वसुंधरा राजे की परिवर्तन यात्राओं से दूरी, क्या सब कुछ सही है राजस्थान बीजेपी में, राजे दूर हैं या दूर की गई हैं?

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The Sootr
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वसुंधरा राजे की परिवर्तन यात्राओं से दूरी, क्या सब कुछ सही है राजस्थान बीजेपी में, राजे दूर हैं या दूर की गई हैं?

मनीष गोधा, JAIPUR. राजस्थान बीजेपी की चार परिवर्तन यात्राएं खत्म होने को हैं, लेकिन इन यात्राओं से पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की दूरी खत्म नहीं हो रही है। यात्राओं की शुरुआत के बाद उनका इन यात्राओं में नहीं आना कई तरह के सवाल खड़े कर रहा है और चूंकि मामला संवेदनशील है, इसलिए पार्टी और वसुंधरा राजे के नजदीकी लोग इस मामले में ऑन रिकॉर्ड कुछ भी कहने से बच रहे हैं। लेकिन परिवर्तन यात्राओं से राजे की दूरी से सवाल यह उठ रहा है कि क्या राजे वास्तव में परिवर्तन यात्राओं से दूर हैं, या उन्हें दूर किया गया है?

25 सितम्बर को परिवर्तन यात्राओं का औपचारिक समापन

राजस्थान में बीजेपी की चार परिवर्तन यात्राएं दो से पांच सितम्बर के बीच रवाना हुई थी और अब एक-एक कर इनका समापन हो रहा है। सवाई माधोपुर से शुरू हुई यात्रा समाप्त हो चुकी है, वहीं दक्षिण राजस्थान और पश्चिमी राजस्थान की यात्राएं आज समाप्त हो रही है। उत्तरी राजस्थान की यात्रा कल समाप्त हो जाएगी। इसके बाद 25 सितम्बर को जयपुर में प्रधानमंत्री मोदी की एक बड़ी सभा इनका औपचारिक समापन करेगी।

धीरे-धीरे यात्राओं से गायब हो गईं राजे

जब यात्राएं रवाना हुई थीं तो सभी चारों यात्राओं की रवानगी के कार्यक्रमों में वसुंधरा राजे मौजूद थीं और पार्टी के केन्द्रीय नेताओं ने जिस तरह उन्हें महत्व दिया था, उसे देखते हुए लग रहा था कि पार्टी सामूहिक नेतृत्व की बात भले ही कर रही है, लेकिन पहला चेहरा वसुंधरा राजे ही बनती दिख रही हैं। यात्राएं शुरू हुई अपने मुकाम भी तय करने लगीं, लेकिन वसुंधरा राजे एक भी यात्रा में नजर नहीं आई। यात्राओं के दौरान प्रतिदिन एक बड़ी सभा होनी थी, लेकिन इनमें भी वे नहीं पहुंची। अब यात्राएं समाप्त हो रही हैं। दूसरे प्रदेशों के मुख्यमंत्री स्तर के नेता इन यात्राओं की समापन सभाओं को सम्बोधित करने आ रहे हैं। लेकिन, राजे कहीं नहीं दिख रही हैं और इसी के चलते यह सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या राजस्थान बीजेपी में अभी भी सब कुछ सही नहीं हो रहा है?

आखिर राजे की गैरमौजूदी का कारण क्या है

राजे खेमे की ओर से अधिकृत तौर पर यही कहा जा रहा है कि उनकी पुत्रवधु बीमार हैं और दिल्ली में चूंकि उनका उपचार चल रहा है, इसलिए राजे वहां व्यस्त हैं। लेकिन पार्टी और राजे से जुड़े नेताओं से बातचीत में राजे की गैर मौजूदगी के ये कारण सामने आए हैं-



  • पार्टी ने जो कार्यक्रम तय किए वे राजे के स्तर के अनुरूप नहीं थे। वे दो बार की पूर्व सीएम हैं, लेकिन कार्यक्रम तय करते समय पार्टी ने उनके स्तर का ध्यान नहीं रखा। हालांकि, पार्टी से जुड़े सूत्र कहते हैं कि यात्रा के दौरान सभी प्रमुख नेताओं को रोटेशन से अलग-अलग जगह जाना था और इसी हिसाब से कार्यक्रम तय किए गए हैं।


