BHOPAL. बीजेपी के लिए चुनावी प्रयोगशाला बना है मध्यप्रदेश और मतदाता बन गए हैं वो सफेद चूहे जिन पर सारे एक्सपेरिमेंट आजमाए जा रहे हैं। अपनी इस लैब में बीजेपी एक के बाद एक सारे फॉर्मूले अप्लाई कर रही है। कोशिश बस यही है कि जीत का रसायन किसी भी तरह हाथ से निकलना नहीं चाहिए। उस रसायन को अपनी टेस्ट ट्यूब में ही कैद करने के लिए बीजेपी ने नया मंतर फूंक दिया है। ये मंतर है सांसदनामी कैमिकल्स को विधानसभा चुनाव की प्रयोगशाला में झोंक देने का। वैसे ये एक्सपेरिमेंट पहले कांग्रेस भी कर चुकी है और खुद बीजेपी इसे आजमा चुकी है। बीजेपी को कहीं इससे फॉर्मूले से कामयाबी मिली है तो कहीं हार का स्वाद भी चखना पड़ा है। अब मध्यप्रदेश में क्या होगा, यहां 3 सीटों पर तो बीजेपी ने दमदार चेहरों को उतार दिया है, लेकिन 4 सीटों पर मुकाबला मुश्किल होता नजर आ रहा है।
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7 सांसदों को विधानसभा चुनाव का टिकट
बीजेपी की दूसरी लिस्ट में 7 सांसदों को विधानसभा चुनाव का टिकट दे दिया गया है। वैसे नाम अब सभी जान चुके हैं। इन सांसदों में नरेंद्र सिंह तोमर, गणेश सिंह, रीति पाठक, राकेश सिंह, राव उदय प्रताप सिंह, प्रह्लाद पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते का नाम शामिल है। एक नाम और चौंकाने वाला है। ये नाम है कैलाश विजयवर्गीय का। जिन सांसदों को ये जिम्मेदारी सौंपी गई है सभी 2 से लेकर 5 बार तक लोकसभा चुनाव जीते हुए हैं। अब उन्हें विधानसभा के मैदान में अपनी काबिलियत साबित करना है। बीजेपी के इस फैसले की कांग्रेस ने ट्विटर पर रावण के 3 योद्धाओं से तुलना कर ही दी है। खुद बीजेपी नेता भी ये जाहिर कर रहे हैं कि उन्हें ऐसे किसी फैसले की पहले से कोई उम्मीद नहीं थी, लेकिन इसे पार्टी का फैसला मानकर मानने पर मजबूर हैं।
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न्यूज स्ट्राइक की खबर पर मुहर
न्यूज स्ट्राइक में हमने कुछ महीनों पहले ही ये बता दिया था कि इस बार बीजेपी सांसदों को मैदान में उतारने वाली है। वही हुआ भी। न्यूज स्ट्राइक की खबर पर मुहर तो लगी ही ये भी साफ हो गया कि जीत की खातिर बीजेपी ने बड़ा रिस्क लिया है और अपनों को भी मुश्किल में धकेल दिया है। वैसे तो ये जांची-परखी रणनीति है। कांग्रेस खुद इस रणनीति के सहारे विरोधियों को जबरदस्त मात दे चुकी है। ये राजीव गांधी के दौर की बात है। लेकिन बीजेपी ने जब भी ये पैंतरा आजमाया है कामयाबी और नाकामी का रेशियो कभी 50-50 तो कभी 60-40 होता रहा।
बीजेपी ने चुनावी बिसात का खेल जरा बदला
विधानसभा की राजनीति में लोकसभा के मोहरे उतारकर बीजेपी ने चुनावी बिसात का खेल जरा बदल दिया है। ये बात अलग है कि कांग्रेस इस मामले में बीजेपी से भी ज्यादा पुरानी खिलाड़ी रही है। 1984 के चुनाव में ही कांग्रेस इस फॉर्मूले को आजमा चुकी है और जीत भी चुकी है। 1984 में राजीव गांधी ने तब के विपक्ष के बड़े नेताओं को हराने के लिए चौंकाने वाले चेहरे उतार दिए थे। अटल विहारी वाजपेयी के खिलाफ माधव राव सिंधिया, हेमवती नंदन बहुगुणा के खिलाफ अमिताभ बच्चन इसके उदाहरण थे। इसका नतीजा ये निकला था कि उस संसद में विपक्ष का कोई भी नेता जीतकर नहीं पहुंच सका था। इस फॉर्मूले में थोड़े बहुत बदलाव कर बीजेपी ने इसे अपने फॉर्मूले के तौर पर लॉन्च कर दिया। फर्क केवल इतना है कि बड़े और नामी चेहरों की जगह बीजेपी अपने ही सांसदों पर दांव लगाती रही है। मध्यप्रदेश से पहले भी बीजेपी कुछ प्रदेशों में ये प्रयोग कर चुकी है।
कुछ प्रदेशों में ये प्रयोग कर चुकी है बीजेपी
