वसुंधरा खेमे के नेताओं को टिकट सूची का इंतजार, नाम नहीं दिखा तो जो पिछली बार कांग्रेस में हुआ, वह इस बार बीजेपी में होने के आसार

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वसुंधरा खेमे के नेताओं को टिकट सूची का इंतजार, नाम नहीं दिखा तो जो पिछली बार कांग्रेस में हुआ, वह इस बार बीजेपी में होने के आसार

मनीष गोधा, JAIPUR. राजस्थान में बीजेपी में पिछले साढ़े चार साल के दौरान रही गुटबाजी और पार्टी में हुए सत्ता हस्तांतरण ने इस बार कुछ वैसे ही हालात पैदा कर दिए हैं जैसे 2018 के चुनाव में कांग्रेस में थे। कांग्रेस में पिछली बार सत्ता समीकरण अलग थे और इसके चलते अशोक गहलोत के कई समर्थकों के टिकट कट गए थे। बाद में इनमें से कुछ निर्दलीय के रूप में चुनाव में उतरे और पार्टी प्रत्याशी के लिए ही मुसीबत बन गए। कुछ ऐसी ही स्थिति इस बार बीजेपी में बनती दिख रही है। इस बार बीजेपी में सत्ता समीकरण बदला हुआ है और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के कई समर्थक नेताओं को इस बार टिकट कटने का डर सता रहा है और ऐसा हुआ तो बताया जा रहा है कि ये नेता निर्दलीय या दूसरे दलों से चुनाव मैदान में उतर सकते हैं।

पिछली बार कांग्रेस में क्या हुआ था

अशोक गहलोत राजस्थान में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता हैं, लेकिन 2013 में चुनाव में मिली करारी हार के बाद वे हाशिए पर डाल दिए गए थे। वर्ष 2018 के चुनाव में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट थे और पार्टी का सत्ता समीकरण काफी हद तक बदला हुआ था। पार्टी ने सत्ता में लौटने के लिए 200 में से 115 टिकट बदल दिए थे और जो चपेट में उनमें कई अशोक गहलोत के समर्थक भी थे, जैसे सिरोही से संयम लोढ़ा, गंगापुरसिटी से रामकेश मीणा, शाहपुरा से आलोक बेनीवाल, मारवाड़ जंक्शन से खुशबीर सिंह आदि। इनके अलावा कुछ ऐसे भी थे जो गहलोत के कट्टर समर्थक रह चुके थे और पार्टी से टिकट मांग रहे थे, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला जैसे दूदू से बाबूलाल नागर, खण्डेला से महादेव सिंह, गंगानगर से राजकुमार गौड आदि। इन्हें जब टिकट नहीं मिला तो ये निर्दलीय के रूप में चुनाव में उतरे और पार्टी प्रत्याशी को हरा कर विधानसभा में भी आ गए। जब कांग्रेस सत्ता में आई तो ये निर्दलीय विधायक ही अशोक गहलोत का सबसे बड़ा सहारा साबित हुए। इन्होंने हर संकट में गहलोत का साथ दिया और आज तक उनके साथ बने हुए हैं।

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इस बार बीजेपी में बदला हुआ है सत्ता समीकरण

वर्ष 2018 के चुनाव में जो हालात कांग्रेस में थे, लगभग वैसे ही हालात इस बार बीजेपी में है। लगभग 15 वर्ष से अपने दम पर पार्टी चला रहीं वसुंधरा राजे वर्ष 2018 में मिली हार के बाद हाशिए पर चली गईं और राजस्थान बीजेपी का सत्ता समीकरण बदल गया। बीजेपी भी साढे़ चार वर्ष तक नेतृत्व को लेकर खींचतान से जूझती रही और अब हालात यह है कि परिवर्तन संकल्प यात्रा भी सामूहिक नेतृत्व में निकाली जा रही है। पार्टी के मौजूदा विधायकों में से करीब 15-20 राजे समर्थक माने जाते हैं। इनके अलावा कई ऐसे हैं जो पिछली बार चुनाव हार गए, लेकिन राजे के सिपहसालार बने रहे। विधायकों की बात करें तो इनमें पूर्व स्पीकर कैलाश मेघवाल, सूर्यकांता व्यास, प्रताप सिंह सिंघवी, कालीचरण सराफ, अशोक लाहोटी जैसे नाम शामिल हैं। वहीं हारे हुए नेताओं में युनूस खान, राजपाल सिंह शेखावत, अशोक परनामी, प्रहलाद गुंजल, रोहिताश्व शर्मा जैसे नाम शामिल हैं। इनमें से कैलाश मेघवाल और रोहिताश्व शर्मा ने मौजूदा प्रदेश नेतृत्व की इस हद तक आलोचना की कि पार्टी से निकलना पड़ा।

वसुंधरा राजे कितनों को टिकट दिलवाएंगी

पार्टी सूत्रों का कहना है कि हांलाकि, वसुंधरा राजे पार्टी के सबसे प्रमुख चेहरों में से एक हैं और टिकट तय करने में उनकी अहम भूमिका भी रहेगी, लेकिन यह वैसी नहीं होगी, जैसी पूर्व के चुनावों में रहती आई है। ऐसे में यह देखना रोचक रहेगा कि वे अपने कितने लोगों को टिकट दिलवा पाती हैं। पूरे प्रदेश में हर जिले में कुछ नाम ऐसे हैं जो वसुंधरा राजे से जुड़े रहे हैं। जयपुर, कोटा, उदयपुर, भरतपुर सम्भाग में इनकी संख्या ज्यादा है। ये सभी अपने टिकट के लिए पार्टी नेतृत्व के फैसले का इंतजार कर रहे हैं और यह तय है कि इनमें से जिन्हें टिकट नहीं मिला उनमें से कई निर्दलीय के रूप में ताल ठोकेंगे। इस बात के संकेत हाल में पूर्व स्पीकर कैलाश मेघवाल के बयानों और पूर्व मंत्री देवी सिंह भाटी के सीएम अशोक गहलोत से मुलाकात से भी मिले हैं। ये वो नेता हैं जो लम्बी राजनीतिक पारी खेल चुके हैं और अब जीरो रिस्क जोन में हैं, लेकिन जिन्हें अभी राजनीति करनी है, वे पार्टी के फैसले से पहले खुल कर सामने नहीं आ रहे हैं। हालांकि, उनकी तैयारी पूरी बताई जा रही है। अब इनमें से कितने सफल हो पाएंगे यह मतदाता तय करेंगे, लेकिन इन्होंने अपनी सीटों पर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाया तो बीजेपी के लिए परेशानी खड़ी हो सकती है।

हमेशा से ही राजनीति में अवसरवादिता

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक राजीव तिवारी मानते हैं कि राजनीति में अवसरवादिता तो पहले ही थी लेकिन अब टिकिट ना मिलने पर अपने समर्थकों को निर्दलीय खड़ा कराने की प्रवृत्ति भी दिखाई दे रही है और जिस तरह के हालात दिख रहे हैं उसमें इस बार यह प्रवृत्ति और बढ़ने की पूरी संभावना है। यह बीजेपी और कांग्रेस दोनों में देखने को मिलेगा।

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