संजय गुप्ता@ INDORE.
इंदौर की विधानसभा एक प्रदेश की हाईप्रोफाइल सीट में शामिल हो गई हैं। यहां से पहली बार चुनाव मैदान में उतरे छह बार के विधायक व बीजेपी के राष्ट्रीय महसाचिव कैलाश विजयवर्गीय और कांग्रेस विधायक संजय शुक्ला की चुनावी रणनीति अलग-अलग है, लक्ष्य एक ही है विजय। विजयवर्गीय ने जहां मुख्य नारा दिया है कि हर कार्यकर्ता कैलाश तो वहीं संजय शुक्ला ने विधानसभा को परिवार और खुद को बेटा, विजयवर्गीय को नेता का नारा दिया है। यह चुनाव विजयवर्गीय के लिए भी इतना आसान नहीं होने वाला है क्योंकि जो उनके चुनाव की रणनीति पहले से रही है धार्मिक आयोजन और विकास काम, इसमें शुक्ला पांच साल से विधानसभा एक में धार्मिक आयोजन कर हैं। विकास काम नहीं होने के लिए शुक्ला के पास सीधा तर्क है कि सराकर बीजेपी की थी, हमारी तो 15 महीने में बीजेपी ने गिरा दी। खुद के रुपए से विकास किया है।
विजयवर्गीय की यह रणनीति
शुरूआत में विजयवर्गीय ने टिकट होने के बाद दो दिन इस तरह के बयान दिए कि उनकी चुनाव की मंशा नहीं थी और वह पूरे प्रदेश में प्रचार करने की तैयारी में थे। लेकिन बाद में वह संभले और चुनाव प्रचार का मोर्चा संभालना शुरू कर दिया।
1- विजयवर्गीय ने सबसे पहले कार्यकर्ताओं को जमा किया और साफ कहा कि प्रदेश में नंबर वन कार्यकर्ता विधासनभा एक के हैं और इनका मान-सम्मान रखूंगा, किसी भी सरकारी दफ्तर में जाएंगे तो अधिकारी सम्मान देंगे।
2- इसके बाद विधानसभा में लोग उनके लिए काम करें, इसके लिए कहा कि पार्टी उन्हें कुछ बड़ा देगी, खाली विधायक नहीं रहने देगी, इसका संदेश साफ था कि चुनाव जीते, सरकार बनी तो सभी का भला होगा।
3- कार्यकर्ताओं को एकजुट करने के बाद उन्होंने अगली रणनीति समाजवार वोटबैंक की बनाई। विजयवर्गीय हर दिन शाम से रात तक कम से कम पांच-छह समाज की सभाओं में जाते हैं। यह सभाएं कोई बड़ी नहीं होती है, तीन-चार हजार तो कभी पांच सौ-हजार लोगों को सभाएं होती है। इसमें समाज में पैठ रखने वाले पदाधिकारी होते हैं, जो विजयवर्गीय के साथ जुड़कर उनके लिए समाज में आगे बात पहुंचाने का जिम्मा उठा रहे हैं।
4- विजयवर्गीय पर अन्य सीट पर ध्यान देने का आऱोप नहीं लगे जैसे साल 2018 में लगे थे, इसके लिए वह सुबह से शाम तक इंदौर के बाहर की सीटों के लिए समय निकाल रहे हैं। इंदौर में अब मुख्य तौर पर शाम से सक्रिय होते हैं। जब दौरा नहीं होता तो दिन में भी इंदौर में कार्यक्रम तय रहते हैं, यह पहले से ही शेड्यूल कर लिए जाते हैं।
5- समाज के साथ ही विजयवर्गीय ने शिक्षाविद, डॉक्टर, प्रोफेशनल्स के साथ ही युवा उद्यमियों के साथ भी बैठक कर हर सेक्टर को कवर करने की कोशिश की है।
6- यहीं नहीं विरोधी पक्ष पर भी नजर है और इसके लिए उनहोंने 112 वकीलों की फौज तैयार की है जो दिन भर शुक्ला के कामों पर नजर रखती है और चुनाव आयोग में आचार संहिता के उल्लंघन पर शिकायत कराते हैं।
संजय शुक्ला की सीधी नीति बेटा VS नेता
उधर संजय शुक्ला की रणनीति सीधे-सीधे चुनाव को नेता VS बेटा करने की है। शुक्ला यह बताना चाहते हैं कि उनकी जीत विधानसभा परिवार की जीत और हार बेटे की हार होगी। शुक्ला पांच साल से किए जा रहे धार्मिक कामों के भरोसे थे लेकिन अब उन्होंने कोविड के कामों के जरिए लोगों की यादों को ताजा करने का काम किया है।
- धार्मिक आयोजन लगातार जारी रखने का वादा किया है, जैसे वह पहले करते आए हैं। इससे बीजेपी सनातन संबंधी मुद्दा उनसे नही ले पाएगी। हर वार्डवार उन्होंने यात्राएं कराई है, वह वापस उनके पास जाकर वोट मांग रहे हैं। अपने काम याद दिला रहे हैं।
- कोविड के पुराने वीडियो नए अपडेट के साथ जारी हो रहे हैं। बताया जा रहा है कि शुक्ला इस दौर में जब कोई नेता मदद के लिए नहीं आ रहा था वह शमशान से लेकर अस्पताल तक गए थे। चेक बुक तक अधिकारियों को दी थी कि रेमेडेसिवर इंजेक्शन दे दो, राशि मुझसे ले लो।
- आमजन के वीडियो बाइट जारी की जा रही है जिसमें वह शुक्ला के कामों की तारीफ करने और विजयवर्गीय को इस विधानसभा में नहीं देखने की बात कह रहे हैं.
- ब्राह्मण वोट विधानसभा एक में प्रभावी संख्या में हैं. खुद ब्राह्मण है। मनोज परमार को विजयवर्गीय द्वारा महामंडलेश्वर कहने और किसी भी ब्राह्मण से ज्यादा उन्हें श्लोक याद होने की बात को ब्राहमण का अपमान बताकर अपनी ओर करने की कोशिश
- शुक्ला पहले आक्रामक बयान दे रहे थे लेकिन अब संतुलित होकर बयान देने लगे हैं। खुद को अमीर बताने में संकोच नहीं, साथ ही कहते हैं कि यह पूरा पैसा धार्मिक काम में खर्च कर रहा हूं, मेहनत, ईमानदारी की कमाई है।