मनीष गोधा, JAIPUR. राजस्थान में इस बार दल बदल का खेल जमकर चला। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों ने ही एक दूसरे के नेताओं को अपने यहां बुलाया और टिकट भी दिए लेकिन कुछ नेता ऐसे भी रह गए जिन्हें पार्टियों ने अपने साथ शामिल तो कर लिया लेकिन उनकी टिकट की आस पूरी नहीं की। यह नेता जी जिस उम्मीद से आए थे वह पूरी नहीं हुई और अब उनकी स्थिति माया मिली ना राम जैसी हो गई है। अब ये ना कुछ कह पा रहे और ना ही कर पा रहे हैं।
हमसे का भूल हुई....
राजस्थान के विधानसभा चुनाव में निर्दलीयों और बसपा से आए विधायकों को कांग्रेस ने टिकिट दिए। ऐसे कुल 19 विधायक थे। इनमें से बसपा के 6 में से 4 को टिकिट दे दिया वहीं 13 निर्दलीयों में से 9 को कांग्रेस के टिकिट मिल गए और चार बलजीत यादव, आलोक बेनीवाल, सुरेश टांक और राजकुमार गौड़ को छोड़ दिया गया, जबकि ये सभी सरकार के हर संकट में सरकार के साथ मजबूती से खड़े हुए थे। इनमें से आलोक बेनीवाल और राजकुमार गौड़ तो पूर्व कांग्रेसी भी रह चुके हैं। वहीं बसपा से आए विधायकों में राजकुमार गुढ़ा तो हालांकि पहले ही अलग हो गए थे लेकिन संदीप यादव को टिकिट नहीं मिल पाया।
इनके अलावा दो बड़े चेहरे चुनाव के समय ही कांग्रेस में आए थे लेकिन इन्हें टिकिट नहीं मिला। इनमें एक साध्वी थी अनादि सरस्वती जिन्हें खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पार्टी में शामिल किया था और उम्मीद की जा रही थी कि वह अजमेर उत्तर विधानसभा सीट से पार्टी के प्रत्याशी हो सकती हैं, लेकिन उन्हें टिकिट नहीं दिया गया। वहीं ममता शर्मा ने प्रियंका गांधी के सामने उनकी सभा में बीजेपी छोड़ कर कांग्रेस का दामन पकड़ा था और वह अपने बेटे के लिए टिकट चाह रही थीं लेकिन ना उन्हें टिकट दिया गया ना उनके बेटे को। ममता शर्मा पहले कांग्रेस में ही थी कांग्रेस के विधायक रह चुकी हैं और केंद्र में यूपीए की सरकार के समय महिला आयोग की राष्ट्रीय अध्यक्ष तक रह चुकी हैं। जो पिछले चुनाव में भाजपा में शामिल हुई थींऔर चुनाव भी लड़ा था लेकिन हार गई थीं। इस बार फिर कांग्रेस में आई लेकिन टिकट की चाह पूरी नहीं हुई।
बीजेपी ने कई बड़े चेहरों के साथ की चोट
राजस्थान में बीजेपी में इस बार दल बदल कर आने वाले लोगों को सदस्यता देने का मामला पिछले वर्षों के मुकाबले सबसे ज्यादा रहा। इनमें से कुछ को हाथों-हाथ टिकट भी दिए गए लेकिन पार्टी ने कई बड़े शहरों के साथ चोट भी कर दी। मसलन जयपुर की पूर्व महापौर ज्योति खंडेलवाल को बड़े जोर शोर के साथ पार्टी में शामिल किया गया था। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह और नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ स्वयं ज्योति खंडेलवाल के पार्टी में शामिल होते समय मौजूद थे और यह माना जा रहा था कि किशनपोल विधानसभा सीट से पार्टी उन्हें टिकट देगी। बताया जा रहा है कि भाजपा के बड़े नेता के आश्वासन पर ही उन्होंने भाजपा का दामन थामा था लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला। इस मसले पर उन्होंने अब चुप्पी साध ली है। टिकट नहीं मिलने पर मीडिया ने जब उनसे प्रतिक्रिया मांगी थी तो उन्होंने बात करने के बजाय अपनी फोटो के नीचे निशब्द लिखकर रिप्लाई किया था।
इनके अलावा एक बड़ा नाम रविंद्र सिंह भाटी का भी है जो हालांकि किसी दल में नहीं थे लेकिन भाजपा में उनका शामिल होना महत्वपूर्ण माना जा रहा था क्योंकि वह जोधपुर विश्वविद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष रहे हैं और बाड़मेर की शिव विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की लंबे समय से तैयारी कर रहे थे। जोधपुर जैसलमेर बाड़मेर क्षेत्र में युवाओं के बीच भाटी एक बड़ा नाम है। ज्योति खंडेलवाल के साथ ही वे भी पार्टी में आए थे लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया और अब उन्होंने बगावत करते हुए निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन दाखिल कर दिया है।
इनके अलावा सुरेश मिश्रा और चंद्रशेखर बैद भी दो ऐसे नाम है जो कांग्रेस से भाजपा में आए लेकिन टिकट से वंचित कर दिए गए। सुरेश मिश्रा कांग्रेस पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं और सर्व ब्राह्मण महासभा के प्रदेश अध्यक्ष हैं। वही चंद्रशेखर बैद कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे चंदनमल बैद के पुत्र हैं और यह भी कांग्रेस के विधायक और पार्टी के प्रवक्ता रह चुके हैं। सुरेश मिश्रा सांगानेर से और चंद्रशेखर वैद्य चूरू की किसी विधानसभा सीट से टिकट की उम्मीद लगाए हुए थे जो पूरी नहीं हुई।