लोकसभा चुनाव के लिए कितनी तैयार हैं बीजेपी और कांग्रेस ? किसका एजेंडा तय और किसने सामने सवाल ही सवाल

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Harish Divekar
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लोकसभा चुनाव के लिए कितनी तैयार हैं बीजेपी और कांग्रेस ? किसका एजेंडा तय और किसने सामने सवाल ही सवाल

BHOPAL. तीन राज्यों में बंपर जीत की बातें तो बहुत हो चुकी हैं। राजस्थान में जीत तो ठीक है, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की जीत ने बीजेपी को भी हैरान कर दिया, लेकिन कुछ बातें साफ भी कर दी। अब लोकसभा की रणनीति बीजेपी के लिए पानी की तरह साफ है और कांग्रेस के लिए किसी जंगल की तरह उलझी हुई। इन चुनावों में जीत के बाद राहुल गांधी और कांग्रेस ने तमाम पैंतरे आजमाएं, लेकिन हर चाल उल्टी ही साबित हुई। जिसका नतीजा बीजेपी की मध्यप्रदेश की बंपर जीत और बोनस में मिली छत्तीसगढ़ की जीत के रूप में सामने हैं।

माइक्रो लेवल की स्ट्रेटजी का जादू

चुनाव से पहले तक कांग्रेस पूरी तरह आश्वस्त थी की उसकी जीत तय है। जनता में नाराजगी, कार्यकर्ताओं में गुस्सा और गुटबाजी से बीजेपी टूट चुकी है। इन खबरों से राजनीतिक गलियारे भरे पड़े थे, लेकिन नतीजों में ऐसी कोई झलक नजर नहीं आई है। मोदी मैजिक कहकर इसे बीजेपी कैश कर रहा रही है, लेकिन असल जादू उस माइक्रो लेवल की स्ट्रेटजी का है जिसे कांग्रेस भांप भी न सकी और बीजेपी ने कमाल कर दिखाया। जीत के आंकड़े देखकर बीजेपी नेता भी कुछ देर हैरान रहे और कांग्रेस के चेहरे का रंग उड़ गया। ये हर कोई समझना चाहता है कि आखिर कांग्रेस से चूक कहां हुई और बीजेपी कहां बाजी मार गई। हम आपको बहुत आसान भाषा में बताते हैं ये दोनों कारण और ये भी कि अब ये रणनीति कैसे लोकसभा में कारगर होने जा रही है।

बीजेपी के आगे कांग्रेस की समझ बहुत पीछे

तीन राज्यों की जीत ने पूरे देश में ये मैसेज दे ही दिया है कि बीजेपी देश की सबसे मजबूत पार्टी है। देश का हिंदू हो या पिछड़े हों, सब बीजेपी और बीजेपी से ज्यादा मोदी के फेस पर यकीन करते हैं। इस भरोसे के आगे कांग्रेस के वोट पोलराइजेशन की हर तदबीर नाकाम रही। उल्टे बहुत-सी बातें ऐसी रहीं, जिसकी वजह से रिवर्स पोलराइजेशन की नौबत आ गई और बीजेपी के लिए वो फायदेमंद रहीं। इसमें से एक हमास और इजराइल की लड़ाई का मुद्दा था। वैसे तो इस मुद्दे का देश से कोई लेना-देना नहीं था, लेकिन पीएम मोदी के युद्ध पर ट्वीट और उसके बाद कांग्रेस का हमास के प्रति रोना और सरकार का अपना स्टैंड क्लीयर करने जैसी डिमांड करना भारी पड़ गया। बात सिर्फ कांग्रेस के एक स्टैंड की नहीं है। बीजेपी की हर चुनावी रणनीति के आगे कांग्रेस की समझ बहुत पीछे नजर आने लगी है, जिसमें से एक इंडिया गठबंधन भी है। नाम इंडिया जरूर रखा है, लेकिन इंडिया जैसी विविधता में एकता की उम्मीद यहां मुश्किल ही लग रही है। कांग्रेस की करारी हार में छिपा सबक यह भी है कि अगर उसे राष्ट्रीय पार्टी बने रहना है तो उसे क्षेत्रीय दलों के मुद्दों की पिच पर बैटिंग करना छोड़कर खुद को अखिल भारतीय सोच के साथ ही मतदाता के पास जाना होगा।

