राजनांदगांव में डॉ रमन सिंह के मुक़ाबले गिरीश देवांगन को उतारने की रणनीति ने चौंकाया, दांव सधेगा या और बिगड़ेगा?

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Shivam Dubey
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राजनांदगांव में डॉ रमन सिंह के मुक़ाबले गिरीश देवांगन को उतारने की रणनीति ने चौंकाया, दांव सधेगा या और बिगड़ेगा?

Raipur. राजनांदगांव की हाई प्रोफ़ाइल सीट पर जहां बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ रमन सिंह प्रत्याशी हैं वहाँ सीएम भूपेश बघेल ने गिरीश देवांगन को प्रत्याशी के रुप में क्यों चुना, यह वह सवाल है जो कांग्रेस से ज़्यादा बीजेपी को चौंका रहा है। यूं चौंकाना चाहिए भी क्योंकि जिस राजनांदगांव में कांग्रेस के दिग्गज चेहरों की कोई कमी नहीं है, वहां सीएम भूपेश बघेल क़रीब 200 किलोमीटर दूर खरोरा से गिरीश देवांगन को क्यों लाए। राजनांदगांव का जातिगत समीकरण भी देखें तो वहां देवांगन समाज कोई ऐसी जादुई संख्या नहीं रखता कि, जातीय गर्व के आधार पर ऐसी वोटिंग कर जाए जो मतगणना के आँकड़े को प्रभावित कर दे। यह लिखा जाना क़तई अतिश्योक्ति नहीं है और ना ही गिरीश देवांगन के व्यक्तित्व को कमतर करना है कि, उनके राजनीतिक औरे की ताक़त का नाम केवल और केवल भूपेश बघेल है। यह जानना भी तथ्यों को झूठलाना नहीं है कि, भूपेश बघेल और गिरीश देवांगन बेहद पुराने सखा हैं। मगर इन सब से राजनांदगाँव में कांग्रेस को आख़िर हासिल क्या है ?

पहले जानिए राजनांदगांव को

राजनांदगांव प्रयोगधर्मी सीट है। राजनांदगांव ने कई बार अपने फ़ैसलों से राजनीतिक प्रेक्षकों को चकित किया है। किसी ने कभी यह नहीं सोचा होगा कि, मोतीलाल वोरा को राजनांदगांव तब अपना समर्थन नहीं देगा, जबकि विधानसभा चुनाव हार चुके डॉ रमन सामने आए और राजनांदगांव की जनता ने उनको राजनांदगांव का सांसद बना दिया। मुक्तिबोध का यह शहर राजनांदगांव छत्तीसगढ़ की संस्कारधानी कहलाती है। बीजेपी की प्रदेश में सरकार थी, सीएम वहीं डॉ रमन सिंह थे जो राजनांदगांव के विधायक थे और राजनांदगांव ने कांग्रेस का महापौर चुन लिया। राजनांदगांव शहर में जैन जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में साहू मतदाता प्रभावी हैं। डॉ रमन सिंह का यह लगातार तीसरा चुनाव होगा जबकि वे राजनांदगांव के जनमन के सामने याचक की भुमिका में हैं। एक ऐसा याचक जिसे राजनांदगांव ने 2018 की आंधी में भी ख़ाली हाथ नहीं रहने दिया।डॉ रमन सिंह की राजनांदगांव में ‘जो आया सबका भला’ वाली नीति ने उन्हें कभी अलोकप्रिय होने नहीं दिया। बीजेपी संगठन की जहां तक बात है तो वहाँ भी कम से कम राजनांदगांव विधानसभा के सांगठनिक नक़्शे में पन्ना प्रभारी से लेकर ज़िला अध्यक्ष तक का नाम डॉ रमन सिंह का नाम माना जाता है।

कांग्रेस के आलम को जानिए

ऐसा क़तई नहीं है कि, कांग्रेस राजनांदगांव में शून्य पर सवार है वाली स्थिति में रही है। कांग्रेस राजनांदगांव विधानसभा में हमेशा से मज़बूत रुप से उपस्थित रही है, बल्कि अविभाजित राजनांदगांव ज़िले में वो सीटें भी जीतती रही है। कांग्रेस का दम इस बात से आंकिए कि, इस बार डॉ रमन सिंह को चुनौती देने राजनांदगांव से हेमा देशमुख, जितेंद्र मुदलियार, निखिल द्विवेदी, कुलबीर छाबड़ा, भागवत साहू और नरेश डाकलिया जैसे नाम थे। जैसी कांग्रेस की संस्कृति है इस हर नाम का अपना गुट है और बिलाशक प्रभावी है। इस बार इन दावेदारों को यक़ीन की हद तक भरोसा दिलाया गया था कि टिकट स्थानीय को दी जाएगी, जैसा 2018 में हुआ वो नहीं होगा। 2018 में जबकि कांग्रेस की आंधी चल रही थी तब डॉ रमन सिंह के सामने कांग्रेस करुणा शुक्ला को चुनाव मैदान में उतार गई थी। डॉ रमन सिंह तब भी जीते और तब कांग्रेस के भीतर से यह बात आई कि, स्थानीय को टिकट मिलती तो बेहतर नतीजे से इंकार करना मुश्किल होता।

