New Delhi. सरकारें और राजनीतिक दल भले ही महिलाओं को आगे लाने को लेकर भले ही बड़े-बड़े वादे और दावे करे, लेकिन हकीकत तो यह है कि सियासत के मैदान में ही महिलाओं को तवज्जो नहीं दी जा रही है। यह जानकारी वर्ल्ड बैंक, राइस यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर की जॉइंट स्टडी में सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार, देश के चार चुनावी राज्यों (मप्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिजोरम) में कुल 560 सीटों के लिए 5,764 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिनमें सिर्फ 609 (11%) महिलाएं हैं। तेलंगाना की 119 सीटों के पूरे आंकड़े उपलब्ध नहीं होने से महिलाओं की जानकारी नहीं मिल सकी है, लेकिन यहां भी भाजपा ने 14 व कांग्रेस ने 11 महिला उम्मीदवार ही उतारी हैं। सियासती भेदभाव से साफ नजर आ रहा है कि देश की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी अब भी कितनी कम है। यह स्थिति तब है, जब 20 साल में चुनाव लड़ने वालीं महिलाएं 152% बढ़ गई हैं, वहीं इनका सक्सेस रेट पुरुषों से 4% तक ज्यादा रहा है। जहां महिलाएं विधायक रहीं उन इलाकों में विकास की रफ्तार पुरुष विधायकों के मुकाबले 15% तक ज्यादा रही।
16 राज्यों की 3,473 विधानसभाओं का डेटा खंगाला गया
वर्ल्ड बैंक, राइस यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर की जॉइंट स्टडी के मुताबिक, जहां महिलाओं की शिक्षा का स्तर बेहतर हुआ है, वहां 10% ज्यादा महिलाओं के चुनाव लड़ने और उनके जीतने की संभावना 4 गुना तक बढ़ जाती है। 1993 से 2004 के बीच चले डिस्ट्रिक्ट प्राइमरी एजुकेशन प्रोग्राम (डीपीईपी) का विश्लेषण करने पर ये नतीजे सामने आए है। प्रोग्राम देश के कुल 593 में से 219 जिलों में चला था, क्योंकि वहां महिला की साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत 40% से भी कम थी। इस स्टडी के लिए 1980 से 2007 के बीच 16 राज्यों की 3,473 विधानसभाओं का डेटा खंगाला गया। देश की करीब 95% आबादी इन्हीं विधानसभाओं में रहती है।
38% ने माना- जिम्मेदार पदों पर महिलाएं होने से रिश्वतखोरी कम
यूएन यूनिवर्सिटी वर्ल्ड इंस्टीट्यूट फॉर डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स रिसर्च के मुताबिक, 1992 से 2012 के बीच 4 चुनावों के दौरान 4,265 विधानसभाओं का डेटा कहता है कि महिला विधायकों के मुकाबले पुरुषों पर पेंडिंग आपराधिक मामले करीब तीन गुना हैं। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, 37% लोग मानते हैं कि पुरुष ज्यादा भ्रष्टाचार करते हैं। 38% लोग कहते हैं, जिम्मेदार पदों पर महिलाएं हों तो घूसखोरी घटेगी।
उम्मीदवारी में पीछे, हिस्सेदारी भी कम
2000 से 2007 के बीच 40 मुख्य पार्टियों (जिन्होंने कभी भी राज्य में 5% से ज्यादा सीटें जीती हों) में से सिर्फ 4 की प्रमुख महिला थी। 1980 से 2007 के बीच 3,473 विधानसभाओं में हुए 6 चुनावों का विश्लेषण कहता है कि 70% विधानसभाओं में एक भी महिला उम्मीदवार नहीं थी। सिर्फ 7% सीटें थीं, जिनमें एक से ज्यादा महिला उम्मीदवार मैदान में थी। वर्ल्ड बैंक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में महिलाओं की साक्षरता दर 77% और पुरुषों की 85% है। जिन राज्यों में महिलाओं की साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से कम है, वहां उनके जीतने की संभावना भी कम।