BHOPAL. चुनाव से सिर्फ सात दिन पहले ग्वालियर चंबल का मौसम जितना खुशगवार नजर आता है उतना है नहीं। यहां हर सीट पर एक नया समीकरण कांग्रेस और बीजेपी दोनों का टेंशन बढ़ा रहा है। अपने सफर में 'द सूत्र' के मैनेजिंग एडिटर हरीश दिवेकर जिन सड़कों पर चले, वहां कुछ मोड़ ऐसे भी आए जहां हाथ के साथ, कमल की महक के बीच हाथी की चिंघाड़ भी सुनाई पड़ी। पहले भी ग्वालियर चंबल के रास्ते ही मध्यप्रदेश की सत्ता में एंट्री लेने वाला हाथी इस बार भी इसी रास्ते विधानसभा तक जाने की तैयारी में है, लेकिन याद रखिए इस बार हाथी का मिजाज पहले से काफी अलग है। बसपा के मतवाले हाथी पर इस बार पार्टी के पुराने या नए चेहरों से ज्यादा बागी शामिल हैं। ऐसे नेता जिन्हें अपनी मूल पार्टी से टिकट नहीं मिला तो हाथी की सवारी करने निकल पड़े हैं। बसपा की पहचान बना ये हाथी ग्वालियर चंबल की तकरीबन नौ सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला बना रहा है। वैसे बसपा या सपा जैसी पार्टियां मैदान में होती हैं तब उनकी मौजूदगी कांग्रेस को ज्यादा नुकसान पहुंचाती है। लेकिन इस बार सियासी समीकरण कुछ और हैं। इस साल के चुनाव में बसपा यानी कि बहुजन समाज पार्टी की एंट्री कांग्रेस से ज्यादा बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकती है, कैसे वो भी बताएंगे, लेकिन उससे पहले जरा जाने माने चेहरों के बीच नई जंग देख रही ग्वालियर चंबल की जनता का मिजाज तो जान लेते हैं।
अधिकांश बागियों ने बसपा का दामन थामा है
कभी बिहड़ों के लिए जाने जाने वाले ग्वालियर चंबल की धूल को फांकते तो कभी पक्की सड़कों से गुजरते हुए 'द सूत्र' का काफिला आगे बढ़ता जा रहा है। सड़कों का हाल विकास के दावों की सही तस्वीर बता रहा है तो मतदाता भी इन दावों और वादों को पूरी तरह परखने में जुटा हुआ है। उनके बीच मौजूद हम ये भांपने की कोशिश कर रहे हैं कि चुनाव लड़ने पर अमादा बागी इस बार ग्वालियर चंबल की राजनीति में क्या उठापटक करने वाले हैं। ये जानने के लिए हम ग्वालियर चंबल अंचल की उन सीटों पर पहुंचे जहां से चुनाव चिन्ह कोई भी हो, लेकिन बागी मैदान में उतर चुके हैं। अधिकांश बागियों ने बसपा का दामन थामा है। अब अपनी नई पार्टी के लिए चुनाव प्रचार में पूरे सक्रिय नजर आ रहे हैं। ये हैं वो मतदाता जो अपने क्षेत्र के बदले हुए सियासी समीकण से पूरी तरह वाकिफ हैं। जिन्हें पता है कि इस बार उनके पास सिर्फ कांग्रेस और बीजेपी ही नहीं, एक नया विकल्प भी मौजूद है।
इस बार बीजेपी के लिए मश्किलें थोड़ी ज्यादा हैं
ये पब्लिक है और पब्लिक सब जानती है। चुनावी समर में नेता इस कॉन्फिडेंस के साथ उतरते हैं कि भोली भाली जनता को वो पटा लेंगे। जनता भी पटने को तैयार है, लेकिन उतनी भोली नहीं है। उसे ये अंदाजा है प्रत्याशियों का शो रूम सज चुका है और जहां सौदा पट जाएगा वहां वोट चला जाएगा। इस बात का डर कांग्रेस को तो होना ही चाहिए। क्योंकि पुरानी मिसालें यही हैं कि बसपा और सपा जैसे दल जहां भी होते हैं वहां उसे नुकसान ही होता है, लेकिन इस बार बीजेपी के लिए मश्किलें थोड़ी ज्यादा हैं। वैसे तो कुछ दिन पहले ग्वालियर चंबल के दौरे पर आए अमित शाह कार्यकर्ताओं को जादुई मंत्र के नाम पर ये सीख दे चुके हैं कि वो बसपा सपा के प्रत्याशियों की मदद करें। इस सोच के साथ बसपा सपा मैदान में कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचाएगी, लेकिन पूरे विस्तार से बसपा में गए प्रत्याशियों को देखेंगे तो शायद ये जादुई मंत्र बीजेपी पर ही बैक फायर कर सकता है।
ग्वालियर-चंबल अंचल की 9 सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला
विधानसभा चुनाव-2023 में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी के लिए ग्वालियर चंबल अंचल की 34 सीटों को जीतने के लिए होड़ मची है। अंचल की 9 सीटें ऐसी हैं जिन पर त्रिकोणीय मुकाबला होगा। चंबल अंचल में भिण्ड और मुरैना जिले की विधानसभा में 3-3 सीटें ऐसी है जहां त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति बन गई है। हालांकि, पिछले चुनाव में भिंड से बसपा से संजीव कुशवाह खड़े हुए थे और जीत भी हासिल की थी। चंबल से एकमात्र सीट थी जो किसी तीसरी पार्टी ने जीती थी। इस बार जिन सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला है। वो हैं भिंड, अटेर, लहार, सुमावली, मुरैना, दिमनी, चाचौड़ा, पोहरी, सेवढ़ा। जहां से बागी मैदान में हैं। भिंड जिले की लहार सीट से बीजेपी के बागी रसाल सिंह बसपा, अटेर से मुन्ना सिंह भदौरिया सपा, भिंड सीट से संजीव सिंह कुशवाह बसपा, मुरैना विधानसभा सीट से बीजेपी के बागी राकेश रुस्तम सिंह बसपा से, सुमावली से कांग्रेस के बागी कुलदीप सिकरवार और दिमनी से बलवीर डंडोतिया बसपा, शिवपुरी के पोहरी से कांग्रेस के बागी प्रद्युमन वर्मा बसपा से चुनाव लड़ रहे हैं।
