BHOPAL. मध्यप्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी कोई नई बात नहीं है। बड़े नेताओं ने अपने गुटों को मजबूत तो बनाया लेकिन खुद को मर्यादित रखा। ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस में रहने तक तीन गुटों में बंटी पार्टी उनके जाते ही एक नजर आने लगी। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह इस तरह मिलजुलकर काम करने लगे मानो गुट कभी थे ही नहीं। दो धूरियों की तरह उन्होंने पूरी पार्टी को साध लिया, लेकिन लिस्ट जारी होने के बाद धूरियों की दूरियां बढ़ने लगी हैं। बढ़ी भी यूं है कि नाराजगी अब छुपाए नहीं छुप रही। विपक्षी दल से लेकर दोनों के समर्थक तक कभी एक नहीं हुए, लेकिन दोनों में मतभेद लाने की उनकी कोशिशें भी नाकाम होती रहीं। लेकिन इस बार एक समर्थक ने दो बड़े नेताओं को लड़ने पर मजबूर कर दिया है। लड़ाई भी ऐसी हुई है जो कपड़े फटने से शुरू हुई और लंच पॉलीटिक्स तक पहुंच चुकी है।
सर्वे में कार्यकर्ताओं के मन की बात जानने जैसी बातें बेमानी ही थी
चुनाव के दिन अब गिनती के ही बचे हैं। कांग्रेस ने बहुत बहुत संभल-संभल कर हर रणनीति पर अमल किया है। या, कम से कम ये आभास ही करवाया है कि कांग्रेस इस बार पुरानी परंपरा से नहीं बल्कि, नए तरीके से रणनीति तैयार कर रही है। क्योंकि ये भ्रम लिस्ट जारी होने के बाद से ही टूटने लगा और सारी सीटें क्लियर होने के बाद ये साफ हो गया कि सर्वे, कार्यकर्ताओं के मन की बात जानने जैसी बातें सब कुछ बेमानी ही था। कांग्रेस के दोनों बड़े नेता यानी कि दिग्विजय सिंह और कमलनाथ लाख कोशिशों के बावजूद और चार चार सर्वे के बावजूद अपने समर्थकों को टिकट दिलाने पर जोर लगाते रहे और अंत में वही लिस्ट में नजर भी आया। कुछ स्थानों पर तो ये भी हुआ कि नाराजगी के बाद टिकट तक बदलना पड़ा। खुद दिग्विजय सिंह जैसे नेता को आगे आकर ये कहना पड़ा कि चार चार सर्वे हुए हैं जिस वजह से कुछ कंफ्यूजन हो गया। इतना ही कहां कम था। अक्सर अपनी जुबान पर काबू खो देने वाले कमलनाथ ने सबके सामने बयान दे दिया कि टिकट वितरण के लिए दिग्विजय सिंह के कपड़े फाड़ो। हालांकि, दिग्गी ने भी अपनी स्टाइल में जवाब जरूर दिया और कहा कि जिसके साइन होंगे कपड़े उसी के फटने चाहिए। इसके बाद दिग्विजय सिंह ने एक क्रिप्टिक सा पोस्ट ट्विटर पर भी किया। जिसके बाद से ऐन चुनाव से पहले कांग्रेस का चुनावी काम ठंडा पड़ा है और गुटबाजी जलाने को तैयार हो चुकी है।
दो दिग्गजों की लड़ाई में एक समर्थक घी का काम कर रहा है
कांग्रेस का हाल ठीक ऐसा है कि चार दिन चले अढाई कोस। कांग्रेस ने पिछले दिनों संयम रखते हुए तीन कदम आगे बढ़ाए थे तो दो कदम पीछे हो गई है। अब ये कहना भी गलत होगा कि चुनाव में एक महीना शेष है। क्योंकि दिन बचे हैं बमुश्किल बीस। और, बीस दिन पहले दो दिग्गज बच्चों की तरह लड़ रहे हैं। जिसकी वजह टिकट के बाद भड़की बगावत तो है ही एक कमलनाथ समर्थक भी दोनों की लड़ाई में घी का काम कर रहा है। इंदौर और देवास के कुछ हिस्सों पर पकड़ रखने वाला ये कमलनाथ समर्थक नेता हैं सज्जन सिंह वर्मा। जिनकी दिग्विजय सिंह से खिलाफत जग जाहिर है, लेकिन इस बार सज्जन सिंह वर्मा ने इंदौर और देवास में टिकट वितरण के बाद हुई बगावत के लिए दिग्विजय सिंह को जिम्मेदार ठहराया। जिसके बाद से ही दोनों नेताओं के बीच दूरियां बढ़ती जा रही हैं। अब हालात ये हैं कि दोनों के बीच समझौते की पहल खुद रणदीप सिंह सुरजेवाला को पहल करनी पड़ रही है।
रूठों को मनाने का काम दिग्विजय सिंह ने संभाला हुआ था
