बीजेपी ने मध्यप्रदेश में भुला दी जेपी नड्डा की सीख! क्या तर्जुबेकार नेताओं को भुलाना चुनाव में BJP को देगा बड़ा डेंट?

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Harish Divekar
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बीजेपी ने मध्यप्रदेश में भुला दी जेपी नड्डा की सीख! क्या तर्जुबेकार नेताओं को भुलाना चुनाव में BJP को देगा बड़ा डेंट?

BHOPAL. कुछ ही समय पहले बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अपनी पार्टी के नेताओं को समझाइश दी थी। उन्होंने कहा था कि पार्टी में बड़ों का सम्मान करेंगे और छोटों को साथ लेकर चलेंगे। पांचवी बार सरकार सिर्फ ऊर्जावान लोगों के सहारे नहीं चल सकती तजुर्बे की जरूरत होगी। इस सीख के बाद ये उम्मीद थी कि पार्टी के बुजुर्ग नेताओं को पूरी तवज्जो मिलेगी, लेकिन जेपी नड्डा की सीख भुलाते हुए पार्टी के नेताओं को जरा भी देर नहीं लगी। बीजेपी में साइडलाइन होते बुजुर्ग नेताओं को आमतौर पर मार्गदर्शक मंडल के सदस्यों का नाम दे दिया जाता है, लेकिन मध्यप्रदेश में ये दिग्गज चुपचाप इस इंतजार में बैठने के मूड में नहीं हैं कि उनके पास कोई आएगा और मार्गदर्शन लेगा। उनमें से अधिकांश मुखर हैं और अपनी अनदेखी पर नाराजगी भी जता रहे हैं। हालांकि, कुछ ऐसे भी हैं जो खामोश हैं। शायद उन्हें किसी किस्म के कंपंसेशन का इंतजार अब भी बाकी है।

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यात्रा में न बुलाने से वरिष्ठों की नाराजगी खुलकर सामने आई

बीजेपी में गुटबाजी और नाराजगी छुपाए नहीं छुप रही। कार्यकर्ता तो खुलकर अपनी बात संगठन के सामने रख चुके हैं। अब बारी प्रदेश के दिग्गज नेताओं की है। जिन्हें अपनी अनदेखी पर गुस्सा तो था, लेकिन पार्टी के पुराने निष्ठावान नेता होने के नाते शांत थे। जनआशीर्वाद यात्रा के नए फॉर्मेट ने उनके गुस्से को भी भड़का दिया है। हर बार ये यात्रा सिंगल फेस यानी कि सीएम के चेहरे के साथ निकलती और पूरी होती थी। इस बार कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करने के लिए हर अंचल के दिग्गज को यात्रा का चेहरा बना दिया गया। कार्यकर्ताओं की नाराजगी कम हुई या नहीं फिलहाल इसका आकलन नहीं किया जा सकता, लेकिन इससे उन वरिष्ठ नेताओं का गुस्सा जरूर भड़क गया जो अब तक तो मन मसोसकर शांति से बैठे हुए थे, लेकिन यात्रा का बुलावा तक न मिलने से उनकी नाराजगी खुलकर सामने आ गई।

उमा ने भी सरकार बनाने में अपनी अहमियत की याद दिलाई

उमा भारती हमेशा की तरह पार्टी से अपनी नाराजगी जताने से नहीं चूकी। प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनाने में अपनी अहमियत भी याद दिला दी। उमा की नाराजगी ने पुराने नेताओं के गुस्से की आग में घी का काम किया। आग भड़क कर उन दिग्गज नेताओं तक पहुंच चुकी है। उमा भारती की तरह उन नेताओं ने भी नाराजगी जताई ही दी। इसमें भी कोई दो राय नहीं कि उनके गुस्से का असर उनके क्षेत्र के कार्यकर्ताओं में भी नजर आएगा ही।

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रघुनंदन शर्मा ने भी अपनी नाराजगी जाहिर की

उमा भारती के अलावा मध्यप्रदेश में बीजेपी को मजबूती देने वाले और भी स्तंभ हैं जिसमें सुमित्रा महाजन, मेघराज जैन, रघुनंदन शर्मा, कृष्ण मुरारी मोघे, विक्रम वर्मा, कुसुम मेहदेले, सत्यनारायण सत्तन और हिम्मत कोठारी जैसे नेताओं के नाम शामिल हैं। जनआशीर्वाद यात्रा ही नहीं पार्टी से जुड़े दूसरे कार्यक्रमों में भी न बुलाए जाने से ये नेता नाराज बताए जाते हैं। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक रघुनंदन शर्मा ने बेहद तल्खी के साथ अपनी नाराजगी जाहिर की है।

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लगता है बीजेपी ने मान लिया है कि, हम पार्टी के लिए मर गए हैं। बीजेपी की सफलता ही हमारी कामना है। हमें पार्टी से क्या चाहिए, सिर्फ सम्मान यदि वो ही न मिले, तो पीड़ा तो होती है।

कृष्ण मुरारी मोघेः 

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यह सच है कि पार्टी में कई अनुभवी और पुराने नेता बेकाम बैठे हैं। वृक्ष कितना ही पुराना क्यों न हो जाए, वह छाया देना नहीं भूलता। फिर जिन नेताओं ने बीजेपी रूपी वृक्ष को खून-पसीने से सींचकर इतना बड़ा बनाया, उन्हें इस तरह बे-काम कर देना कौनसी समझदारी है।

