संजय गुप्ता, INDORE. विधानसभा चुनाव के प्रत्याशी लिस्ट आने से पहले बीजेपी से कई नेताओं के नाम चले और इसमें सबसे बड़ा नाम बीजेपी नगराध्यक्ष गौरव रणदिवे का था। इनका दावा विधानसभा पांच से लेकर राउ और विधानसभा तीन तक था, लेकिन हाथ एक भी सीट नहीं आई। द सूत्र ने पहले ही खुलासा कर दिया था कि इनका टिकट नहीं हो रहा है, क्योंकि बीजेपी प्रदेश के दो बड़े नेताओं ने इनके नाम पर आपत्ति ले ली है। अब यह आपत्ति क्यों ली गई? टिकट कटा क्यों हैं? दरअसल इसकी बुनियाद अभी नहीं बल्कि महापौर चुनाव के समय ही हो गई थी और आखिर में एक धर्मगुरू की शिकायत और संघ की सलाह नहीं मानना रणदिवे को भारी पड़ गई।
इस तरह हुई बड़े नेताओं के साथ खटास की शुरूआत
महापौर चुनाव के नाम जब चले और डॉ. निशांत खरे का नाम तय हुआ तब बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने नाम को लेकर आपत्ति ली और उन्होंने दूसरा नाम आगे पुष्यमित्र भार्गव का नाम पर सहमति दी। संघ की ओर से भी उनके नाम पर हरी झंडी थी, नाम तय हो गया। इसी दौरान रणदिवे ने यह बात कही कि भाईसाहब हर जगह उनका (पुष्यमित्र) का नाम आगे बढ़ा देते हैं।
इसके बाद महापौर चुनाव के समय नगर संगठन का रूख ठंडा रहा। हालत यह रही कि वोटिंग प्रतिशत काफी गिर गया और संगठन सकते में आ गया। इससे संगठन स्तर पर रणदिवे के लिए नकारात्मक संदेश गया। दोनों पुराने मित्र भार्गव और रणदिवे के बीच भी संबंधों में दूरी आ गई।
फिर बात आई नगराध्यक्ष के कार्यकाल पूरा होने की। बीजेपी भोपाल से कहा गया कि कार्यकाल पूर हो गया है टिकट चाहिए तो पद छोड़कर तैयारी में लग जाओ। लेकिन रणदिवे ने इस सलाह का नकार दिया, तब बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष से वीडी शर्मा के हटने की खबरें जोर पकड़ रही थी। ऐसे में रणदिवे ने इस सलाह को दरकिनार कर दिया। इसके बाद भोपाल संगठन से उनकी दूरी बढ़ गई।
एक धर्मगुरू ने भी कर दी थी शिकायत
सूत्रों के अनुसार कुछ माह पहले रणदिवे और एक बिल्डर के बीच विवाद हुआ। यह बिल्डर सीधे एक समाज के धर्मगुरू से जुड़ा हुआ था। बात धर्मगुरू तक पहुंच गई और वहां से बात पार्टी में उच्च स्तर पर पहुंच गई। इस शिकायत ने भी उनके नाम को बड़ा नुकसान पहुंचाया।
आखिर में संघ की सलाह नहीं मानना पड़ गई भारी
इन सभी घटनाओं ने बीजेपी के दोनों बड़े नेताओं कैलाश विजयर्गीय और वीडी शर्मा ने रणदिवे से दूर कर दिया। जिसका सीधा असर टिकट कमेटी की बैठकों में हो गया। उधर रही सही कसर संघ से हो गई। दरअसल बीजेपी छोड़ने के पहले प्रमोद टंडन ने संघ के अर्चना दफ्तर जाकर मालवा प्रांत प्रचारक बलिराम पटेल से मुलाकात की और कहा कि उन्हें संगठन में कोई काम की जिम्मेदारी नहीं मिल रही है, मुझे पद नहीं चाहिए, लेकिन काम चाहिए। पटेल ने गौरव रणदिवे को बुलाकर कहा कि वह व्यक्ति काम मांग रहा उसे काम दे दो। लेकिन रणदिवे ने कोई जिम्मेदारी नहीं दी, टंडन ने बार-बार यह बात उठाई और संघ की ओर से कई बार रणदिवे को फोन गए। लेकिन कुछ नहीं हुआ और आखिर में टंडन ने बीजेपी छोड़ दी और कांग्रेस में वापसी कर ली, जो संघ को नागवार गुजरा। यह फीडबैक भी पार्टी स्तर पर पहुंच गया।
इसलिए तीनों विधानसभा से कट गए रणदिवे
बीजेपी ने राउ प्रत्याशी तो पहले ही तय कर दिया था इसलिए रणदिवे वहां से कट गए। बात विधानसभा तीन और पांच की बची। विधानसभा तीन में विजयवर्गीय गुट के साथ उनकी पटरी बैठ नहीं रही थी इसलिए वह खुद भी विधानसभा पांच के लिए ही जोर आजमाइश कर रहे थे और उन्हें समर्थन सुहास भगत और हितानंद शर्मा की ओर से ही मिल रहा था। लेकिन इंदौर विधानसभा पांच के लिए उनके नाम की बात चली, भले ही सर्वे में आगे थे लेकिन इन सभी कारणों के चलते पत्ता कट गया।
दीपक (टीनू) जैन और माला ठाकुर को अभी इंतजार
युवा दावेदारों में इंदौर से दीपक उर्फ टीनू जैन और माला ठाकुर का भी नाम प्रारंभिक स्तर पर चला। लेकिन कैलाश विजयवर्गीय के विधानसभा एक में आने के बाद उनका नाम हट गया। लेकिन सूत्रों के अनुसार उनका नाम अब बीजेपी नगराध्यक्ष के लिए सबसे प्रमुखता से है, हालांकि विधानसभा चुनाव में किए गए काम और नतीजे आगे भविष्य तय करेंगे। वहीं माला ठाकुर का भी नाम प्रारंभिक स्तर पर चर्चा के बाद हटा, क्योंकि बीजेपी इस चुनाव में पुराने जमे हुए चेहरों मालिनी गौड़ और ऊषा ठाकुर की ओर जा रही थी। वहीं दोनों को आगे की राजनीति के लिए देखा जा रहा है, क्योंकि अगले चुनाव तक महिला आरक्षण संभव है और दूसरा कई बड़े चेहरे पांच साल बाद सक्रिय राजनीति से दूर हो सकते हैं, हालांकि इसका जवाब भविष्य में ही मिलेगा।