GWALIOR. ग्वालियर में फर्जी विकलांग सर्टिफिकेट से शिक्षक बनने का घोटाला सामने आया है। ग्वालियर-चंबल अंचल में 2018 में विकलांग कोटे से शिक्षक बनने हुई परीक्षा में करीब 35 प्रतिशत शिक्षकों के सर्टिफिकेट फर्जी पाए गए। विकलांग कोटे से तीन-चार महीने पहले 84 शिक्षकों को नियुक्ति दी गई। उसके बाद से ही इस भर्ती में घोटाले की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी और जांच में स्वास्थ विभाग ने 184 विकलांग शिक्षकों में से 66 शिक्षकों के सर्टिफिकेट फर्जी पाए गए। अब पुलिस ने इन 66 शिक्षकों के खिलाफ धोखाधड़ी का केस दर्ज कर कार्रवाई शुरू कर दी है।
स्वास्थ विभाग की जांच में खुलासा
कलेक्टर को शिकायत के बाद स्वास्थ विभाग ने सभी 184 विकलांग कोटे से बने शिक्षकों के सर्टिफिकेट्स की जांच की गई। जिसमें प्रमाण पत्रों पर सील और हस्ताक्षर का मिलान किया गया तो वे अलग पाए गए। इस जांच में इस बात का खुलास हुआ कि फर्जी पाए गए विकलांग सर्टिफिकेट्स में आधे से ज्यादा शिक्षकों ने खुद को ज्यादा बहरापन यानी कम सुनाई देने का जिक्र किया। इसके बाद शिक्षा विभाग ने मुरार थाने में शिकायत की। जिस पुलिस ने 66 विकलांग शिक्षकों के खिलाफ धोखाधड़ी का केस दर्ज किया।
इस तरह खुला पूरा मामला
विकलांग कोटे से शिक्षक के लिए 2018 में भर्ती निकाली थी। इसके बाद भर्ती को लेकर विवाद हुआ तो नियुक्ति तत्काल नहीं देकर कुछ लंबी खिंची गई। इन 184 शिक्षकों को तीन से चार महीने पहले नियुक्ति दी गई है। शिक्षक भर्ती परीक्षा में दिव्यांग कोटे का आरक्षण का फायदा उठाकर काफी संख्या में दिव्यांग चयनित हुए थे। इसको लेकर विवाद शुरू हुआ। इसके बाद मुरैना में एक-दो फर्जी दिव्यांगता सर्टिफिकेट्स से शिक्षक बनने के मामले सामने आए थे। इसके बाद लोक शिक्षक संचनालय ने प्रमाण पत्रों की जांच कराने का फैसला लिया था। ग्वालियर-चंबल अंचल के 184 दिव्यांग सर्टिफिकेट्स की जानकारी ग्वालियर भेजी गई थी। जिसमें ग्वालियर के 84 और 99 प्रमाण पत्र ग्वालियर-चंबल अंचल के थे। इसके बाद शिक्षा विभाग ने इन सर्टिफिकेट्स की जांच के लिए ग्वालियर कलेक्टर से मंजूरी लेकर जिला अस्पताल से जांच कराई। जिसमें स्वास्थ विभाग ने रिपोर्ट में बताया कि 66 प्रमाण पत्र का कोई रिकॉर्ड नहीं है। इन पर जो साइन और सील लगे हैं उनका भी मिलान नहीं हो रहा है।
स्वास्थ विभाग की रिपोर्ट के आधार पर शिक्षा विभाग मुरार कार्यालय के कनिष्ठ लेखा परीक्षक प्रदीप वाजपेई ने शिकायत मुरार थाना में अगस्त में की। और सभी 66 शिक्षकों के लिखाफ धोखाधड़ी का केस दर्ज किया गया।
फर्जी सर्टिफिकेट्स में आधे से ज्यादा ने खुद को बताया बेहरा
66 फर्जी सर्टिफिकेट्स में आधे से ज्यादा शिक्षकों ने खुद को कम सुनाई देने की शिकायत बताई है। जानकार बताते हैं कि दिव्यांगता में बहरेपन की जांच आसानी से नहीं लगाई जा सकती, इसलिए शिक्षकों ने फर्जी सर्टिफिकेट में कम सुनाई का जिक्र किया है।
एसपी राजेश सिंह चंदेल ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग से मुरार थाने को सूचना मिली कि 66 लोगों ने फर्जी प्रमाण पत्र लगाकर शिक्षक की नौकरी पाई। जो स्वास्थ्य विभाग से जारी नहीं किए गए, इसलिए ये फर्जी थे। इनके खिलाफ 420 का मामला दर्ज कर आगे की कार्रवाई की जा रही है।
द सूत्र का सवाल- नियुक्ति से पहले इनके सर्टिफिकेट बैरीफाई क्यों नहीं हुए
जब विकलांग कोटे से भर्ती हुए इन शिक्षकों की परीक्षा 2018 में हुई थी तो इन करीब पांच साल में लोक शिक्षण संचालनालय (शिक्षा विभाग) द्वारा इनके सर्टिफिकेट्स की जांच संबंधित विभाग से क्यों नहीं कराई गई? दूसरा जब नियुक्तियां तीन-चार महीने पहले ही दीं गईं हैं, तो आखिर करीब साढ़े साल तक इन नियुक्तियों को क्यों लटकाकर रखा गया? क्या विधानसभा चुनाव से पहले चुनावी हो-हल्ले का फायदा उठाकर इस फर्जीवाड़े को अंजाम देने की योजना थी? इस घोटाले की कड़ियों को जोड़ना बेहद जरूरी है। क्योंकि इतना बड़ा घोटाला बिना किसी बड़े अधिकारी के शामिल हुए बिना संभव नहीं हो सकता। विधानसभा चुनाव से पहले यह घोटाला वर्तमान सरकार की छवि को भी प्रभावित कर सकता है।