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मनीष गोधा, JAIPUR. राजस्थान के विधानसभा चुनाव में 25 नवंबर को हुए मतदान के बाद सरकार को लेकर तो असमंजस है ही, लेकिन इससे भी बड़ा असमंजस इस बार सबसे बड़ी कुर्सी यानी मुख्यमंत्री पद किसे मिलेगा, इसको लेकर है। बीजेपी में तो ये पहला मौका है जब सीएम का चेहरा कौन होगा, इसे लेकर कुछ भी स्पष्ट नहीं है। वहीं कांग्रेस में सीएम अशोक गहलोत के नेतृत्व में चुनाव हुआ है, इसलिए वे स्वाभाविक दावेदार हैं, लेकिन पिछले चुनावों का अनुभव ये बताता है कि कांग्रेस में दावेदार कोई और होता है और सीएम कोई और बन जाता है।
बीजेपी-कांग्रेस बिना सीएम फेस के लड़ी थीं चुनाव
राजस्थान चुनाव में इस बार दोनों ही दलों ने बिना सीएम फेस के चुनाव लड़ा था। यानी चुनाव में ये स्पष्ट नहीं था कि जिसकी भी सरकार बनी उसका सीएम कौन होगा। पिछले 4 चुनाव में पहली बार ऐसी स्थिति देखी गई है।
बीजेपी में पहली बार ऐसी स्थिति
वहीं पार्टीवार बात करें तो बीजेपी में पहली बार ऐसा हुआ है, क्योंकि यहां पहले भैंरों सिंह शेखावत और उसके बाद वसुंधरा राजे ही चुनाव में पार्टी का चेहरा बनते रहे हैं। ये पहली बार है कि जब सीएम कौन होगा ये बात सिर्फ पार्टी का शीर्ष नेतृत्व जानता है और दूसरे राज्यों में बीजेपी की जीत के बाद जिस तरह के अप्रत्याशित चेहरे सीएम बनते आए हैं, उसे देखते हुए यहां भी अब खुद पार्टी के नेता कोई अनुमान लगाने को तैयार नहीं हैं। पार्टी के नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ का तो कहना है कि पार्टी आलाकमान जिसे तय करेगा, उसके पीछे मजबूती से खड़े हो जाएंगे।
कांग्रेस में दावा किसी और का, सीएम गहलोत
कांग्रेस की बात करें तो 1998 से लेकर 2018 तक हुए चुनाव में सीएम पद का दावा किसी और का रहा, लेकिन सीएम अशोक गहलोत ही बनते रहे। 1998 में जब सरकार बनी तो परसराम मदेरणा सबसे बड़े दावेदार माने जा रहे थे, लेकिन पार्टी ने गहलोत पर भरोसा किया। इसके बाद 2008 में पार्टी ने सीपी जोशी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा और वही सबसे बड़े दावेदार माने जा रहे थे, लेकिन एक वोट से चुनाव हार गए और कुर्सी फिर गहलोत को ही मिली। इसी तरह 2018 में भी सचिन पायलट सबसे बड़े दावेदार थे। पूरा पूर्वी राजस्थान उनके नाम पर कांग्रेस के साथ हो गया था, लेकिन कुर्सी फिर एक बार गहलोत को ही मिली। वहीं जब-जब गहलोत सीएम रहे और चुनाव उनके नेतृत्व में हुए तो पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा। 2003 में पार्टी सिर्फ 56 सीट जीत पाई, वहीं 2013 में 21 सीटों पर सिमट गई। अब इस बार क्या होगा ये 3 दिसंबर को पता चलेगा।
सीएम की कुर्सी के दावेदार कौन-कौन ?
राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस दोनों में ही इस बार सीएम के दावेदार एक से ज्यादा हैं। बीजेपी में तो पार्टी ने इतने दावेदारों के कारण ही किसी एक पर दांव नहीं खेलना उचित समझा। कांग्रेस में भी बड़ा दावा तो सीएम अशोक गहलोत का ही है, लेकिन सचिन पायलट सहित कुछ अन्य नेता भी दावेदारी करेंगे, इसमें कोई दोराय नहीं है।
बीजेपी में कई चेहरे, वसुंधरा का दावा सबसे मजबूत
बीजेपी में सीएम पद के दावेदार यूं तो कई हैं, लेकिन पूर्व सीएम वसुंधरा राजे का दावा सबसे मजबूत माना जा रहा है। इसका एक कारण तो ये है वे पूर्व सीएम रही हैं और दूसरा सबसे बड़ा कारण ये है कि पार्टी के 200 प्रत्याशियों में से सबसे ज्यादा लगभग 60 टिकट उनके समर्थकों को मिले हैं। इसके अलावा कैम्पेन की बात की जाए तो अन्य दावेदारों के मुकाबले सबसे ज्यादा कैम्पेन भी उन्होंने ही किया है। पूरे प्रदेश में वे 45 से ज्यादा सीटों पर गईं और पार्टी के लिए प्रचार किया। चुनाव से पहले भी लगातार ये कहा जा रहा था कि वसुंधरा के बिना पार्टी की पार नहीं पड़ेगी। कैम्पेन के दौरान आखिरी वो तस्वीर भी लोगों को दिख गई जिसमें पीएम नरेन्द्र मोदी वसुंधरा राजे के साथ मंच शेयर कर रहे थे और राजे को वहां बोलने का मौका भी मिला। पार्टी के नेताओं ने भी उनका चेहरा हमेशा आगे रखा।
अंता में चुनावी सभा के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी के साथ वसुंधरा राजे
अन्य दावेदार
गजेंद्र सिंह शेखावत
केन्द्रीय मंत्री हैं। चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन पार्टी में मजबूत स्थिति में हैं। प्रोजेक्ट इसलिए नहीं किए गए कि संजीवनी घोटाले में कथित लिप्तता की शिकायतें थीं।
अर्जुन राम मेघवाल
केंद्रीय मंत्री हैं। चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन राजस्थान में पार्टी का सबसे बड़ा दलित चेहरा हैं। प्रोजेक्ट इसलिए नहीं किए गए कि सवर्ण वोट बैंक में नाराजगी हो सकती थी।
ओम बिरला
लोकसभा अध्यक्ष हैं और पार्टी में मजबूत स्थिति में हैं। प्रयास भी काफी कर रहे हैं, लेकिन एक बड़ा संवैधानिक पद मिल चुका है, इसलिए संभावना कम है।
सीपी जोशी
सांसद और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं और युवा हैं। चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन अन्य राज्यों में जिस तरह के प्रयोग पार्टी करती आई है। उसे देखते हुए सम्भावित माने जा रहे हैं।
दिया कुमारी
सांसद और पार्टी में उभरता हुआ चेहरा है। पार्टी ने पहली सूची में बहुत सुरक्षित सीट से उन्हें प्रत्याशी बनाया। ऐसे में उन्हें भी एक बड़ा दावेदार माना जा रहा है।
इनके अलावा पूर्व राज्यसभा सदस्य ओम प्रकाश माथुर, नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ और उपनेता प्रतिपक्ष सतीश पूनिया के नाम भी दावेदारों में गिने जा रहे हैं।
कांग्रेस में बहुत कुछ सीटों की संख्या पर निर्भर
कांग्रेस में चेहरा वैसे तो सीएम अशोक गहलोत लगभग स्पष्ट चेहरा हैं। पार्टी ने हालांकि घोषित नहीं किया, लेकिन पूरा चुनाव कैम्पेन उनके नेतृत्व में चला और राष्ट्रीय नेताओं के अलावा वे ही थे, जो करीब 50 सीटों पर प्रचार के लिए पहुंचे। लेकिन पार्टी सूत्रों का कहना है इस बार बहुत कुछ इस बात पर भी निर्भर करेगा कि पार्टी को सीट कितनी मिल रही हैं। यदि पार्टी 110 या इससे ज्यादा सीट हासिल करती है तो फिर सीएम पद का 5 साल से इंतजार कर रहे सचिन पायलट का दावा मजबूत हो जाएगा, क्योंकि उस स्थिति में आलाकमान हावी रहेगा। यदि सीट बहुमत के आंकड़े के आसपास ही रहती हैं तो गहलोत के हाथ में ही कमान रहेगी।
अन्य दावेदार
सीपी जोशी
विधानसभा अध्यक्ष हैं और पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं। सीएम पद को लेकर गहलोत और पायलट किसी के भी नाम पर सहमति नहीं बनती तो सीपी जोशी का नाम आगे आ सकता है। अभी नाथद्वारा से प्रत्याशी हैं।
हरीश चौधरी
पूर्व मंत्री और पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हैं। गांधी परिवार के नजदीकी माने जाते हैं।
गोविंद सिंह डोटासरा
पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं। गहलोत और पायलट दोनों के पास अपनी पैठ रखते हैं। राजस्थान में सरकार चाहे किसी की भी बने, लेकिन ये तय माना जा रहा है कि जिसकी भी सरकार बनेगी, उसमें सीएम पद को लेकर इस बार अच्छा संघर्ष देखने को मिलेगा।