छत्तीसगढ़ में धान के बाद अब तिवड़ा के समर्थन मूल्य से किसान वोट बैंक साधेगी कांग्रेस, जानिए इस ऑफर में क्या छिपा है ?

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Rahul Garhwal
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छत्तीसगढ़ में धान के बाद अब तिवड़ा के समर्थन मूल्य से किसान वोट बैंक साधेगी कांग्रेस, जानिए इस ऑफर में क्या छिपा है ?

गंगेश द्विवेदी, RAIPUR. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने तिवड़ा का न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य तय करने की घोषणा करके किसानों को दोहरा लाभ पहुंचाने का संदेश दिया है। जानकारों का मानना है कि कांग्रेस का तिवड़ा को MSP के दायरे में लाना किसानों को धान के लगभग बराबर MSP के बीच कांग्रेस की तरफ जाने को प्रे‍रित करेगा। यानी किसानों के वोटों को ध्रुवीकरण कांग्रेस के पक्ष में होने की संभावना को बढ़ा देगा। धान के बाद इस फसल का उत्‍पादन बगैर अतिरिक्‍त लागत के ग्रामीणों की आय दोगुना करने में सक्षम है।

आसानी से उग जाता है तिवड़ा

छत्तीसगढ़ का किसान परंपरागतरूप से धान की फसल लेने का आदी रहा है। धान की खेती के लिए अन्‍य खरीफ की फसलों के मुकाबले पानी ज्यादा लगता है। क्योंकि यहां बारिश भी काफी मात्रा में होती है। इसलिए खरीफ के मौसम में धान का बंपर उत्‍पादन हो जाता है। प्रदेश के तकरीबन सभी जिलों में खासतौर पर जहां सिंचाई के साधन नहीं हैं, वहां भी किसान धान की खड़ी फसल के साथ तिवड़ा के छींट देते हैं। धान की कटाई के बाद जमीन की सामान्‍य नमी में ही तिवड़ा आसानी से उग जाता है। इसके लिए अलग से खेत की सिंचाई करने की जरूरत नहीं होती और न ही खाद या कोई ज्‍यादा सावधानियों की आवश्‍यकता होती है। ऐसे में बहुत कम लागत में तिवड़ा की फसल तैयार हो जाती है। बढ़ती फसल के दौरान इसकी भाजी लोग चाव से खाते हैं।

दलहनी फसल का 40 फीसदी तिवड़ा

कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक छत्तीसगढ़ में दलहन फसलों में चना के बाद सर्वाधिक उत्‍पादन तिवड़ा का होता है। कुल दलहन उत्‍पादन का 40 फीसदी हिस्‍सा तिवड़ा का है। पिछले 4 सालों में छत्तीसगढ़ में करीब 15 लाख हेक्टेयर में 9 लाख 25 हजार मीट्रिक टन तिवड़ा का उत्पादन किया गया है। इसके उत्पादन में दुर्ग जिला पहले नंबर पर है, जबकि दूसरे नंबर पर बिलासपुर और तीसरे नंबर पर रायपुर है। दुर्ग मुख्यमंत्री और गृह मंत्री का गृह जिला है।

धान के बाद सबसे बड़े रकबे में उगता है तिवड़ा

राज्य के करीब 3.50 लाख हेक्टेयर में इसकी खेती हो रही है। सालाना करीब 212 मीट्रिक टन का उत्पादन हो रहा है। क्षेत्रफल के हिसाब से धान के बाद सबसे ज्यादा रकबा तिवड़ा का है। इसमें 28 प्रतिशत प्रोटीन के साथ अन्य उपयोगी तत्व पाए जाते हैं। प्रतीक तिवड़ा 1999 में विकसित किया गया। इसी तरह से महातिवड़ा 2008 में विकसित हुआ है। प्रतीक के पौधे गहरे रंग के 50-70 सेंटीमीटर के होते हैं। दाने बड़े आकार और मटमैले रंग के आते हैं, जो औसत उपज 1275 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। वहीं महातिवड़ा के पौधे सीधे बढ़ने वाले, पत्तियां गहरी हरी, गुलाबी फूल और दानों का वजन 8 ग्राम होता है।

तिवड़ा का अर्थशास्‍त्र

तिवड़ा की उपज 19 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है। बाजार में औसत 3 हजार 810 रुपए प्रति क्विंटल की दर से बिकता है। सामान्‍यत: इसकी कीमत 4 हजार रुपए प्रति क्विंटल तक जाती है। इस तरह धान के साथ ही बगैर अतिरिक्‍त खाद-पानी के ये फसल किसानों को खासा लाभदायक साबित होती है। MSP तय होने पर किसानों की आय में और ज्यादा इजाफा होगा।

उन्‍नत तिवड़ा आने से बढ़ी संभावनाएं

तिवड़ा में हानिकारक पदार्थ बीटाएन ऑक्सिलाइल 2.3 डाईएमिनो प्रोपिओनिक अम्ल (ओडीएपी) होता है, जिससे गठिया रोग, निचले कमर में लकवा, ग्वाइटर हो जाते हैं। इस वजह से इसे देश में प्रतिबंधित किया गया। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के कृषि वैज्ञानिकों ने तिवड़ा पर अनुसंधान करके उसका विषैला तत्व दूर कर दिया है। उन्होंने तिवड़ा की 2 नई वैराइटी महातिवड़ा और प्रतीक विकसित की हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके सेवन से शरीर को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं होता। इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन गरीबों के लिए प्रोटीन का अच्छा विकल्प होगा। धान के बाद रायपुर समेत कवर्धा, बेमेतरा, नवापारा आदि जिलों में इसकी बेहतर फसल ली जाने लगी है। छत्तीसगढ़ का तिवड़ा देश के अन्य राज्यों में ही नहीं, विदेशों में भी जाता है और लोग स्वाद लेकर इसकी दाल खाते हैं।

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तिवड़ा की MSP के सियासी मायने

छत्तीसगढ़ में तिवड़ा धान के बाद सर्वाधिक रकबा में उगाया जाता है। धान की फसल लेने वाले ज्‍यादातर किसान इसे फसल काटने के पहले ही खेत में छींट देते हैं। ये गरीबों की दाल मानी जाती है और ग्रामीण क्षेत्र में ज्‍यादातर लोग लाखड़ी यानी तिवड़ा की दाल खाना पसंद करते हैं। इसे एमएसपी में खरीदकर खासतौर पर असिंचिंत क्षेत्र के किसानों को 2 फसल उगाने के लिए प्रेरित करने के साथ ही आय भी दो‍गुनी करने का संदेश छिपा है। किसान को ये ऑफर बीजेपी के ऑफर से ज्यादा फायदेमंद लग सकता है और कृषक वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता है।

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