लेकिन अब फिर से ऐसा क्यों हुआ

राजनांदगांव के स्थानीय कांग्रेसियों के सामने यह सवाल है कि फिर से क्यों ? कांग्रेस के प्रदेश स्तरीय एक नेता इस पहेली को कुछ इस तरह बूझते हैं कि गिरीश देवांगन के नाम का मतलब ही भूपेश बघेल है और ऐसे में कांग्रेस संगठन के भीतर से कोई विरोध, खुला घात भीतरघात की हिम्मत कोई नहीं करेगा। जानकार इसके पीछे यह तर्क भी देते हैं कि, गिरीश देवांगन पीसीसी में बेहद शक्तिशाली महामंत्री थे, इस नाते भी संगठन पर उनकी पकड़ है। कांग्रेस की राजनीति को जो जानते हैं उन्हें यह मानने में कठिनाई होगी कि, कोई भीतरघात नहीं होगा। प्रत्याशी स्थानीय क्यों नहीं के साथ साथ कांग्रेस के स्थानीय कैडर के सामने यह सवाल भी परेशान करेगा जिसे बीजेपी हमले की तरह उपयोग करेगी कि, केवल डॉ रमन सिंह का क्षेत्र होने की वजह से क्षेत्र के साथ सौतेला व्यवहार हुआ।

इस नज़ारे को भी जानिए

तड़के जबकि कांग्रेस की टिकट घोषित हुई, डॉ रमन सिंह राजनांदगांव में ही थे। राजनांदगांव में डॉ रमन सिंह कार्यकर्ताओं के साथ दिन भर जन्मदिन की शुभकामनाओं को लेने के बहाने रिश्तों को ताजादम कर रहे थे। इधर गिरीश देवांगन राजीव भवन में पत्रकार वार्ता में यह बताने की क़वायद कर रहे थे कि आख़िर राजनांदगांव से उनका रिश्ता पुराना है। उन्होंने बताया कि राजनांदगांव उनके मामा का गांव है और ननिहाल गांव के इस रिश्ते से वे उस शहर से अनजान नहीं हैं। गिरीश देवांगन ने राज्य सरकार क़ी किसान हितकारी योजनाओं का ज़िक्र किया, धान बोनस का ज़िक्र किया, और टिकट के लिए पार्टी का आभार जताते हुए दावा किया कि, सरकार की योजनाओं का लाभ निश्चित तौर पर मिलेगा और ना सिर्फ़ उनकी बल्कि कांग्रेस की सत्ता में सुनिश्चित वापसी होगी।

यदि जीते तो कमाल और हारे तो भी जलवा तय

राजनांदगांव सीट पर अपने सखा गिरीश देवांगन को टिकट देकर सीएम भूपेश ने यह तय कर दिया है कि, यह सीट उनके लिए अहमियत रखती है। जीत के लिए कोई चकित करने वाली गोपनीय रणनीति यदि है तो उसका इंतज़ार करना होगा, वर्ना यह तो मुकम्मल कराने की सीएम भूपेश कोशिश करेंगे ही कि, डॉ रमन सिंह की जीत आसान ना हो। अब चुनावी बिसात में यदि गिरीश देवांगन जीत गए तो जलवा भूपेश का होना तय है और यदि हारे तो डॉ रमन सिंह से चुनाव बेहद मज़बूती से लड़ते हुए हारने का रिकॉर्ड सीएम भूपेश के इस सखा को नया राजनीतिक अवसर तो दे ही देगा। गिरीश देवांगन को शायद इसलिए भी सीएम भूपेश ने चुना होगा कि, बचत स्थानीय दावेदारों के आपसी सर फुटोव्वल से बचा जा सकेगा,और किसी और के मुक़ाबले बेहतर नतीजे आएंगे। लेकिन क्या ऐसा ही होगा, यह तीन तारीख़ को समझ आ जाएगा।

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