पूर्वी राजस्थान में पिछली बार सचिन इस बार ERCP के सहारे कांग्रेस, सचिन के साथ हुए बर्ताव की नाराजगी को ERCP के जरिए कम करने की कोशिश

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पूर्वी राजस्थान में पिछली बार सचिन इस बार ERCP के सहारे कांग्रेस, सचिन के साथ हुए बर्ताव की नाराजगी को ERCP के जरिए कम करने की कोशिश

मनीष गोधा, JAIPUR. राजस्थान के पूर्वी हिस्से में पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार मुकाबला रोचक होने की उम्मीद है। पिछले चुनाव में पूर्वी राजस्थान में कांग्रेस को एकमुश्त वोट मिले थे। पूर्वी राजस्थान के पांच जिलों दौसा, करौली, सवाई माधोपुर और भरतपुर में तो बीजेपी का खाता तक नहीं खुला था। यह सब हुआ था सचिन पायलट की बदौलत जो उस समय पार्टी में सीएम पद के सबसे बड़े दावेदार थे, लेकिन पिछले पांच साल में सचिन पायलट के साथ जो कुछ हुआ, उसे देखते हुए इस बार पार्टी को सचिन के नाम पर एकमुश्त वोट मिलने की सम्भावना नहीं है और इसीलिए पार्टी पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) को पूर्वी राजस्थान में एक बड़े मुद्दे के रूप में भुनाने की तैयारी कर रही है।

ERCP राजस्थान के 13 जिलों को कवर कर रही है

पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना यूं तो राजस्थान के कुल 13 जिलों को कवर कर रही है और इसमें पूर्वी राजस्थान के पांच जिलों के अलावा कोटा सम्भाग के बूंदी, झालावाड़, कोटा और बारां और जयपुर, अलवर, अजमेर और टोंक जिले भी शामिल हैं। इन जिलों में कुल विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें से 49 पर कांग्रेस, 25 पर बीजेपी, आठ पर निर्दलीय और एक पर राष्ट्रीय लोकदल को जीत हासिल हुई थी। इन 13 जिलों में कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़, अजमेर और जयपुर में बीजेपी का प्रदर्शन ठीक-ठाक था, इसलिए हम बात करेंगे सिर्फ पूर्वी राजस्थान के पांच जिलों की जहां पिछले चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा था और कांग्रेस ने एकमुश्त बढ़त हासिल की थी। ये जिले हैं दौसा, करौली, सवाई माधोपुर, भरतपुर और धौलपुर। इन जिलों में कुल 24 सीटें हैं और इन 24 में से बीजेपी को सिर्फ धौलपुर की एक सीट हासिल हो पाई थी। इस सीट पर शोभारानी कुशवाहा जीती थीं, लेकिन मौजूदा स्थिति में यह सीट भी बीजेपी के पास नहीं है, क्योंकि राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग के कारण शोभारानी को पार्टी से निष्कासित किया जा चुका है, इसलिए बीजेपी का खाता मौजूदा स्थिति में यहां पूरी तरह खाली है।

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ऐसा क्यों हुआ था-

पूर्वी राजस्थान में वैसे बीजेपी बहुत कमजोर नहीं रही है। यहां के जातिगत समीकरण देखें तो यह मीणा और गुर्जर बाहुल्य इलाका है। इनमें से मीणा परम्परागत तौर पर कांग्रेस के साथ रहे हैं, वहीं गुर्जर बीजेपी के साथ जाते रहे हैं, लेकिन पिछले चुनाव में कांग्रेस की ओर से सचिन पायलट पार्टी का चेहरा बन गए थे। वे पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे और उनके सीएम बनने की पूरी सम्भावना थी। यही कारण था कि पूर्वी राजस्थान का गुर्जर वोट भी पूरी तरह से कांग्रेस को शिफ्ट हो गया। गुर्जरों ने अन्य सीटों पर पर तो कांग्रेस को जिताया ही, स्थिति यह बनी थी कि बीजेपी ने इन पांच जिलों की चार सीटों पर गुर्जरों को टिकट दिए थे, लेकिन ये भी नहीं जीत पाए। जबकि कांग्रेस ने तीन ही टिकट दिए थे, इसके बावजूद ये जीत गए। यानी गुर्जरों ने सचिन के आगे अपनी जाति के उम्मीदवारों को भी नहीं देखा।

