नामांकन फार्म तक चुनाव खर्च नहीं जुड़ता, शुक्ला को थी आशंका बीजेपी नामांकन पर आपत्ति लेकर खर्च में 50 लाख जुड़वाकर अयोग्य करा देती

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Pratibha Rana
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नामांकन फार्म तक चुनाव खर्च नहीं जुड़ता, शुक्ला को थी आशंका बीजेपी नामांकन पर आपत्ति लेकर खर्च में 50 लाख जुड़वाकर अयोग्य करा देती

संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर में कांग्रेस विधायक संजय शुक्ला और बीजेपी प्रत्याशी कैलाश विजयवर्गीय के बीच चुनाव के कारण हाईप्रोफाइल हुई विधानसभा एक नंबर सीट में रोज तल्खी आती जा रही है। शुक्ला ने पहले सात अक्टूबर को धर्म प्रचारक जया किशोरी कथा की मंजूरी नहीं मिलने की बात कही, जो बाद में पुलिस आयुक्त ने जारी कर दी, लेकिन आचार संहिता लगने के बाद 9 अकटूबर को खुद शुक्ला ने ही आगे बढ़कर आयोजन को रद्द कर दिया। उधर कथा रद्द होने के बाद शुक्ला मंगलवार सुबह (10 अक्टूबर) आयोजन स्थल पर पहुंचे क्योंकि कथा की उम्मीद में कई लोग खासकर महिलाएं वहां पहुंच गई थी, वहां उन्होंने पहुंचकर लोगों से क्षमा मांगी। वहीं एक सूचना भी जारी कर फिर धर्मकार्य में अंडगा लगाने की बात कही और फिर चुनाव के बाद धार्मिक आयोजन होने की बात कही।

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कथा का आवेदन पुत्र सागर का, मंजूरी पत्र में नाम संजय शुक्ला का 

संजय शुक्ला भी जानते थे कथा के दौरान आचार संहिता लग जाएगी, लेकिन कथा उनके लिए चुनाव के लिए मास्टर स्ट्रोक हो सकती है। इसलिए उन्होंने कथा के आयोजन के लिए खुद मंजूरी नहीं ली और उनके पुत्र सागर संजय शुक्ला ने इसके लिए पुलिस को एक महीने पहले आवेदन किया। लेकिन मंजूरी नहीं मिली। बाद में सात अक्टूबर को पुलिस आयुक्त के दफ्तर से 19 शर्तों के साथ मंजूरी मिली, लेकिन इसमें मंजूरी में ऊपर पहली लाइन लिखी गई- आवेदक संजय शुक्ला विधायक कांग्रेस एक इंदौर मप्र द्वारा प्रस्तुत आवेदन पत्र पर अनुमति दी जाती है। साथ ही शर्त थी कि आचार संहिता लगी तो रिटर्निंग अधिकारी से मंजूरी लेना होगी।

शुक्ला ने इसलिए उठाए सवाल

संजय शुक्ला को जब मंजूरी आई तो इसमें संजय शुक्ला का नाम था। वहीं अगले दिन आचार संहिता नौ अक्टूबर को लग गई। उन्होंने इस पर सवाल उठाए कि मंजूरी जब पुत्र ने मांगी तो मेरे नाम से क्यों दी गई। मैं फिर मंजूरी के लिए रिटर्निंग ऑफिसर के पास जाउंगा और मंजूरी मिल भी गई तो यह पुरानी मंजूरी पुलिस आयुक्त की जिसमें मेरा नाम लिखा है, इसे लेकर बीजेपी षडयंत्र रचेगी की कथा के आयोजक तो संजय शुक्ला है, यह पुलिस, प्रशासन की बदनियती थी मुझे उलझाने के लिए इसलिए इसे रद्द कर रहा हूं।

नियम कहता है बिना नामांकन फार्म के खर्च नहीं जुड़ता

अब नियमों की बात करें तो चुनाव आयोग का नियम साफ है कि प्रत्याशी पहले घोषित होने से कुछ नहीं होता है। जब तक कि वह नामांकन फार्म जमा नहीं कर देता। इसके बाद से ही उसे खर्च का रिकॉर्ड रखना होता है, अलग खाता खुलवाना होता है और खर्चे का हिसाब देना होता है। नामांकन फार्म से पहले क्या किया यह आयोग नहीं देखता है। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने भी द सूत्र को बताया कि पहले खर्च जोड़ने का नियम नहीं है। जिला निर्वाचन अधिकारी व कलेक्टर डॉ, इलैयाराजा टी ने भी साफ कहा कि नामांकन फार्म से ही चुनाव खर्च जोड़ा जाता है।

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फिर किस आशंका में रद्द की शुक्ला ने कथा?

जिला निर्वाचन कार्यालय ने सभी खर्चों की रेट लिस्ट जारी कर दी है, जिसमे टेंट, कुर्सी, पंडाल, खान-पान एक-एक बात की दरें जारी हुई है। यदि इन दरों को देखें तो शुक्ला की कथा और कलश यात्रा का खर्चा कम से कम 50 लाख रुपए होता। शुक्ला को आशंका थी कि जब वह नामांकन फार्म भरेंगे तो बीजेपी की ओर से यह आपत्ति लगाई जाएगी कि जो खर्च सीमा (40 लाख रुपए प्रति प्रत्याशी प्रति विधानसभा) तय है, उससे ज्यादा पहले ही खर्च करने का आरोप लगाया जाता है और बीजेपी के दबाव में मेरा नामांकन पत्र रद्द हो जाता, ऐसा होने पर वह चुनाव से ही बाहर हो जाते। एक कथा के लिए वह चुनाव से केवल इस कारण से बाहर हो जाने के लिए तैयार नहीं थे। उन्होंने अपने स्तर पर कई लोगों से विधिक सलाह भी ली लेकिन यही निकल कर आया कि खर्च नामांकन से पहले जुड़ता है लेकिन सीट हाईप्रोफाइल होने से क्या खेल हो जाए कुछ नहीं कह सकते, इसलिए चक्कर में मत पड़ो। इन सलाहों के बाद शुक्ला ने कथा को रद्द कर दिया।

बीते चुनाव में 14 लाख ही खर्च किए थे शुक्ला ने

बीते चुनाव 2018 के दौरान चुनाव खर्च की सीमा 28 लाख रुपए थी, जो इस बार बढ़ाकर 40 लाख रुपए कर दी गई है। बीते चुनाव में शुक्ला ने करीब 14 लाख रुपए चुनाव खर्च होना बताया था। इंदौर के अन्य प्रत्याशियों का भी खर्च 20 लाख रुपए से कम ही बताया गया था।


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