कांग्रेस ने भी अपनाया था रेवड़ी कल्चर

अपने साथियों की तर्ज पर कांग्रेस ने भी खुलकर रेवड़ी कल्चर को अपनाया। वो इस खेल का हिस्सा बनी और कर्नाटक जीत भी गई, लेकिन ये भूल गई कि अगर बीजेपी इस खेल में उतरी तो कहीं ज्यादा दमदार होगी। यही हुआ भी, बीजेपी ने मोदी की गारंटी के नाम से योजनाओं और सुविधाओं का अंबार लगा दिया। खासतौर से छत्तीसगढ़ में नारी सम्मान, बेरोजगार युवाओं के लिए मदद के नाम पर बीजेपी ने ढेरों फॉर्म भरवाए। पूरी जनता ने उन कागजों पर सिर्फ इसलिए भरोसा भी कर लिया कि नाम जुड़ा था मोदी की गारंटी। मिसाल जुड़ी थी मध्यप्रदेश की जहां महिलाओं को लाड़ली बहना मानकर निश्चित राशि और युवाओं को सीखो कमाओ के नाम पर निश्चित रकम हर महीने मिल भी रही है। ये संदेश काफी थे और छत्तीसगढ़ ने मोदी पर भरोसा कर लिया। जिस स्टेट में कांग्रेस जीत को लेकर कॉन्फिडेंट थी, वहां भी हार का सामना करना पड़ा।

कांग्रेस को जमीनी स्तर पर बनानी होगी रणनीति

बीते कुछ दिनों से कांग्रेस सोशल मीडिया पर तेजी से एक्टिव है। ठीक वही परसेप्शन बनाने की कोशिश में जुटी है जो बीजेपी राहुल गांधी के बारे में बता चुकी है, लेकिन ये कोशिशें भी बैकफायर करती ही नजर आईं। इसके बाद कांग्रेस को ये समझ लेना चाहिए कि बीजेपी से लोकसभा में जीतना है तो सिर्फ सोशल मीडिया और वर्चुअल वर्ल्ड में रहने से काम नहीं चलेगा। जमीनी स्तर पर रणनीतिक तैयारी करनी होगी।

बीजेपी-कांग्रेस की प्लानिंग में बड़ा फर्क

कांग्रेस और बीजेपी की प्लानिंग में बड़ा फर्क दिखा क्षत्रपों को लेकर। कांग्रेस भले ही राहुल गांधी और गांधी परिवार का आलाप लगा रही हो, लेकिन सच्चाई ये है कि चुनाव के समय अपने क्षत्रपों की राजनीति से उभर नहीं पाई और पूरी जिम्मेदारी उन्हीं को सौंप दी। दूसरी तरफ गुटबाजी से जूझ रही बीजेपी ने मोदी के फेस को आगे किया और हर गुट और क्षत्रप को एक बराबर कर दिया। इसका इफेक्ट कार्यकर्ताओं पर जबरदस्त दिखा जो मोदी नाम के चेहरे के पीछे बिना सोचे-समझे चल पड़े। मोदी नाम की लोकप्रियता का इम्तिहान भी डिस्टिंगशन से ज्यादा मार्क्स लेकर पास हुआ जो सत्ता के फाइनल में ज्यादा अंक दिलाने का आधार भी बन चुका है। ये भी स्पष्ट हो चुका है कि इस चेहरे के आगे एंटीइन्कंबेंसी या प्रो इन्कंबेंसी जैसे फेक्टर भी फेल हो रहे हैं। अब ये जांचा-परखा फॉर्मूला लोकसभा में लागू होना तय है।

