ग्वालियर-चंबल के बीहड़ में ‘शेरों’ का दंगल
चुनावी मैदान में किसका मंगल किसका अमंगल?
BHOPAL. ग्वालियर चंबल का शेर अभी जिंदा है, लेकिन जंगल में उसका इलाका बदल दिया गया है। जिस तरह दूर देश से लाए चीते बदली हुई आबोहवा की शिकायत नहीं कर सकते। उसी तरह ये शेर भी जबरिया बदले गए इलाके पर शिकायत नहीं कर सकता। जिंदा हो तो जिंदा नजर आना जरूरी है सो रैली और सभाओं में नजर आ रहे हैं। ये बात अलग है कि अब उसूलों पर आंच आए तो भी टकराना मुश्किल है। वसीम बरहेलवी साहब का यही शेर पढ़कर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थामा था। हुंकार भी भर दी कि टाइगर अभी जिंदा है। उन्हें ये अंदाजा भी नहीं होगा कि अब वो ऐसी मांद के भीतर जा रहे हैं जहां शेरों का जमावड़ा है। और, जो पुराने शेर हैं वही ज्यादा भरोसेमंद माने जा रहे हैं। जन आशीर्वाद यात्रा में सिंधिया जिस तरह ग्वालियर चंबल से बाहर कर दिए गए हैं उसे देखकर तो यही लगता है कि सिंह ही असल किंग है।
ग्वालियर-चंबल में तोमर-सिंधिया का मनमुटाव साफ दिखाई दिया
यहां सिंह से मतलब शिवराज सिंह चौहान नहीं बल्कि, नरेंद्र सिंह तोमर है। जिनकी नाराजगी 2020 में बीजेपी की प्रदेश की सत्ता में वापसी कराने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया पर भारी पड़ गई है। जनदर्शन यात्रा के रथ पर सवार होकर सिंधिया भले ही गुर्रा रहे हों, लेकिन उनकी दहाड़ को दूसरे अंचल में सीमित कर दिया गया है। दबी जुबान में इसकी वजह नरेंद्र सिंह तोमर की नाराजगी को माना जा रहा है। होना तो ये था कि, नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया एक रथ पर सवार होकर एक मंच पर पहुंचते और संबोधित करते। तब जनता भी आती और आशीर्वाद भी मिलता, लेकिन कोशिशें इससे उलट ही साबित हुईं। बीते कुछ वक्त से दोनों एक दूसरे से आमना सामना टालते रहे। खासतौर से ग्वालियर चंबल, जहां दोनों नेताओं को एक नजर आना था वहां मनमुटाव साफ दिखाई दिया। हो सकता है आलाकमान के दरबार में दोनों ने अपने-अपने पक्ष में अर्जी भी लगाई हो। जहां पुराने साथी की अर्जी तो कबूल कर ली गई और नए साथी की अर्जी को ठुकरा कर उस पर अघोषित बैन भी लगा दिया गया।
धुर विरोधी रहे प्रभात झा से चर्चा भी बेकार नजर आ रही है
बीजेपी की जनदर्शन यात्रा को करीब से वॉच कर रहे हों तो पिछले कुछ दिनों का घटनाक्रम आपको भी चौंका देगा। उसके बाद अब आने वाली यात्राओं का शेड्यूल तो किसी इलेक्ट्रिक शॉक की तरह काम करेगा। ऐसे ही शॉक का सामना अभी सिंधिया तो कर रही रहे होंगे उनके समर्थक भी उस झटके से अछूते नहीं होंगे। जिस सिंधिया राजघराने ने बरसों ग्वालियर चंबल की जमीन पर राज किया और फिर सियासी पेचोंखम आजमाए उसी सिंधिया को बीजेपी ने फिलहाल ग्वालियर चंबल से बाहर कर दिया है। पार्टी बदलने के बाद सिंधिया ने पुराने भाजपाइयों के साथ मिलकर चलने के लिए खूब मेल मुलाकातें की। कुछ दिन पहले भी धुर विरोधी रहे प्रभात झा के घर पर चर्चा की, लेकिन नए डेवलेपमेंट के बाद ये सारी कवायदें बेकार ही नजर आ रही हैं।