अब तक कांग्रेस की ओर से फ्रंट फुट पर कमलनाथ खेल खेल रहे थे तो पीछे का काम दिग्विजय सिंह ने संभाला हुआ था। नाराज और रूठे कार्यकर्ताओं को मनाने की जिम्मेदारी से लेकर सही उम्मीदवार के चयन की सलाह देने के काम में जुटे दिग्विजय सिंह की यात्राएं, सभाएं, कार्यकर्ता सम्मेलन सब कुछ जारी था। चुनाव के दिन नजदीक आते-आते इन कोशिशों को ओर जोर पकड़ना था, लेकिन इसका उल्टा हो गया। दिग्विजय सिंह ने अपने सभी कार्यक्रम निरस्त कर दिए हैं। इसकी वजह उनकी नाराजगी बताई जा रही है जिसके केंद्र में हैं कमलनाथ समर्थक सज्जन सिंह वर्मा। जो पहले भी दिग्विजय सिंह पर कई बार तंज कसते रहे हैं। एक बार तो दिग्विजय सिंह को अपशब्द कहने वाला उनका वीडियो भी वायरल हुआ था। अब वो टिकट वितरण को लेकर लगातार दिग्विजय सिंह पर निशाना साध रहे है। बताया जा रहा है कि इससे नाराज दिग्गी राजा ने एक तल्ख एसएमएस भी किया। जिसके बाद खुद सज्जन सिंह वर्मा उनसे मुलाकात करने पहुंचे। इस मुलाकात के बाद कुछ टिकट बदले गए, लेकिन हर जगह की सीट पर ये सहमति नहीं बन पाई। जिसके बाद से दोनों के बीच नाराजगी जारी है।
वचन पत्र पेश करने के दौरान मनमुटाव सामने आया
अब इस मुद्दे पर कांग्रेस के नेता भले ही खुलकर कुछ न कहें, लेकिन इस नाराजगी की आंच कांग्रेस को नुकसान तो पहुंचाने ही लगी है। दिग्विजय सिंह, कमलनाथ समर्थक सज्जन सिंह वर्मा समेत पीसीसी महामंत्री राजीव सिंह ने खासे नाराज बताए जा रहे हैं। वचन पत्र पेश करने के कार्यक्रम के दौरान इन नेताओं की वजह से हुआ मनमुटाव सामने भी आ गया है। जिसका असर भी नजर आने लगा है।
- कोलारस में बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में आए वीरेंद्र रघुवंशी इस नाराजगी की भेंट चढ़ चुके हैं जिन्हें टिकट नहीं मिल सका।
- तकरीबन 2 दर्जन बागी नामांकन भर चुके हैं या भरने की तैयारी में हैं।
- दिग्विजय सिंह खुद अपनी यात्राएं निरस्त कर चुके हैं।
- रूठे हुए कार्यकर्ताओं से मुलाकात का काम भी वो फिलहाल रोक चुके हैं।
चुनावी पंडितों की माने तो कमलनाथ ही प्रदेश की कमान संभाल रहे हैं
साल 2020 में सरकार गिरने के बाद से कमलनाथ और दिग्विजय सिंह दोनों मिल जुलकर पार्टी को मजबूत करने में जुटे हुए थे। दिग्विजय सिंह की बंटाधार वाली छवि नुकसान न कर जाए, इस डर से खुद दिग्विजय सिंह पर्दे के पीछे से और मंच के नीचे जिम्मेदारी संभाल रहे थे, इस बार आई सूचियों ने सारे समीकरण बिगाड़ दिए। अब हालात सुधारने की जिम्मेदारी प्रदेश का जिम्मा संभाल रहे सुरजेवाला पर है। जिनके साथ लंच टेबल पर चर्चा के बाद कांग्रेस की चुनावी गाड़ी आगे बढ़ने की उम्मीद है। चुनावी पंडितों की माने तो पार्टी की ओर से ये मैसेज क्लियर है कि कमलनाथ ही मध्यप्रदेश की कमान संभाल रहे हैं। दिग्विजय सिंह भी इस बात से राजी हैं, लेकिन दोनों ही नेता पुत्र मोह में ऐसे कदम भी उठा जाते हैं जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ सकता है। खासतौर से चुनाव से पहले नजर आई ये कपड़ा फाड़ सियासत चुनावी नतीजों में कांग्रेस पर भारी पड़ सकती है।
20 साल से सत्ता से बाहर कांग्रेस पहले से ही असंतुष्ट राजनेताओं की नाराजगी झेल रही है। उस पर अब दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के बीच हुआ मनमुटाव पार्टी को और पांच साल के लिए सत्ता से दूर धकेल सकता है।
कांग्रेस के ये हालात किसी बुरी खबर की ओर इशारा तो नहीं
कमलनाथ समर्थक सज्जन सिंह वर्मा को कभी दिग्विजय सिंह रास नहीं आए। कमलनाथ सरकार में सज्जन सिंह वर्मा के उपमुख्यमंत्री न बन पाने की मुख्य वजह भी दिग्विजय सिंह ही माने जाते हैं। उनका गुट हमेशा दिग्विजय सिंह को सुपर सीएम करार करता रहा। ये असंतोष सरकार गिरने के बाद से लेकर टिकट वितरण तक जारी है। कुछ ही दिन पहले दिन पहले दिग्विजय सिंह ने कहा था कि वो एक बार फिर विषपान के लिए तैयार हैं, लेकिन इस बार दिग्विजय सिंह भी बिफर चुके हैं। हर बार सियासी संयम से काम लेने वाले दिग्गी राजा भी चुनावी सक्रियता पर ब्रेक लगा चुके हैं। चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस के लिए ये हालात किसी बड़ी बुरी खबर की तरफ इशारा तो नहीं कर रहे।