मोदी भरोसेमंद ब्रांड

मोदी सिर्फ एक चेहरा नहीं बीजेपी के लिए एक ब्रांड और भरोसे का ब्रांड बन चुके हैं, जिसके साथ जनता जिस मजबूती से जुड़ी है उसे तोड़ पाना अगले 5-6 महीने में तो आसान नजर नहीं आता। खासतौर से तब जब कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी इसका कोई तोड़ निकाल पाने में पूरी तरह नाकाम नजर आ रही है। जिन प्रदेशों में जीत तय थी कांग्रेस ने उसे ओवरकॉन्फिडेंस में गंवा दिया। राहुल गांधी की मोहब्बत की दुकान भी सजने से पहले उजड़ी नजर आ रही है, क्योंकि अब मोदी फैक्टर आदिवासियों और पिछड़ों में भी काफी हद तक पसंद किया जा रहा है। ओबीसी के मुद्दे भी इसलिए फेल हो गए। इंडिया गठबंधन से मिले नए साथियों के सुर से सुर मिलाते मिलाते कांग्रेस ये भूल गई कि मध्यप्रदेश में ओबीसी चेहरा ही बीजेपी की पहचान बन चुका है। जातिगत जनगणना और ओबीसी के मुद्दे पर युवा, महिला, किसान और गरीब का मोदी का नया जातिवाद भारी पड़ गया।

छवि बदलने में काफी हद तक कामयाब हुए राहुल गांधी

अपनी यात्राओं के जरिए राहुल गांधी ने अपनी छवि जरूर बदलने की कोशिश की और काफी हद तक कामयाब भी हुए, लेकिन पनौती जैसे सोशल मीडिया ट्रेंड में उलझकर और विदेशों में जाकर मोदी सरकार की बुराई कर अपने ही किए धरे पर पानी भी फेर लिया। कांग्रेस के रणनीतिक धुरंधरों को अब ये समझने की जरूरत है कि चूक कहां हो रही है। मोदी फेस की लोकप्रियता से टकराते रहने से उन्हें अब तक सिर्फ नुकसान ही हुआ है। ये लोकप्रियता यकीनन समझ से परे है और यही वजह भी है कि इससे इतर एक ठोस और बारीक रणनीति पर काम करना कांग्रेस के लिए उतना ही जरूरी है जितना लोकसभा में अपना वजूद बचाए रखना। इन मुद्दों के अलावा कांग्रेस ने लाख कोशिश की कि किसी तरह सनातन को अपना सके, लेकिन खुद को हिंदुवादी साबित करने के चक्कर में वो सिर्फ बीजेपी को फॉलो करती नजर आ रही है। इस चक्कर में उसका दूसरा वोट बैंक भी कमजोर पड़ रहा है।

सही ट्रैक पर बीजेपी, कांग्रेस के लिए रास्ता बंद !

हर 5 साल में लोकसभा से पहले होने वाले 5 राज्यों के विधानसभा को सत्ता का सेमीफाइनल यूं ही नहीं कहते। हिंदी बेल्ट के 3 बड़े राज्यों के नतीजे लोकसभा की तस्वीर भले ही साफ न कर सकें ये जरूर क्लीयर कर देते हैं कि किस पार्टी की कौन-सी रणनीति जनता पर कारगर साबित हो रही है। बीजेपी को ये ठीक से समझ आ चुका है कि उसे किस ट्रैक पर आगे बढ़ना है, लेकिन कांग्रेस के लिए हर रास्ता बंद ही नजर आ रहा है। चाहे राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा हो या खड़गे को पार्टी का अध्यक्ष बनाना हो या रेवड़ी कल्चर की होड़ करना हो। कांग्रेस ने हर मोर्चे पर मात खाई है। अब देश जीतने से पहले जरूरी ये हो गया है कि वो कम से कम उन राज्यों में लोकसभा सीटें बचा लें जहां वो खुद सत्ता में कायम है।









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