- 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने 5 मौजूदा लोकसभा और राज्यसभा सांसदों को टिकट दिया।
- केवल 2 बीजेपी सांसद जगन्नाथ सरकार और निसिथ प्रमाणिक अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों शांतिपुर और दिनहाटा से जीतने में सफल रहे।
- उस चुनाव में बीजेपी के दिग्गज नेता और सांसद स्वपन दासगुप्ता, लॉकेट चटर्जी और बाबुल सुप्रियो को हार का सामना करना पड़ा था।
- तत्कालीन राज्यसभा सांसद सुरेश गोपी ने त्रिशूर से चुनाव लड़ा।
- अंतिम वोटों की गिनती में तीसरे स्थान पर आए।
- तत्कालीन राज्यसभा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री केजे अल्फोंस कांजीरापल्ली सीट से चुनाव हार गए।
यूपी में बीजेपी का प्रयोग नहीं रहा ज्यादा फायदेमंद
2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने करहल की हाई प्रोफाइल सीट पर केंद्रीय राज्य मंत्री एसपी सिंह बघेल को अखिलेश यादव के खिलाफ खड़ा किया। बघेल को बड़े अंतर से हार का सामना करना पड़ा। हालांकि बीजेपी को त्रिपुरा में इसका फायदा मिला। इस प्रदेश की सीट धनपुर से केंद्रीय राज्य मंत्री प्रतिमा भौमिक ने चुनाव लड़ा और जीतीं भी। अब बारी मध्यप्रदेश की है। जहां बीजेपी को अपने इस प्रयोग से जीत की उम्मीद है।
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सीटों पर अलग-अलग हालात
मध्यप्रदेश में भी सीटों पर अलग-अलग हालात बनने लगे हैं। नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल अपनी सीट पर दमदार नजर आ रहे हैं। रीति पाठक को सीधी से टिकट मिला है, लेकिन यहां मौजूदा विधायक केदारनाथ शुक्ल ने ताल ठोंक दी है। गाडरवारा की सीट पर उतारे गए राव उदय प्रताप सिंह के खिलाफ बड़ा वोट बैंक खड़ा हो सकता है। राकेश सिंह और फग्गन सिंह को लेकर भी संशय की स्थिति बरकरार है। कैलाश विजयवर्गीय का नाम ऐसा है, जिसे सुनकर ही फिलहाल एकतरफा जीत की अटकलें शुरू हो चुकी हैं। लेकिन बीजेपी के इस फैसले के अलग-अलग मायने भी निकाले जा रहे हैं। एक तरफ बीजेपी इस लिस्ट को अपनी जीत की गारंटी मान रही है तो दूसरी तरफ इसे बीजेपी के सांसदों के लिए परीक्षा की घड़ी बताया जा रहा है। जानकारों का मानना है कि सांसद जीते तो बीजेपी को फायदा होना ही है, लेकिन हारे तो कम से कम बीजेपी को लोकसभा चुनाव में ताजे चेहरे लॉन्च करने का मौका मिल जाएगा। क्योंकि, इन पुराने सांसदों की वजह से भी एंटीइन्कंबेंसी का खतरा है। सांसदों की सीटों से उनकी जीत हुई तो विधायक रहेंगे और अगर हारे तो लोकसभा में टिकट कटना तो तय ही माना जा सकता है। फिलहाल 2 ही लिस्ट सामने आई हैं। संभावना जताई जा रही है कि बीजेपी की आने वाली लिस्ट में भी कुछ और सांसदों के नाम विधानसभा चुनाव के लिए शामिल किए जाएंगे।
जीत की राह कुछ आसान, मुश्किलें भी बहुत
बीजेपी के इस फैसले से जीत की राह कुछ आसान दिख रही है, लेकिन मुश्किलें भी बहुत हैं। सबसे पहली मुश्किल ये है कि जो दिग्गज अब चुनावी रण में उतार दिए गए हैं। वो बतौर स्टार प्रचारक प्रदेश में बीजेपी को मजबूत करेंगे या अपनी सीट संभालेंगे। दूसरा सवाल उन सांसदों के लिए है जो चुनाव हार जाएंगे, तब उनका सियासी भविष्य क्या होगा। मुश्किल तो शिवराज सिंह चौहान के लिए भी बड़ी हैं जिन्हें टक्कर देने उनके ही पुराने साथी सामने आ चुके हैं। प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा की भी राह आसान नहीं क्योंकि कुछ सांसद उनसे भी वरिष्ठ हैं। अपने चौंकाने वाले फैसलों के लिए मशहूर बीजेपी ने यकीनन चौंकाया तो इस बार भी है। लेकिन जो सवाल आगे मुश्किल बन सकते हैं उनका जवाब भी समय रहते खोजना जरूरी है।