गंगेश द्विवेदी, RAIPUR. छत्तीसगढ में दो चरण में मतदान हुए। 7 नवंबर को पहले चरण में नक्सल प्रभावित 20 सीटों पर और 17 नवंबर को बाकी 70 सीटों पर मतदान हुए । इस बार का चुनाव भाजपा के 15 साल बनाम कांग्रेस के 5 साल के कार्यकाल पर फोकस रहा। अपने आपको बेहतर विकल्प के रूप में पेश करने के लिए भाजपा ने जहां मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को घोटालेबाज साबित करने में पूरी ताकत झोंक दी। चुनाव खत्म होते-होते महादेव एप और सट्टा के कारोबार से मुख्यमंत्री का कनेक्शन जोड़ने का प्रयास किया गया। वहीं कांग्रेस ने भाजपा के पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह के 15 साल के कार्यकाल के दौरान हुए करीब एक लाख करोड़ के घोटाले का काला चिट्ठा जारी किया, कांग्रेस के प्रचार में सबसे अधिक निशाना डॉ. रमन पर ही लगाया गया। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 9 साल के कार्यकाल में केंद्र में हुई अनियमितताओं को प्रचारित करने का प्रयास किया। दोनों ही पार्टी ने अपने वोट बैंक में से तीन प्रमुख वोट बैंक पर फोकस किया।
किसान, महिला और यूवा इस बार बने सत्ता की चाबी
धान के जरिए किसान, आधी से अधिक आबादी महिलाओं को लेकर घोषणाओं का अंबार, वहीं तीसरा बड़ा वोट बेंक यूथ को माना गया। इस बार 18.50 लाख नए वोटर्स जुड़े हैं, जिन्होंने पहली बार मतदान किया। भाजपा ने पीएससी सहित अन्य प्रतियोगी परीक्षाओें में हुई धांधली की निष्पक्ष जांच कराने का वादा कर इन्हें अपनी ओर करने की कोशिश की तो कांग्रेस ने हर साल नए रोजगार देने का वादा करने मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की कोशिश की।
साल भर पहले से चुनावी मोड में आ गए
यूं तो भाजपा 4 साल तक शांत रहने के बाद करीब साल भर पहले चुनावी मोड में आ गई थी। भाजपा केंद्र में पिछली हार का ठीकरा यहां के स्थानीय नेतृत्व पर फोड़कर ऊपर से गृह मंत्री अमित शाह के मार्गदर्शन में चुनाव लड़ने का फैसला किया था। मोदी और शाह के करीबी और ओम माथुर को छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाकर लाया गया। कुछ समय बाद राजस्थान के मनसुख एल मांडविया को शाह प्रभारी बनाकर यहां बैठा दिया गया। दोनों ही प्रभारी ने छत्तीसगढ़ की भाजपा के समानांतर एक टीम खड़ी की, जो सारी रिपोर्ट उन्हें सीधे देती थी। चुनाव के ठीक पहले तक यही आलम रहा। यहां के प्रदेश नेतृत्व को किनारे रखकर समानांतर टीम से भूपेश बघेल की फ्लैगशिप योजनाओं नरवा-गरवा घुरवा-बाडी को निशाना बनाया गया। जुलाई आते-आते भाजपा ने कांग्रेस की तर्ज जनघोषणापत्र तैयार करने की घोषणा की और 39 सदस्य कमेटी बनाकर उन्हें जिम्मेदारी सौंप दी। अगस्त में चुनाव के 3 महीने में ही प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर भाजपा ने जता दिया कि कैसे वह इस बार प्रतिस्पर्धा में कांग्रेस से आगे रहने वाली है। पहली सूची में मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र पाटन से उनके भतीजे विजय बघेल को टिकट देकर भाजपा ने एलान-ए-जंग किया। भाजपा ने विधानसभा की पूरी 90 सीटों को 4 कैटेगरी में बांटा था। पहली सूची केवल डी कैटगरी की सीटों पर प्रत्याशी घोषित किए गए। इन सीटों पर बीजेपी कभी नहीं जीत पाई थी या बहुत कम जीती थी। इसमें से एक सीट पाटन थी, जहां से मुख्यमंत्री है और सासद विजय बघेल आमने-सामने थे?
