मध्यप्रदेश में पहली बार जान बचाने के लिए बना सबसे लंबा ग्रीन कॉरिडोर, जबलपुर से भोपाल लाया गया लिवर, 350 किमी दूरी 4 घंटे में तय

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BP Shrivastava
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मध्यप्रदेश में पहली बार जान बचाने के लिए बना सबसे लंबा ग्रीन कॉरिडोर, जबलपुर से भोपाल लाया गया लिवर, 350 किमी दूरी 4 घंटे में तय

BHOPAL. मध्यप्रदेश के इतिहास में पहली बार जान बचाने के लिए सबसे लंबा करीब 350 किलोमीटर का ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया है। जबलपुर से सड़क मार्ग के जरिए एक ब्रेनडेड मरीज का लिवर गुरुवार-शुक्रवार (21 सितंबर) की रात 2.20 बजे भोपाल लाया गया। डॉक्टरों की टीम गुरुवार रात करीब 10.31 बजे लिवर लेकर भोपाल के लिए निकली थी। यानी जबलपुर से भोपाल तक का सफर करीब चार घंटे में पूरा कर लिया। इसके बाद डॉक्टरों ने बंसल हॉस्पिटल में भर्ती मरीज की सुबह करीब साढ़े तीन बजे लिवर ट्रांसप्लांट सर्जरी शुरू की।

शुरुआत में पहले हेलिकॉप्टर के जरिए लिवर लाने का प्लान था। डॉक्टरों की टीम ने सीएम शिवराज सिंह चौहान के हेलिकॉप्टर से भोपाल से जबलपुर के लिए उड़ान भरी, लेकिन रात होने की वजह से हेलिकॉप्टर वापसी की उड़ान नहीं भर सका। जिसके बाद सड़क मार्ग से लिवर जबलपुर के मेट्रो हॉस्पिटल से भोपाल के बंसल हॉस्पिटल लाया गया है।

पहली बार सबसे बड़ा 350 किलोमीटर का ग्रीन कॉरिडोर

ऑर्गन डोनेशन के लिए काम करने वाली किरण फाउंडेशन के सचिव डॉ. राकेश भार्गव ने बताया कि गुरुवार-शुक्रवार की दरमियान रात प्रदेश में पहली बार सबसे लंबा 350 किलोमीटर लंबा ग्रीन कॉरिडोर जबलपुर से भोपाल के बीच बनाया गया। जो जबलपुर, नरसिंहपुर, रायसेन और भोपाल के बीच बना।

पहले भोपाल-इंदौर के बीच बन चुका 205 किमी का ग्रीन कॉरिडोर

इससे पहले इसी साल 10 मई को भोपाल से इंदौर के बीच 205 किलोमीटर लंबा ग्रीन कॉरिडोर बना था। तब भोपाल के बंसल हॉस्पिटल में ब्रेन हेमरेज के बाद भर्ती हुई पुष्पलता जैन की एक किडनी इंदौर के निजी अस्पताल में भर्ती मरीज को ट्रांसप्लांट करने भेजी गई थी। हालांकि, 24 जुलाई 2017 को भी जबलपुर से एक ब्रेन डेड मरीज का ऑर्गन फ्लाइट से भोपाल लगाया गया था। सड़क मार्ग से पहली बार जबलपुर से कोई आर्गन गुरुवार- शुक्रवार की देर रात भोपाल लाया गया।

जबलपुर में 64 साल के मरीज को किया था ब्रेनडेड घोषित

बंसल हॉस्पिटल के मैनेजर लोकेश झा ने बताया कि जबलपुर के मेट्रो हॉस्पिटल में 64 वर्षीय मरीज को 20 सितंबर को ब्रेनडेड घोषित किया गया था। उनके परिजन ने ऑर्गन डोनेट करने की इच्छा जताई थी। जिसके बाद एक से डेढ़ घंटे में सर्जरी कर लिवर निकाला गया। जो भोपाल के बंसल हॉस्पिटल में भर्ती एक मरीज को ट्रांसप्लांट किया गया। यह सर्जरी 5 से 10 घंटे तक चलती है। बंसल हॉस्पिटल के डॉ. गुरुसागर सिंह सहोटा ( लिवर ट्रांसप्लांट सर्जन) पूरे ऑपरेशन को लीड किया।

परिजन की इच्छा पर हुआ ऑर्गन डोनेट

जबलपुर मेट्रो हॉस्पिटल के डॉ. सौरभ बड़ेरिया ने बताया कि 19 सितंबर को एक 64 वर्षीय मरीज भर्ती हुआ था। उसे ब्रेन ट्यूमर था। अस्पताल में दिए गए इलाज के बाद भी उसकी सेहत में सुधार नहीं हुआ। 20 सितंबर की सुबह मरीज ब्रेन डेड हो गया था। उसके परिजनों ने आर्गन डोनेट करने की इच्छा जताई थी। इस पर डॉक्टर्स की टीम ने तय प्रोटोकॉल के तहत नेशनल आर्गन एंड टिशु ट्रांसप्लांट आर्गेनाइजेशन (NOTTO) को आर्गन डोनेशन की सूचना दी थी। अप्रूवल मिलने के बाद लिवर को भोपाल भेजा गया।

मार्च में ब्रेन ट्यूमर डिटेक्ट, 19 सितंबर को ब्रेन स्ट्रोक

पीयूष सराफ ने बताया कि उनके मामा राजीव सराफ को इसी साल 27 मार्च में ब्रेन ट्यूमर डिटेक्ट हुआ था। नागपुर के हॉस्पिटल में 29 मार्च 2023 को सर्जरी हुई थी। बाद वे रिकवर हो गए, लेकिन 19 सितंबर को उन्हें ब्रेन स्ट्रोक हुआ। इसके बाद इलाज के लिए मेट्रो हॉस्पिटल में भर्ती कराया था। लेकिन, वह रिकवर नहीं हुए। बल्कि ब्रेन डेड हो गए। इसके चलते परिजनों ने मामाजी के आर्गन डोनेट करने का फैसला किया। ताकि उनके आर्गन से दूसरे व्यक्ति को जिंदगी मिल सके। राजीव सराफ मूल रूप से बैतूल के रहने वाले थे।


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