ये बागी चुनावी रण को त्रिकोणीय बनाने के साथ-साथ दिलचस्प भी बना रहे हैं
भिंड
- भिंड विधानसभा से संजीव सिंह कुशवाह बीएसपी से प्रत्याशी हैं।
- संजीव सिंह कुशवाह के पिता बीजेपी के टिकट पर भिंड दतिया लोकसभा सीट से 4 बार सांसद रहे।
- पिछले दिनों संजीव सिंह कुशवाह ने टिकट कटने से नाराज होकर बगावत कर बीएसपी से चुनाव मैदान में उतर आए।
- अब अगर यहां अमित शाह के गुरु मंत्र की तामील की जाए तो सीधे तौर पर बीजेपी प्रत्याशी नरेंद्र सिंह कुशवाह को नुकसान होने वाला है, क्योंकि संजीव सिंह कुशवाह के साथ बीजेपी के कई कार्यकर्ता और समर्थक बीएसपी में पहुंच गए हैं।
- ऐसे में बीएसपी का सहयोग करने पर बीजेपी प्रत्याशी की स्थिति गड़बड़ा जाएगी।
अटेर
- ऐसा ही कुछ हाल अटेर विधानसभा का है। अटेर विधानसभा से दो बार बीजेपी से विधायक रहे मुन्ना सिंह भदौरिया ने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया है।
- बीजेपी से बगावत करके समाजवादी पार्टी के टिकट पर अटेर विधानसभा से चुनाव लड़ रहे मुन्ना सिंह भदौरिया अटेर से दो बार विधायक रहे और लंबे समय से अटेर विधानसभा में सक्रिय हैं।
- इस वजह से उनके पास बीजेपी समर्थकों की लंबी भीड़ है। उनके जाने से समर्थक भी समाजवादी पार्टी में पीछे आकर खड़े हो गए हैं।
लहार
- लहार विधानसभा से बीएसपी के टिकट पर रसाल सिंह चुनाव लड़ रहे हैं।
- रसाल सिंह उमा भारती के कट्टर समर्थक रहे हैं। रसाल सिंह बीते दो बार के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट पर लहार विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते हुए आए हैं।
- लेकिन इस बार के विधानसभा चुनाव में रसाल सिंह का टिकट काट दिया गया, जिसके बाद रसाल सिंह ने बीजेपी से बगावत कर दी और बीएसपी के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं।
दिमनी
- इस सीट पर केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर बीजेपी उम्मीदवार हैं।
- उनका मुकाबला कांग्रेस के रविंद्र सिंह तोमर से माना जा रहा था, लेकिन असल में मुकाबला हो रहा है बीजेपी से।
- इस मुकाबले को दिलचस्प बना रहे हैं बलवीर सिंह दंडोतिया जो कांग्रेस छोड़ बसपा में गए हैं।
- हाथी के मतवाले होते ही कांग्रेस दौड़ से बाहर दिखाई दे रही है।
- इतना ही नहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खासमखास केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर भी परेशानी में दिख रहे हैं।
ये सभी बागी अपने मूल दल पर ज्यादा भारी पड़ सकते हैं। हालांकि, उन्हें मैदान में उनकी स्थिति कमजोर बताने के लिए कांग्रेस बीजेपी के पास अपने-अपने तर्क हैं।
12 सीटों पर क्षेत्र के मतदाताओं ने बसपा को सहारा दिया
उत्तर प्रदेश से सटे भिंड और मुरैना के रास्ते 1990 के बाद से बसपा के हाथी ने मध्य प्रदेश में प्रवेश किया। इन दोनों जिलों में इसका प्रभाव भी अच्छा खासा रहा। पिछले 30 वर्षों में मप्र विधानसभा चुनाव में भिंड और मुरैना की तीन-सीटों, शिवपुरी में एक, ग्वालियर में दो और दतिया में इसे सफलता भी मिल चुकी है, जबकि श्योपुर की जनता ने एक बार भी बसपा को मौका नहीं दिया। अंचल की 12 सीटों पर क्षेत्र के मतदाताओं ने बसपा को सहारा दिया। बसपा का इस अंचल में वोटबैंक भी है। इसलिए ये बागी नेताओं की पहली पसंद है और इसकी मौजूदगी बीजेपी और कांग्रेस दोनों की चिंता बढ़ा रही है। इस बार सिर्फ पार्टियां ही नहीं बागी भी ग्वालियर चंबल की राजनीति की दशा और दिशा तय करेंगे।
बिहड़ों की शांति को सन्नाटा मत समझिए यहां से जो सियासी तूफान उठने वाला है वो पूरे प्रदेश की सत्ता पर बड़ा असर डालने वाला है। हाथी पर सवार बागी किस दल को रौंदेंगे और किसे सवार होने का मौका देंगे ये तो जल्द ही स्पष्ट होगा। हो सकता है इसके साथ ही ये पुराना चुनावी समीकरण भी ध्वस्त हो जाए कि बसपा की आमद किसी एक दल पर भारी पड़ती है। नतीजे जो भी होंगे वो आकलन से परे और चौंकाने वाले होंगे...