3 माह पहले छिड़ी असली लड़ाई
भाजपा की प्रत्याशी की पहली सूची घोषित होने के बाद कांग्रेस भी पूरी तरह से चुनावी मोड में आ चुकी थी। उन्होंने अपनी तरफ से पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह के कार्यकाल सहित भाजपा के खिलाफ 212 बिंदुओं पर काला चिट्ठा जारी किया तो इसके कुछ दिनों बाद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कांग्रेस के पांच साल के घपले घोटालों का आरोपपत्र जारी कर चुनावी लड़ाई तेज कर दी।
धान पर घमासान
शुरू से ही इस बार धान को सत्ता की चाबी समझकर भाजपा ने कांग्रेस पर हमले शुरू किए। घमासान की शुरूवात केंद्र की ओर से 86 लाख मिट्रिक टन चावल खरीदी करने के प्रस्ताव में कटौती कर 69 लाख टन चावल लेने के केंद्रीय फरमान से हुई थी। सीएम भूपेश ने इसे मुद्दा बनाकर केंद्रीय खाद्य मंत्री को पत्र लिखकर इसपर सियासत छेड़ दी। दोनों ही पक्षों में जमकर जुबानी जग चली। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कमान संभाली और अपनी शुरूवाती सभाओं में यह दावा कर सियासत तेज कर दी कि छत्तीसगढ़ का एक एक दाना धान केंद्र सरकार खरीदती है। कांग्रेस ने पलटवार कर प्रधानमंत्री पर झूठ बोलने का लगातार आरोप लगाया। यह सियासत आखिरकार दोनों के घोषणापत्र आने पर आकर टिकी। भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में 3100 रुपए प्रति क्विंटल की एमएसपी और प्रति एकड़ 21क्विंटल मानक मानकर किसानों से धान खरीदने का वादा किया। जबकि कांग्रेस ने 3200 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से एमएसपी और प्रति एकड़ 20 क्विंटल धान लेने की घोषणा की। भाजपा ने दो साल का बचा हुआ बोनस यानी 600 रुपए प्रति क्विंटल अतिरिक्त बोनस की घोषणा की। वहीं कांग्रेस ने कर्जमाफी की घोषणा करके इस घोषणा पर बराबरी से खड़ी नजर आई। इस मामले में भाजपा ने किसानों को प्रति एकड़₹1100 देने का दावा कर अपना पक्ष और मजबूत करने की कोशिश की।
आधी से ज्यादा आबादी की जबरदस्त पूछ-परख
छत्तीसगढ़ में मतदाता सूची के अंतिम प्रकाशन के बाद महिला मतदाताओं की संख्या पुरुष मतदाताओं से अधिक यह संख्या 90 में से 57 सीटों पर अधिक थी यानी 63 फीसदी सीटों से अधिक सीटों पर महिलाएं भाग्य विधाता के रूप में देखी गई। इसको लेकर कांग्रेस और भाजपा ने घोषणाओं की झड़ी लगा दी। कांग्रेस ने घोषणापत्र आने से पहले महिला स्वसहासता समूहों की कर्जमाफी जैसी घोषणा की तो वहीं भाजपा ने अपने घोषणापत्र में नारीबंदन योजना के तहत 12 हजार रुपए सालाना विवाहित महिलाओं को देने की योजना लाकर पहले चरण के मतदान में लीड ले ली। कांग्रेस ने इसके असर का आंकलन किया और दीपावली पर गृहलक्ष्मी योजना के तहत प्रत्येक महिला को 15 हजार रुपए प्रति वर्ष देने की घोषणा कर 17 नवंबर को होने वाले दूसरे चरण के मतदान को संतुलित करने का प्रयास किया। इसके अलावा 500 रुपए में गैस सिलेंडर तो कांग्रेस ने 500 रुपए की सब्सिडी की घोषणा की थी।
यूथ के मामले में भाजपा पड़ी भारी
ईडी और आईटी के छापों के बीच चुनाव के ठीक पहले पीएससी में हुई धांधली के मसले ने यूथ के बीच चर्चा का विषय बना। वहीं भाजपा ने अपने घोषणापत्र में इस मामले की निष्पक्ष जांच कराने एम्स की तर्ज पर मेडिकल इंस्टीट्यूट जैसी घोषणाएं कर यूथ को मत अपनी ओर करने का प्रयास किया। कांग्रेस इनके लिए कुछ खास नही कर पाई। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जरूर युवा सम्मेलन कर इस खाई को पाटने की कोशिश की।