  • चुनाव में राजे की भूमिका क्या रहने वाली है इसे लेकर पार्टी अभी भी स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं कह रही है और क्या यह जानबूझ कर किया जा रहा है।
  • राजे दो बार की सीएम हैं वे अपने दम पर यात्राएं निकालती रही हैं। ऐसे में सामूहिक नेतृत्व वाली यात्रा में जाना कहीं ना कहीं उनके कद को कम करता।

बैठकों में शामिल होती रहीं हैं राजे

राजे परिवर्तन यात्रा में भले ही ना गई हों, लेकिन पार्टी में उनकी सक्रियता लगातार बनी रही। पिछले सप्ताह दिल्ली में पार्टी मुख्यालय पर दो दिन तक चली बैठकों में वे मौजूद रहीं। इसके अलावा जयपुर में भी पार्टी मुख्यालय पर आईं और करीब तीन घंटे तक पार्टी के प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह और अन्य नेताओं के साथ चर्चा की। बताया जा रहा है कि दिल्ली में अपने निवास पर भी वे नेताओं से लगातार मुलाकात कर रही हैं। उनके नजदीकी लोगों का कहना है कि राजे को जहां बुलाया जा रहा है, वे जा रही हैं और पूरी तरह सक्रिय भी हैं, लेकिन पार्टी को यह तो ध्यान रखना ही पडे़गा कि वे दो बार सीएम रह चुकी हैं।

पार्टी नेताओं के पास नहीं है कोई स्पष्ट जवाब

उधर पार्टी के नेता राजे की अनुपस्थिति पर कुछ कहने की स्थिति में नजर नहीं आ रहे हैं। पार्टी की चुनाव प्रबंधन समिति के अध्यक्ष नारायण पंचारिया से जब पूछा गया तो उन्होंने कहा कि राजे के पास कई दूसरी जिम्मेदारियां भी हैं, वहीं नागौर में जब पार्टी प्रभारी अरुण सिंह से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वे जल्द नजर आएंगी। वहीं जयपुर में पार्टी के प्रदेश महामंत्री भजनलाल शर्मा से पूछा गया तो उन्होंने भी इनता ही कहा कि वसुंधरा जी सभी कार्यक्रमों में आई हैं और सभी कार्यक्रमों में उनकी सहभागिता है।

इसका असर क्या है?

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक राजीव तिवारी मानते हैं कि परिवर्तन यात्राओं से वसुंधरा राजे की गैर मौजूदगी पार्टी के हित में नहीं है। यह दिख भी रहा है। यात्राओं को लेकर जैसा माहौल बनना चाहिए था, वह नजर नहीं आ रहा। तिवारी कहते है कि राजे भले ही पिछला चुनाव हार गईं, लेकिन, जनता में उनकी लोकप्रियता में कमी नहीं आई है। पिछले चुनाव में भी उनके कई विधायक जीत कर विधाानसभा पहुंचे और उन्हें फ्री हैंड दिया जाता तो परिणाम कुछ और हो सकता था। पार्टी को आचार संहिता लागू करने से पहले उनकी भूमिका स्पष्ट करनी चाहिए। सिर्फ मोदी के चेहरे पर जीत मिलना आसान नहीं है। ऐसा होता तो कर्नाटक और हिमाचल में हार नहीं होती। वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक गोविंद चतुर्वेदी मानते हैं कि कमियां हर इंसान में होती हैं। वसुंधरा राजे सिंधिया में भी हो सकती हैं लेकिन यह निर्विवाद है कि आज की तारीख में राज्य बीजेपी के सब नेताओं का जितना जनाधार है, उससे कहीं अधिक जनाधार उनका है। अपने वक्त के दिग्गज बीजेपी नेता भैरोंसिंह शेखावत से ज्यादा नहीं तो खास कम भी नहीं। जहां तक परिवर्तन यात्रा का सवाल है, कोई कहे न कहे यह स्पष्ट है कि, इसमें उनकी अनदेखी हुई है और हो रही है। इसका असर इन यात्राओं में ज्यादातर जगह कम भीड़ जुटने की खबरों और वीडियोज के रूप में सुना- देखा जा रहा है। पार्टी को नए लोगों को आगे लाना चाहिए, लेकिन पुराने को खंडहर बता कर जंग नहीं जीती जा सकती। कारण चाहे कुछ भी हो, लेकिन उनकी अनदेखी करने का बीजेपी को नुकसान ही होगा।

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