BHOPAL. वेस्ट यूपी के मुजफ्फरनगर के एक स्कूल में टीचर द्वारा छात्र को उसके सहपाठियों से पिटवाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर किसी छात्र को सिर्फ इस आधार पर दंडित किया जाता है कि वह विशेष समुदाय से है, तो यह क्वॉलिटी एजुकेशन नहीं हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद मध्यप्रदेश के स्कूलों के मामले भी याद आ जाते हैं। मध्यप्रदश के स्कूलों में भी धर्म के आधार पर स्टूडेंट्स को दंडित करने या प्रताड़ित करने के मामले सामने आ चुके हैं। ऐसे में MP में भी क्वॉलिटी एजुकेशन सवालों के घेरे में है।
शाजापुर में ये हुआ था
मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले के एक स्कूल में इसी साल तिलक लगाकर पहुंचे विद्यार्थी को प्रवेश नहीं देने का मामला सामने आया था। जब बच्चा तिलक लगाकर स्कूल पहुंचा तो गेट पर उसे रोक दिया गया और तिलक मिटाकर स्कूल में बैठने की बात कही गई। बात फैली तो हिंदू संगठन के लोग जुट गए और उन्होंने स्कूल जाकर जमकर हंगामा किया। बाद में स्कूल प्रबंधन ने माफी मांगी और हनुमान चालीसा का पाठ कराया तब मामला शांत हुआ। मामला शाजापुर जिले के अकोदिया थाना क्षेत्र के निजी क्रिश्चियन स्कूल अल्फोंसा हायर सेकंडरी स्कूल का था।
इंदौर में भी सामने आया था ऐसा मामला
इंदौर में भी जुलाई में धार रोड पर श्री बाल विज्ञान शिशु विहार उच्चतर माध्यमिक विद्यालय ऐसा ही मामला सामने आया था। स्कूल में तिलक लगाकर आए छात्रों को शिक्षिका ने चांटा मारकर स्कूल से बाहर कर दिया था। मामला संज्ञान में आते ही बच्चे के माता-पिता स्कूल पहुंचे थे। वहीं, शिक्षा विभाग ने स्कूल प्रबंधन को चेवावनी दी थी कि वह छात्र-छात्राओं की धार्मिक आस्था का सम्मान करें। साथ ही शिक्षण संस्थान में सर्व धर्म समभाव बरकरार रखें। इसके बाद स्कूल के प्रिंसिपल ने एक पत्र जारी करते हुए कहा था कि तिलक लगाने पर बैन का नियम नहीं है, लेकिन हम स्कूल में धर्मवाद नहीं चाहते।
गंगा जमुना स्कूल का मामला भी गर्माया था
मध्यप्रदेश के दमोह में हिंदू छात्राओं को हिजाब पहनाने, धर्मांतरण कराने और बच्चों को जबरदस्ती नमाज पढ़ाने के मामले में गंगा जमुना स्कूल चर्चाओं में आया था और पूरे प्रदेश में ये मामला गर्माया हुआ था। स्कूल प्रबंधन के सदस्यों पर मामला दर्ज किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया राइट टू एजुकेशन एक्ट का हवाला
वेस्ट यूपी के मुजफ्फरनगर के स्कूल के मामले पर जब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई तो जस्टिस एएस ओका की अगुआई वाली बेंच ने कहा कि पहली नजर में दिखता है कि यूपी सरकार शिक्षा के अधिकार कानून (राइट टू एजुकेशन एक्ट) के प्रावधान लागू कराने मे विफल रही है। इस कानून के तहत बच्चे को किसी भी तरह की शारीरिक प्रताड़ना नहीं दी जा सकती है। इसमें 14 साल तक के बच्चों को जाति, धर्म, नस्ल और लिंग का भेद किए बिना मुफ्त शिक्षा देने का प्रावधान है।
ये है यूपी के मुजफ्फरनगर का मामला
यूपी के मुजफ्फरनगर के प्राइवेट स्कूल का वीडियो वायरल हुआ था। उसमें एक टीचर एक मुस्लिम छात्र को साथ पढ़ रहे दूसरे छात्रों से पिटवाती नजर आई थी। पुलिस ने केस दर्ज किया था। सुप्रीम कोर्ट महात्मा गांधी के परपोते तुषार गांधी की याचिका पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें मामले की तुरंत जांच कराने का अनुरोध किया गया था। साथ ही आरोप लगाया गया कि इस मामले में राज्य पुलिस का रवैया सही नहीं रहा है।
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निचले स्तर का फिजिकल पनिशमेंट
मुजफ्फरनगर के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोप हैं कि टीचर ने एक स्टूडेंट को अन्य स्टूडेंट्स से मारने को कहा। जिसे पिटवाया गया, वह अन्य धर्म का था। अगर किसी छात्र को सिर्फ इस आधार पर दंडित किया जाता है कि वह विशेष समुदाय से है, तो ये क्वॉलिटी एजुकेशन नहीं हो सकती है। ये बेहद निचले स्तर का फिजिकल पनिशमेंट है।