इंदौर के रमेश मेंदोला की जीत, मप्र नहीं तीनों राज्यों में सबसे ज्यादा वोट वाली जीत, इसके बाद मंत्री पद के स्वाभाविक दावेदार

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Pratibha Rana
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इंदौर के रमेश मेंदोला की जीत, मप्र नहीं तीनों राज्यों में सबसे ज्यादा वोट वाली जीत, इसके बाद मंत्री पद के स्वाभाविक दावेदार

संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर विधानसभा दो से जीतने वाले बीजेपी उम्मीदवार रमेश मेंदोला की 1,07,047 वोट की जीत केवल मप्र नहीं बल्कि राजस्थान, छत्तीसगढ़ में भी वोटों के लिहाज से सबसे बड़ी जीत है। इस सर्वाधिक वोट के जीत के रिकार्ड के बाद अब वह स्वाभाविक तौर पर मंत्री पद के दावेदार हो गए हैं। मेंदोला की जीत के रिकार्ड ही अपने आप में चौंकाने वाले हैं।

तीनों राज्यों में सबसे ज्यादा वोट वाली जीत

मप्र में-

रमेश मेंदोला-1,07,047 वोट से जीत

कृष्णा गौर- 1,06,668 वोट से जीत

शिवराज सिंह चौहान-1,04,974 वोट से जीत

राजस्थान में-

दिया कुमारी- 71,368 वोट से जीत

राजकुमार रोत- 69,166 वोट से जीत

मनीष यादव- 64,908 वोट से जीत

छत्तीसगढ़ में-

बृजमोहन अग्रवाल-67,719 वोट से जीत

ओमप्रकाश चौधरी -64,443 वोट से जीत

अरुण साव- 45,891 वोट से जीत

हर दस में से सात वोट मेंदोला के खाते में गए-

मेंदोला को कुल डले वोट में से 72 फीसदी वोट मिले हैं। इंदौर विधानसभा दो में कुल 3.47 लाख मतदाता है, जिसमें से 2.34 लाख ने वोट डाले थे। डाले गए वोट में मेंदोला के पास 1.69 लाख वोट गए, जो 72 फीसदी है। वहीं कांग्रेस के चिंटू चौकसे को मात्र 62 हजार वोट मिले जो कुल डले वोट का 26.50 फीसदी मात्र है। यानि हर दस मतदाताओं में से सात ने मेंदोला को ही चुना।

इसके पहले की जीत भी रिकार्ड तोड़ रही

मेंदोला ने ही इंदौर में सर्वाधिक वोटों के जीत के रिकार्ड बनाने शुरू किए। साल 2008 में वह पहली बार चुनाव मैदान में उतरे और तब कांग्रेस के सुरेश सेठ को 39,937 वोट से हराया था। इसके बाद 2013 में कांग्रेस के छोटू शुक्ला को 91,017 वोट से हराया जो उस समय प्रदेश में सर्वाधिक वोट वाली जीत थी। इसके बाद साल 2018 में उन्होंने मोहन सेंगर को 71,011 वोट से हराया, यह जीत भी प्रदेश में सर्वाधिक वोट वाली जीतों में से एक थी। इस बार उन्होंने अपने ही सभी रिकार्ड को तोड़ते हुए एक लाख से ज्यादा जीत का रिकार्ड बनाया है।

लगातार सर्वाधित वोट से जीत लेकिन मंत्री पद दूर

मेंदोला लगातार मंत्री पद के दावेदार रहे हैं, लेकिन हर बार क्षेत्रीय गणित और गुटीय राजनीति के चलते उनका हक दरकिनार कर दिया गया। महापौर पद के लिए नाम चला लेकिन किसी विधायक को टिकट नहीं देने के पार्टी फैसले के बाद वह रेस से बाहर हो गए। मंत्री पद के लिए साल 2013 में नाम चला लेकिन नहीं हो पाया, फिर 2020 में भी वह रेस से बाहर रहे और तुलसी सिलावट के साथ ऊषा ठाकुर को मौका दिया गया। इस बार भी मंत्रीमंडल में तुलसी सिलावट तय है लेकिन दूसरा नाम क्या होगा? इसके लिए फिर महेंद्र हार्डिया, मालिनी गौड़, उषा ठाकुर के साथ कश्मकश रहेगी।

पार्षद से सफर शुरू किया, नगराध्यक्ष भी रहे

मेंदोला बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के परम मित्र है और विजयवर्गीय भी उन्हें छोटे भाई जैसा मानते हैं। मेंदोला बीजेपी के टिकट पर नगर निगम में पार्षद रहे हैं और वह बीजेपी के नगराध्यक्ष भी रहे हैं। बाद में विजयवर्गीय द्वारा उनके लिए साल 2008 चुनाव में इंदौर विधानसभा दो खाली कर महू गए और वहां से चुनाव लड़ा और इधर मेंदोला ने विजयवर्गीय के बनाए गढ़ को और मजबूत करते हुए रिकार्ड तोड जीत हासिल की। इसके बाद से ही वह लगातार जीत का रिकार्ड बनाकर पार्टी के आलाकमान का ध्यान अपनी ओर खींच रहे हैं। इस बार भारी रिकार्ड जीत ने फिर पार्टी को मजबूर कर रहे हैं कि अब मंत्री पद दिया जाए।


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