JAIPUR/BHOPAL/RAIPUR. बीजेपी हो या फिर कांग्रेस दोनों ही राजनैतिक दलों ने चुनाव से पहले जो वादे किए थे कि इस मर्तबा युवाओं को मौका दिया जाएगा, दागी छवि वाले नेताओं का टिकट कटेगा, वंशवाद को दरकिनार कर टिकट दिए जाएंगे वगैरह-वगैरह लेकिन टिकटों के ऐलान के साथ ही ये सारे के सारे दावे खोखले साबित हुए हैं। मध्यप्रदेश की बात करें या छत्तीसगढ़ की या फिर राजस्थान की बात की जाए, हर राज्य में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने ही केवल और केवल जिताऊ उम्मीदवार को तरजीह दी है। उधर आम जनता में शामिल ऐसे आशावादी लोग जो सोचते थे कि राजनीति बेहतर बनाई जाएगी वे सभी के सभी चुनाव से पहले ही हार चुके हैं।
राजस्थानः- बीजेपी की दावे सफेद हाथी साबित हुए
राजस्थान में बीजेपी वंशवाद को बढ़ावा न देने, संगठन के पदाधिकारियों को चुनाव नहीं लड़ाने और राजनीति के अपराधीकरण पर लगाम लगाने जैसे दावे करती थी। 124 प्रत्याशियों की लिस्ट में 15 फीसदी आपराधिक रिकॉर्ड वाले लोगों को टिकट दिया गया। 8 प्रत्याशी ऐसे हैं जिन्हें टिकट विरासत में मिल गया। बीते चुनाव में जो जयचंद का रोल निभा रहे थे ऐसे 5 नेताओं को भी उम्मीदवार घोषित किया गया है। जबकि दो उम्मीदवार ऐसे हैं जिन्हें पार्टी की सदस्यता लेते ही टिकट थमा दिया गया। नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ जहां सीट बदलने में कामयाब रहे तो भैरोंसिंह शेखावत के दामाद को भी चित्तौड़गढ़ से उम्मीदवार बना दिया गया है।
कांग्रेस भी नहीं रह पाई वंशवाद से दूर
कांग्रेस ने रामगढ़ में मौजूदा विधायक के पति जुबेर खान को टिकट थमा दिया, रामेश्वर डूडी की पत्नी को भी उम्मीदवार बनाया। पिछले चुनाव के जयचंदों को कांग्रेस ने भी पोषित करने में कसर नहीं छोड़ी, कई निर्दलीय विधायकों को प्रत्याशी बनाया है। दो चुनाव हारे और 70 बसंत देख चुके बुजुर्गों पर भी दांव खेला गया है, उनके लिए सारे मापदंड औचित्यहीन रह गए। अभी तक बांटी गई टिकटों पर पार्टी सर्वे गौण दिखाई दिया है।
मध्यप्रदेशः- बीजेपी को खराब छवि पर भी भरोसा
मध्यप्रदेश में भी बीजेपी ने विवादित छवि वाले नेताओं को तरजीह दे दी। कैलाश विजयवर्गीय हों या फिर शेहला मसूद हत्याकांड में घिर चुके ध्रुवनारायण सिंह, विवादों में रहे महेंद्र सिंह को भी टिकट दिया गया। आकाश विजयवर्गीय का टिकट काटकर पिता कैलाश विजयवर्गीय को उतारा गया, मंत्री विजय शाह के साथ-साथ उनके भाई संजय शाह को भी उम्मीदवार बनाया। मंत्री गौरीशंकर बिसेन की जगह उनकी बेटी को टिकट दिया गया तो जबलपुर की बरगी में प्रतिभा सिंह की जगह उनके बेटे नीरज को उम्मीदवार बनाया गया है। मध्यप्रदेश में बीजेपी ने गुजरात फॉर्मूले को पूरी तरह दरकिनार किया है। जिसके तहत बड़ी तादाद में टिकट काटकर नए चेहरों को लाया जाना था। बीजेपी ने यहां सर्वे को खारिज किया और जिताऊ उम्मीदवारों पर दांव लगाया है।
कांग्रेस ने पैनल को दरकिनार किया
मप्र में कांग्रेस भी अपने ही बनाए नियमों का पालन नहीं कर पाई। तय हुआ था कि जिसका नाम पैनल में होगा, उसे ही टिकट मिलेगा। लेकिन कई सीटों पर ऐसा न हो सका। 20 हजार से ज्यादा वोट से हारने वालों का पत्ता कट होने की बात कही गई लेकिन यह भी मुमकिन नहीं हो पाया। दलबदलुओं को पार्टी के खांटी कार्यकर्ताओं के मत्थे मढ़ दिया गया। जिनमें दीपक जोशी, भंवर सिंह शेखावत, अमित राय और समंदर पटेल शामिल हैं।
छत्तीसगढ़ः- कोई दल कसौटी पर नहीं उतरा खरा
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने तय किया था कि पिछला चुनाव हारे प्रत्याशियों के टिकट रिपीट नहीं किए जाएंगे लेकिन मस्तुरी में दिलीप लहरिया के अलावा पार्टी को कोई ठोस दावेदार नहीं मिला। बीजेपी का भी हाल ऐसा ही रहा, कई हारे हुए दिग्गजों को पुनः मौका देना पड़ गया। युवाओं को मौका देने के मामले में बीजेपी और कांग्रेस दोनों युवा नेताओं को निराश कर बैठीं, जबकि 70 पार के नेताओं को मौके दिए गए। दागी उम्मीदवार की बात करें या फिर वंशवाद की इस मामले में भी बीजेपी और कांग्रेस खरी नहीं उतर पाई हैं।