अब क्या बदलाव है-

इस बार के हालात कुछ अलग है। इन जिलों से जुड़े लोग बताते हैं कि पिछली बार की तरह इस बार गुर्जर वोट कांग्रेस में शिफ्ट में नहीं होगा। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि सचिन पायलट के साथ कांग्रेस में पिछले साढ़े चार साल में जो बर्ताव किया गया, उससे गुर्जरों में नाराजगी है और इस बार सचिन को चुनाव में कोई अहम जिम्मेदारी भी नहीं दी गई है, जिससे कहीं भी यह लगता हो कि चुनाव में कांग्रेस की जीत होती है तो सचिन को कोई अहम पद मिलेगा। ऐसे में जातिगत आधार पर वोट पड़ते हैं तो कम से कम गुर्जर बाहुल्य सीटों पर तो कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ सकता है।

इसीलिए इस बार ईआरसीपी का सहारा

कांग्रेस पार्टी के कर्ताधर्ता इस बात को जानते है कि सचिन के मामले में वहां के वोटरों की नाराजगी पार्टी के लिए भारी पड़ सकती है, इसीलिए ईआरसीपी यानी पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना को सीएम अशोक गहलोत ने एक मुद्दे के रूप में धीरे-धीरे आगे बढ़ाया और अब इस क्षेत्र में पार्टी पूरी तरह से इसी मुद्दे पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। इस मामले में बीजेपी की कमजोरी यह रही कि केन्द्र में सरकार होने के बावजूद बीजेपी इस मुद्दे पर चुप्पी साधे रही और पार्टी की यह चुप्पी तब भी नहीं टूटी जब पिछले तीन साल से हर बजट में गहलोत ने इसका उल्लेख किया। अब जब पानी सिर पर आ गया तो केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह स्थिति स्पष्ट करते नजर आ रहे हैं, लेकिन बात इतनी आगे बढ़ चुकी है कि जनता उनके तर्कों को मानने के लिए तैयार नहीं दिख रही है। कांग्रेस बीजेपी की इसी कमजोरी का फायदा उठाने की तैयारी में है। इसके लिए इसी माह के अंत में 25 से 29 सितम्बर तक पांच दिन की यात्रा और कई अन्य कार्यक्रम किए जाने की तैयारी है। पार्टी की कोशिश है कि इस मुद्दे को चुनाव तक पूरी तरह गर्म कर दिया जाए ताकि इसका जितना सम्भव हो सके, लाभ मिल जाए। पानी राजस्थान के लोगों के लिए जरूरत ही नहीं बल्कि एक भावनात्मक मुद्दा है और कांग्रेस की कोशिश है कि इसे जहां तक हो सके भुनाया जाए। हालांकि, जातिगत आधार पर वोटिंग हुई तो यह तय है कि कांग्रेस को इस बार इन जिलों में पिछली बार जैसा समर्थन नहीं मिलेगा। यही कारण है कि पूर्वी राजस्थान की 25 सीटों की लड़ाई इस बार खासी रोचक होने की सम्भावना है।

पूर्वी राजस्थान के पांच जिलों में पिछले विधानसभा चुनाव के परिणाम

इस क्षेत्र के पांच जिलों की 24 सीटों पर पिछले तीन विधानसभा चुनाव के परिणाम की बात करें तो 2008 में बीजेपी ने 24 में से 10, कांग्रेस ने 5, 2013 में बीजेपी ने 14, कांग्रेस ने 3 और 2018 में कांग्रेस ने 17 और बीजेपी ने एक सीट जीती थी। तीनों चुनावों में शेष बची सीटें बसपा और निर्दलियो के बीच बंटती रही है।

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