो मध्यप्रदेश की राजनीति में शायद पहली बार ही बड़े स्तर पर नजर आने वाली है।

आने वाली लिस्ट में बीजेपी के विधायक बतौर मंत्री वाली सीटें होंगी

बीजेपी इस बार प्रदेश में मल्टीपल स्ट्रेटजीस या यूं कहें कि एक्सपेरिसमेंट के साथ उतर रही है। कामयाब हुए तो सरकार बन ही जाएगी। नाकाम हुए तो प्रयोग के नतीजे समझ में आ जाएंगे। खैर अब तक कार्यकर्ताओं को बागी बनने से रोकने के लिए तमाम कवायदें हो चुकी हैं। कुछ कवायदें कुछ हद तक कामयाब भी रहीं, लेकिन प्रत्याशियों की लिस्ट जारी होने के बाद उस बगावत में फिर उफान देखा गया। ये हाल तो तब है जब बीजेपी ने बहुत बचते बचाते ज्यादा ऐसी सीटें चुनी जहां फिलहाल कांग्रेस काबिज है, लेकिन अब आने वाली लिस्ट में ऐसी सीटें भी शामिल होंगी जहां बीजेपी के विधायक बतौर मंत्री भी काबिज हैं। जाहिर है इन सीटों पर सख्त फैसला तो लेना ही होगा।

नए ट्रीटमेंट में मंत्री-विधायक खुद कहेंगे कि चुनाव नहीं लड़ना चाहते

अब चुनाव नजदीक हैं ऐसे समय में कोई भी सख्त फैसला बीजेपी के गले की फांस भी बन सकता है। इस मुश्किल का तोड़ भी बीजेपी को ही निकालना है। सो निकाल लिया गया है। जिसे हम बीजेपी का रिवर्स साइक्लोजी ट्रीटमेंट कह सकते हैं। नई युक्ति कुछ यूं है कि अब पार्टी की ओर से मंत्री या विधायक का टिकट नहीं कटेगा। बल्कि, मंत्री या विधायक खुद पत्र लिख कर पार्टी से कहेंगे कि वो चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं। सूत्रों की मानें तो इसकी शुरूआत हो भी चुकी है।

  • यशोधरा राजे सिंधिया खुद पत्र लिख कर चुनाव लडने से इंकार कर चुकी हैं। उन्होंने अपनी तबियत के हवाले से ये फैसला लेना बताया है।
  • पिता को टिकट मिलने के बाद आकाश विजयवर्गीय भी चुनाव न लड़ने के लिए पत्र लिख चुके हैं।
  • कैबिनेट मंत्री बिसाहूलाल सिंह, प्रेमसिंह पटेल, ब्रजेन्द्र प्रताप सिंह, राज्यमंत्री रामखिलावन पटेल, राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) इंदर सिंह परमार के नाम भी इसी चर्चा का हिस्सा हैं।
  • वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा का नाम भी लाल घेरे में बताया जा रहा है।
  • 6 बार से जीतने वाले पारस जैन और गोपीलाल जाटव पर भी फैसला बाकी है।
  • ऐसे सात विधायक हैं जो पांच बार चुनाव जीत चुके हैं।
  • 14 विधायक ऐसे हैं जो 4 बार चुनाव जीत चुके हैं।

जिनके खिलाफ एंटी इंकंबेंसी है उन्हें भी नहीं मिलेगा टिकट

हालांकि, ये सारी अटकलें फिलहाल सूत्रों के हवाले से है। यशोधरा राजे सिंधिया की चिट्ठी के बाद से ऐसी खबरों ने जोर पकड़ लिया है, लेकिन इतना तय माना जा रहा है कि सर्वे में जिन मंत्री और विधायकों की रिपोर्ट खराब आई है या जिनके खिलाफ जबरदस्त एंटी इंकंबेंसी है उन्हें टिकट नहीं दिया जाएगा। संभव है कि पार्टी उन्हें दूसरी बड़ी जिम्मेदारी दे दे।

भीतरघात का खतरा बना भी रहेगा

चुनावी पंडितों को डर इस बात का है कि रिवर्स साइक्लोजी के लिए किए जा रहे उपाय का असर उल्टा भी पड़ सकता है। हो सकता है इसके पहले चरण में कामयाबी मिल जाए और कार्यकर्ता इसलिए नाराजगी न जताएं क्योंकि उनके ही नेता ने खुद चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया है, लेकिन जिन मंत्री या विधायकों पर दबाव डलवा कर ये चिट्ठी लिखवाई जाएगी वो क्या खामोश बैठेंगे। कार्यकर्ताओं की नाराजगी न सही, लेकिन भीतरघात का खतरा बना भी रहेगा और बढ़ भी सकता है।

उम्मीद है कि बहुत जल्द बीजेपी बची हुई सीटों पर उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर देगी। भाजपा फिलहाल 79 नाम डिक्लेयर कर चुकी है।

बीजेपी के लिए कुछ सीटों पर स्थिति आगे कुआं पीछे खाई वाली है। सीट जीतने के लिए वहां मौजूद नेता का टिकट काटते हैं तो बगावत खतरा बन जाती है और नहीं काटते हैं तो एंटीइंकंबेंसी मुसीबत बढ़ा रही है। ऐसे में बीजेपी ने इस नई रणनीति से कुएं और खाई पर एक पुल बनाने की कोशिश जरूर की है। अब ये पुल कितना मजबूत है और जीत तक ले जा पाता है या नहीं इसके लिए चुनावी नतीजों का इंतजार तो करना ही होगा, लेकिन उससे पहले के हालात भी ये साफ कर ही देंगे कि अपनी इस कोशिश में बीजेपी कितनी कामयाब होती है।

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