हरियाणा के सीएम खट्‌टर के आब्जर्वर बनते ही कैलाश विजयवर्गीय फिर आए नजरों में, वही थे हरियाणा में पहली जीत में पार्टी प्रभारी

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Pooja Kumari
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हरियाणा के सीएम खट्‌टर के आब्जर्वर बनते ही कैलाश विजयवर्गीय फिर आए नजरों में, वही थे हरियाणा में पहली जीत में पार्टी प्रभारी

संजय गुप्ता, INDORE. मप्र में सीएम की रेस में एक कदम और आगे बढ़ती हुई बीजेपी ने आब्जर्वर नियुक्त कर दिए हैं। मप्र में हरियाण के सीएम मनोहर खट्‌टर के साथ ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉक्टर के लक्ष्मण और राष्ट्रीय सचिव आशा लाकड़ा को नियुक्त किया गया है। इसमें सबसे ज्यादा ध्यान खट्‌टर ने खींचा है और इनके नियुक्त होते ही एक बार फिर ध्यान सीएम रेस में शामिल बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय की ओर चला गया है।

खट्‌टर के सीएम बनने में रही थी विजयवर्गीय की भूमिका

विजयवर्गीय साल 2014 में हरियाणा में हुए चुनाव के लिए बीजेपी की ओर से पार्टी प्रभारी थे। इस चुनाव में बीजेपी पहली बार हरियाणा में बहुमत में आई थी और उसने 90 सीट में से 47 सीट जीती थी। इसके पहले बीजेपी 2009 के चुनाव में महज 4 सीट जीत पाई थी। इस ऐतिहासिक जीत का श्रेय काफी हद तक विजयवर्गीय के खाते में भी गया, जिसके बाद पार्टी ने उन्हें सबसे कठिन किले पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी थी। इस जीत के बाद ही खट्‌टर को सीएम बनने का मौका मिला था, तभी से वह हरियाणा के सीएम है।

अब क्या खट्‌टर बनवा सकेंगे विजयवर्गीय को सीएम

अब बात विजयवर्गीय के सीएम बनने की है, तो सवाल उठ रहा है कि क्या अब खट्‌टर उन्हें सीएम बनवा सकेंगे? उनके आब्जर्वर बनते ही कम से कम विजयवर्गीय को सीएम पद पर देखने वालों की उम्मीदें और बढ़ गई है और वह इसे उनके लिए बड़े पॉजीटिव कदम के रूप में देख रहे हैं। हालांकि यह भी सही है कि आब्जर्वर की भूमिका केवल विधायकों से राय लेने की होती है, कहने को भले ही कहा जाए कि विधायकों की राय के आधार पर सीएम नियुक्त होता है, लेकिन मोटे तौर पर तो हाईकमान की मर्जी पर ही लोकतांत्रिक तरीके से मुहर लग जाती है। विजयवर्गीय कह चुके हैं कि रविवार तक सीएम का सस्पेंस खत्म हो जाएगा।

लंबे समय से पॉवर से दूर हैं विजयवर्गीय

विजयवर्गीय मप्र के मंत्रीमंडल में साल 2003 से जुलाई 2015 तक रहे। इसी बीच बीजेपी ने उन्हें केंद्रीय स्तर पर जिम्मेदारी देना शुरू किया, हरियाणा चुनाव का प्रभारी बनाया, इस जीत के बाद उन्होंने मप्र के मंत्रीमंडल से इस्तीफा दे दिया। बाद में पश्चिम बंगाल के चुनाव में प्रभारी बने, लोकसभा में तो भारी जीत हासिल की और इसके बाद दबदबा बन गया लेकिन विधानसभा चुनाव में हार के बाद वह पॉवर से दूर हो गए। अब पार्टी ने उन्हें विधानसभा एक इंदौर से मैदान में उतारा, जिसमें जीत के साथ ही इंदौर की सभी नौ सीट जीत और मालवा-निमाड़ की 66 में 48 सीट पर भारी जीत के साथ उनका रूतबा एक बार फिर बड़ा है और वह सीएम रेस में प्रबल दावेदार बनकर उभरे हैं।

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