चार कदम आठ कदम पीछे और बस का सवाल, ये ईश्क ना होता तो क्या बात थी, गौठान में मवेशी मरे तो याद आया ट्रांसफ़र आदेश किधर है?

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Yagyawalkya Mishra
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चार कदम आठ कदम पीछे और बस का सवाल, ये ईश्क ना होता तो क्या बात थी, गौठान में मवेशी मरे तो याद आया ट्रांसफ़र आदेश किधर है?

चार कदम आठ कदम पीछे, और बस का सवाल

कांग्रेस के लिए सबसे सुरक्षित सबसे मुफ़ीद प्रत्याशियों की तलाश में यही कसरत हो रही है। बैठकों पर बैठकें हो रही हैं लेकिन बग़ावत ना हो, सर्वमान्य एकराय प्रत्याशी हो ये वो मसला है जहां चार कदम आगे आठ कदम पीछे का मसला चल रहा है। मसला ये भी है कि पाटन वाले भैया उन बस यात्रियों को हर हाल में टिकट दिलाना चाहते हैं जो दिल्ली तक का सफ़र किए थे। लेकिन यह भी एक बड़ा गतिरोध है जहां गाड़ी ‘माईलेज’ नहीं दे रही है। बड़ी मुश्किल से पैंतीस सीट पर नाम फ़ायनल हुए हैं लेकिन आगे पर राह अटकी हुई है।

अभी तो दौरा शुरु हुआ है

पीएम मोदी के दौरे से माहौल तो बन रहा है। भीड़ भी आ रही है। अब जो खबरें हैं उसके अनुसार अभी पीएम मोदी का सिलसिलेवार दौरा होने वाला है। वे जगदलपुर के बाद अंबिकापुर भी आएँगे। सब ठीक रहा तो सभा तो होगी ही रायपुर में रोड शो भी हो सकता है।याने पीएम मोदी का दौरा लगातार जारी रहेगा, और हर दौरे में आक्रामकता का सुर भी तेज होगा।

पीएम मोदी के ये कहने के मायने क्या हैं

पीएम मोदी ने बिलासपुर में अपार भीड़ को देख ख़ुशी जताई वो भी एक बार नहीं तीन तीन बार।उन्होंने सिलसिलेवार तरीक़े से मुद्दे बताए और कार्यकर्ताओं को मंत्र दिया कि घर घर जाकर बताओ। लक्ष्य दिया कि हर बूथ जीतना है। पर एक बात उन्होंने सबसे आख़िरी में कहीं और वो गंभीर है। पीएम मोदी ने कहा निशान कमल और प्रत्याशी कमल। पीएम मोदी ने ये बात यूँ ही तो कही नहीं होगी। सीधा मतलब है कि, कार्यकर्ताओं का दल है कार्यकर्ताओं को ही कमान है कार्यकर्ता ही चेहरा है, क्षत्रपों के इशारे पर कुछ नहीं होगा। कार्यकर्ता भाव से मतदाता तक जाना है। क्या पीएम मोदी ने इस बात के ज़रिए यह संकेत दिया है कि बदलाव का नारा केवल सत्ता के लिए ही नहीं बीजेपी छत्तीसगढ़ के लिए भी है।

गौठान में मवेशी मरे तो याद आया ट्रांसफ़र आदेश किधर है ?

एक ज़िले के एक गौठान में मवेशियो की मौत हो गई। सरकार की फ़्लैगशिप योजना की यूँ भी हर दिशा से दुर्दशा हो ही रही है। अब जब चप्पा चप्पा भाजपा का मंत्र पढ़ते भाजपाई घूम रहे हों तो ये बवाल तो मचना ही था।आनन फ़ानन एक आदेश निकला और सीईओ को रवानगी दी गई, जाँच अलग से जारी होने की बात कही गई है। इस सीईओ साहब के आदेश का भी क़िस्सा बताया गया है। खबरें हैं कि सीईओ साहब के हटने की फ़ाईल पुराने समय से चल रही थी। मवेशी मौत की चिल्लम चोट मची को आला अधिकारियों की भृकुटी तनी तो आदेश का पतासाजी किए पता चला किसी जगह विचारार्थ लंबित था और जब आया तो कहीं दबा हुआ था।

