BHOPAL. मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव का प्रचार आखिरी दौर में है। इस बीच पीएम नरेंद्र मोदी मंगलवार 14 नवंबर को झाबुआ के चुनावी दौरे पर पहुंचे। झाबुआ की सभा में पीएम ने कड़कनाथ मुर्गे के जरिये कांग्रेस पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि जब कांग्रेस की सरकार थी तब कड़कनाथ मुर्गे-मर्गी के पालन के लिए कर्ज दे ने की योजना बनाई गई। जब गरीब आदिवासी को लोन मिलता था तब वह सोचता था कि बड़ी संख्या में अंडे और मुर्गे बेचेगा, लेकिन लाल बत्ती वाली गाड़ी आ जाती थी और मुर्गे-मुर्गी साफ हो जाती थी। आदिवासी कर्जदार बनकर रह जाता था। पीएम ने जिस कड़कनाथ की बात की है, वह इस चुनावी दौर में काफी महंगा हो गया है। यहां हम बताएंगे कड़कनाथ के बारे में सबकुछ।
क्यों बढ़ी कड़कनाथ मुर्गे की मांग
मप्र विधानसभा चुनाव के लिए 17 नवंबर को वोटिंग होगी। इस बीच झाबुआ के प्रसिद्ध कड़कनाथ मुर्गे की मांग काफी बढ़ गई है। यही वजह है कि इसके दाम काफी बढ़ गए हैं। बताया जा रहा है कि चुनाव के दौरान कई बड़े नेता-कार्यकर्ता झाबुआ पहुंच रहे हैं। वे अपने भोजन में कड़कनाथ मुर्गा पसंद कर रहे हैं। वहीं धीरे-धीरे ठंड भी बढ़ रही है। यही वजह है कि कड़कनाथ की मांग सामान्य दिनों की तुलना में काफी बढ़ गई है। झाबुआ केवीके यानी कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ.चंदन कुमार के मुताबिक ठंड के मौसम और चुनाव की वजह से कड़कनाथ की मांग 30 से 40 फीसदी बढ़ गई है।
कितना महंगा हुआ कड़कनाथ
सारा सेवा संस्थान समिति के सीईओ सुधांशु शेखर के मुताबिक उनकी संस्था द्वारा संचालित पोल्ट्री फार्म में कारोबार बढ़ा है। पहले जो कड़कनात मुर्गा 800 से 1,200 रुपए में बेचा जाता था, वह अब 1,200 से 1,500 रुपए में बेचा जा रहा है। इसकी वजह यह है कि मांग बढ़ गई है और मांग के हिसाब से आपूर्ति करने की चुनौती है।
आदिवासियों के लिए कड़कनाथ कितना खास
झाबुआ इलाके में बड़ी संख्या में भील आदिवासी रहते हैं। कड़कनाथ उनकी अर्थव्यवस्था के साथ ही परंपरा का हिस्सा भी है। आदिवासियों के देवी-देवताओं को मुर्गे की बली देने की परंपरा है। साथ ही ये आदिवासी कड़कनाथ पालकर अपनी रोजी भी चलाते हैं। कड़कनाथ की चमड़ी, पंख और मांस भी काला होता है। काले रंग के मांस में चर्बी और कोलेस्ट्रॉल कम होने के साथ प्रोटीन कहीं ज्यादा होता है। यह आदिवासियों का प्रमुख भोजन भी है। कड़कनाथ की खासियत की वजह से यह दुनियाभर में पसंद किया जाता है। पहले जब पोल्ट्री फार्म नहीं थे तब इसकी नस्ल बचाने की चुनौती थी। तब इसके व्यापार पर पाबंदी भी लगानी पड़ती थी, लेकिन अब पोल्ट्री फार्म में इनका उत्पादन काफी बढ़ गया है।