संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर में 32 साल से अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हुकमचंद्र मिल के 5895 मजदूर परिवारों को घरों में आखिर दिवाली मनाने की वजह मिल गई है। हाईकोर्ट इंदौर बेंच ने इस पुराने मुआवजा विवाद में आदेश दे दिए हैं कि दो सप्ताह के भीतर मुआवाजा राशि दी जाए और जमीन हस्तांतरण और अन्य काम को पूरा कर लिया जाए। हाईकोर्ट ने साथ ही अपने आदेश में साफ तौर पर लिखा कि इस पूरे मामले के निराकरण के लिए जो भी अधिकारी, अधिवक्ता और अन्य पक्षकार जुड़े हुए थे उन सभी की भूमिका की सराहना करता है। इस पूरी लड़ाई के दौरान आखिर में अधिकारियों की बात करें तो प्रमुख सचिव संजय शुक्ला, प्रमुख सचिव नीरज मंडलोई के साथ आईएएस चंद्रमौली शुक्ला की भूमिका रही वहीं, नगर निगम महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने इसमें आगे बढ़कर कदम उठाए, सीए संतोष मुछाल ने आईटी पार्क के साथ ही हाउसिंग बोर्ड के साथ मिलकर अन्य प्रस्ताव की रूपरेखा खींचने में अहम भूमिका निभाई।
राज्य शासन को बताया गया इससे रोजगार, राजस्व से लेकर कई फायदे
राज्य शासन को मजदूर, बैंक और अन्य राशि के भुगतान के लिए मनाने के लिए वह प्रेजेंटेशन काफी कारगार साबित हुआ जिसमें बताया गया था कि यहां पर आईटी पार्क या अन्य प्रोजेक्ट आता है तो राज्य शासन को हर स्तर पर कितना लाभ है। जमीन की कीमत तो है ही, साथ ही नियमित आय भी होगी। प्रस्ताव में बताया गया कि यहां कोई कमर्शियल प्रोजेक्ट आता है तो जीएसटी के तौर पर ही हर साल 200 करोड़ से ज्यादा की आय होगी। प्रॉपर्टी टैक्स में हर साल 4.33 करोड़ रुपए मिलेगा, स्टाम्प ड्यूटी पर वन टाइम 337 करोड़ रुपए की आय होगी, बिल्डिंग परमीशन पर निगम को कुल 15 करोड़ की आय होगी। इसके साथ ही एक हजार से ज्यादा को रोजगार मिलेगा। इनके मुकाबले भुगतान में दी जा राशि अधिक नहीं है। आखिर में आचार संहिता के पूर्व की अंतिम कैबिनेट में मजदूरों के भुगतान का प्रस्ताव पास हो गया।
इस तरह बाकी है भुगतान अभी
- साल 2002 की स्थिति में कुल 446.11 करोड़ की देयताएं थी, जिसमें से 229 करोड़ मजदूरों का था बाकी राशि बैंक व अन्य देयताओं की थी।
- मजदूरों को अभी तक 55.14 करोड रुपए दिया जा चुका है और बैंकों को भी करीब 16 करोड़ रुपए दिए जा चुके हैं। इस तरह कुल 71.76 करोड़ का भुगतान किया जा चुका है।
- अब शासन को मजदूरों का 173.86 करोड़ रुपए और बैंक व अन्य का भुगतान मिलाकर कुल 374.35 करोड़ रुपए देना है।
- हाउसिंग बोर्ड द्वारा पूरा मामला सैटल करने के लिए कुल राशि 435.89 करोड रुपए दी जा रही है।
इस तरह लंबी चली लड़ाई
मिल 12 दिसंबर 1991 में बंद हो गई। कुल 5895 मजदूर परिवार बेरोजगार हो गए, जिनका वेतन व अन्य राशि रूक गई। साल 2007 में हाईकोर्ट ने मजदूरों को 229 करोड़ के भुगतान के आदेश दिए। बाद में मामला ब्याज नहीं देने पर अटक गया। महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने यहां पर आईटी पार्क बनाने का प्रस्ताव रखा जिसमें निगम और एमपीआईडीसी मिलकर प्रोजेक्ट लाते और राशि से मजदूर व अन्य देयताओं का भुगतान करते। पीएस संजय शुक्ला आगे बढ़े, लेकिन बाद में शासन स्तर पर समस्या आ गई और प्रोजेक्ट फिर नगरीय प्रशासन विभाग के पास गया। पीएस नीरज मंडलोई ने इसे हाथोंहाथ लिया और हाउसिंग बोर्ड के प्रस्ताव को सहमति दी। इसके बाद यहां आयुक्त चंद्रमौली शुक्ला ने दौरा किया और फिर इस प्रस्ताव पर सहमति बन गई। आखिर में ब्याज राशि में थोड़ा मजदूर संघ ने समझौति किया और सरकार भी आगे आई और यह निराकरण स्तर पर पहुंचा।