तो अब कौन जीतेगा

माओवादियो के गढ़ इलाक़ों में पर्चे और पॉंपलेट फेंके गए हैं। इनमें लिखा गया है कि, बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस को वोट दिया गया था। लेकिन ये तो जनविरोधी निकले। माओवादियों की शुरुआत की डेढ़ दो साल की विज्ञप्तियों में गाहे बगाहे एक बात लिखी जाती थी, सरकार वादा पूरा नहीं कर रही है। सवाल हमेशा कौंधता रहा है कौन से वादे की बात कर रहे है माओवादी। बहरहाल अब इस विज्ञप्ति से दो सवाल हैं क्या वाक़ई प्रभाव क्षेत्रों से कांग्रेस को समर्थन मिला था। बीजेपी की ओर से आरोप इस आशय के लगते भी रहे हैं। खैर दूसरा यह कि अब समर्थन नहीं मिलेगा तो नतीजा क्या होगा। वैसे सवाल यह भी है कि ये पर्चे ये विज्ञप्ति असल ही हैं न, सरहदी ईलाकों में सक्रिय पत्रकारों की मानें तो सब सही है।

ये वाला संकल्प तो ग़ज़ब है

चुनाव सामने है और कर्मचारियों में नाराज़गी है। इनमें अंशकालिन समेत कई श्रेणियों के लोग हैं। कुछ पर एस्मा का डंडा भी चला। हाल फ़िलहाल बहुतेरे वापस आ गए लेकिन इस सहाफ़ी के हाथ एक काग़ज़ लगा है उसमें रामायण क़ुरान बाइबल को साक्षी मानकर शपथ पत्र पर हस्ताक्षर कराने की क़वायद हो रही है, जिस पर लिखा है मौजूदा सरकार को वोट नहीं देंगे, खुद तो देंगे नहीं परिवार और परिचितों को भी कहेंगे। एक कर्मचारी नेता ने बताया सरकार को जो करना है कर गई अब चुनाव में हमारी बारी है। पूरा करेंगे मुकम्मल करेंगे।

ये ईश्क ना होता तो क्या बात थी

ईश्क भी ग़ज़ब की शै है। राजाओं का दौर हो या वर्तमान लोकतांत्रिक परिवेश का, मसला गरीब का हो या रईस का, ईश्क बहुत कुछ भूला बिसरा देता है। लेकिन इस फेर में मुसीबतें तंत्र झेलता है या फिर सियासत से जुड़े लोग। बहुतेरे सच्चे झूठे क़िस्सो के बीच एक मामला बस्तर से आया है, बस्तर फ़ाईटर का एक जवान संवेदनशील ईलाके में गया वहाँ माओवादियों ने उसे उठा लिया है। जवान को लेकर अपुष्ट खबरें हैं कि, वो भी ईश्क में था और अंदरूनी इलाक़े में पदस्थ प्रेमिका से मिलने गया था। ज़ाहिर है अब तंत्र परेशान है।

सुनो भई साधो

1- बेहद चर्चित मगर कंपलसरी रिटायर आईपीएस के किसी राजनीतिक दल के प्रमुख ओहदेदार के अघोषित सलाहकार बनने की बात सच है या झूठ ?

2 - किसी ज़मानत के मसले पर कांग्रेस के बेहद सीनियर नेता ने कहा है ज़मानत मिली तो पार्टी की सत्ता वापसी तय है। लेकिन यह कहते हुए उनके चेहरे पर व्यंग्य क्यों था ? वैसे बीजेपी क्यों मना रही है कि ज़मानत मिले तो मज़ा आ जाए ? कौन है वो ?

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