पुराने नेता पार्टी को दे सकते थे नई ताकत

पार्टी के एक पदाधिकारी कहते हैं कि पुराने नेता बीजेपी की ताकत हैं। पार्टी चाहती तो विधानसभा चुनाव में पुराने नेताओं के अनुभवों का फायदा ले सकती थी। इन नेताओं को प्रदेश में संभागवार जिम्मेदारी देकर अलग-अलग क्षेत्रों में भेज सकती थी। इससे ये नेता स्वयं को तो सम्मानित अनुभव करते ही, संभव है पार्टी नेताओं-कार्यकर्ताओं में सत्ता-संगठन को लेकर जो असंतोष-आक्रोश है, उसको भी समाप्त किया जा सकता। जिस हिसाब से ये नेता अनदेखी के शिकार हैं, उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि फिलहाल उनसे मार्गदर्शन लेना भी जरूरी नहीं समझा जा रहा है। ऐसे और भी नेता हैं जिन्हें चुपचाप रहकर इग्नोर होना मंजूर नहीं है। वो अपने-अपने स्तर पर कुछ और प्लानिंग में जुटे हुए हैं। दल बदलने से पहले पूर्व विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीतासरन शर्मा के भाई गिरिजाशंकर शर्मा भी नाराजगी जाहिर कर चुके थे।

गिरिजाशंकर शर्माः 

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वर्तमान में सरकार और संगठन की स्थिति खराब है। पिछले 5 साल से मुझे कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई। बड़े नेताओं में शिवप्रकाश होशंगाबाद आए थे। उन्होंने मुझे बैठक में बुलाया था, लेकिन अजय जामवाल और मुरलीधर राव ने सम्मानजनक तरीके से नहीं बुलाया तो उनसे नहीं मिला। पार्टी के मंत्री से लेकर विधायक तक पब्लिक में तो दूर बैठकों में बोलने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं।

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और भी नेता पार्टी से नाराज हैं

नाराज नेताओं की लिस्ट में और भी बहुत से नाम हैं। कुछ अनदेखी से नाराज हैं तो कुछ की नाराजगी की वजह आने वाले वक्त में टिकट बन सकता है। सत्यनारायण सत्तन कर्नाटक की हार के बाद से पार्टी को आड़े हाथों ले रहे हैं। दीपक जोशी के दल बदलने पर भी वो मुखर थे। हालांकि, बाद में खुद सीएम शिवराज सिंह चौहान ने उनसे चर्चा की थी। माया सिंह भी 2018 में टिकट कटने के बाद से साइडलाइन हैं। शंकर लाल तिवारी की ब्राह्मणों के बीच अच्छी पकड़ है। पिछला चुनाव हारने के बाद उन्हें भी पार्टी ने कम ही मौके दिए हैं। राधेश्याम पाटीदार सिर्फ 350 वोट से हरदीप सिंह डंग से चुनाव हारे। अब डंग खुद बीजेपी में हैं। तो, पाटीदार के टिकट पर खतरा है। इनकी बहू मंदसौर जिला पंचायत की अध्यक्ष का चुनाव निर्विरोध जीत चुकी हैं। नंद कुमार सिंह चौहान के बेटे हर्ष चौहान को भी नंद कुमार सिंह चौहान के निधन के बाद टिकट नहीं मिला। उनकी नाराजगी कभी भी नुमाया हो सकती है। इन नेताओं के अलावा गौरी शंकर बिसेन, जयंत मलैया और अजय विश्नोई जैसे नेताओं की नाराजगी भी पार्टी पर भारी पड़ रही थी। उन्हें समय रहते मना लिया गया, लेकिन दूसरे नेताओं का गुस्सा क्या पार्टी पर भारी नहीं पड़ेगा।

राजनीतिक विश्लेषकों की राय इससे इतर है। उनका मानना है कि जो नेता अब भी सक्रिय रहना चाहते हैं उन्हें मार्गदर्शक मंडल की तरफ धकेल कर बीजेपी अपना नुकसान कर रही है। इसका प्रतिकूल प्रभाव तो पड़ेगा ही साथ ही जो लोग अपनी राजनीतिक विरासत बचाना चाहते हैं वो भी दूसरे विकल्प जरूर तलाशेंगे।

अपने अपने क्षेत्र के कद्दावर नेताओं की नाराजगी का असर उनके समर्थकों तक पड़ना भी तय है।

निष्ठावान उम्रदराज नेताओं को साइडलाइन होने का डर सता रहा

इन नेताओं ने ताउम्र निष्ठावान कार्यकर्ता की तरह पार्टी के लिए जी जान एक कर दिया। अब जब रिटर्न मिलने की बारी आई तब उन्हें मार्गदर्शक मंडल के नाम पर साइडलाइन होने का डर सता रहा है। ये डर और कुछ दिन कायम रहा तो चुनाव से पहले बीजेपी में बड़ी हलचल दिखाई दे सकती है। या, चुनाव परिणाम पर उसका असर दिख सकता है। जनआशीर्वाद यात्रा में अनदेखी से जो टीस जगी है उस दर्द से बीजेपी इन्हें कैसे उभारेगी या दर्द को इग्नोर कर साइडलाइन ही रहने देगी। ये आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा।

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