जनदर्शन यात्राओं से तोमर की नदारदी के भी कई कारण
जनदर्शन यात्राओं पर से सीएम शिवराज सिंह चौहान का पेटेंट हटाने के बाद बीजेपी की प्लानिंग थी कि हर अंचल में वहां का दिग्गज नेता ही इस यात्रा की अगुवाई करेगा। चूंकी नरेंद्र सिंह तोमर पर पूरे प्रदेश की जिम्मेदारी है, इसलिए उनकी मौजूदगी भी ज्यादा दर्ज होनी थी, लेकिन पिछले कुछ समय से वो कई सभाओं और कार्यक्रमों से नदारद दिखाई दिए। हर बार उनकी गैरमौजूदगी का कारण उनकी तबियत का नासाज होना बताया गया।
इन कार्यक्रमों में साथ नजर नहीं आए तोमर और सिंधिया
- बीते दिनों सीएम शिवराज सिंह चौहान ग्वालियर में थे। जहां कई कार्यक्रम के साथ रोड शो निकाला गया, लेकिन इसमें नरेन्द्र सिंह तोमर नजर नहीं आए।
- रोड शो में सीएम के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया दिखे तोमर शामिल नहीं हुए।
- इसके बाद फूलबाग में हुए लाड़ली बहन योजना सम्मेलन में केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर शामिल हुए तो सिंधिंया नजर नहीं आए।
- राज्यमंत्री भारत सिंह की मां के निधन पर श्रद्धांजलि देने सीएम चौहान पहुंचे तो वहां नरेन्द्र तोमर साथ थे, लेकिन इसमें सिंधिया शामिल नहीं थे।
- एक सभा में सिंधिया पहुंचे, तोमर बहुत देर से शामिल होने पहुंचे।
महाराज बीजेपी और पुरानी बीजेपी के बीच खाई गहरी हुई
ग्वालियर चंबल अंचल में महाराज बीजेपी और पुरानी बीजेपी के बीच की खाई इतनी गहरी हो चुकी है कि बड़े नेताओं के पास भी उसका कोई तोड़ नहीं बचा है। बमुश्किल दो से तीन दिन पहले चुनाव प्रभारी भूपेंद्र यादव के सामने ही पुराने बीजेपी कार्यकर्ताओं का गुस्सा फूट पड़ा था। जिन्होंने यादव के सामने महाराज के समर्थकों के खिलाफ शिकायतों का अंबार लगा दिया। हालांकि, बीजेपी ने इस मामले पर चुप्पी साधी हुई है।
ग्वालियर-चंबल में यात्रा के शेड्यूल में सिंधिया का नाम नहीं दिखा
इसके बाद से बीजेपी की जनदर्शन यात्रा में कई बड़े बदलाव नजर आए। 11 सितंबर के बाद से ग्वालियर चंबल में हुई किसी यात्रा के शेड्यूल में सिंधिया का नाम शामिल नहीं दिखा। इसकी जगह उन्हें मालवा में हो रही यात्राओं में भेजा जा रहा है, जबकि दल बदल के दौरान मालवा के सिर्फ दो विधायक तुलसी राम सिलावट और मनोज चौधरी ही सिंधिया के साथ कांग्रेस में शामिल हुए थे। मालवा में सिंधिया की पकड़ उतनी मजबूत नहीं जितनी ग्वालियर चंबल में है, लेकिन अब नाराजगी और गहरी होने के डर से बीजेपी उन्हें वहां भेजने से कतराती नजर आ रही है। इसके बाद कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी रणदीप सुरजेवाला ने तो ये दावा कर दिया कि बीजेपी ने सिंधिया को ग्वालियर चंबल जाने से मना कर दिया है।
धीरे-धीरे तोमर-सिंधिया के बीच हालात खराब होते चले गए
ग्वालियर चंबल में हालात वाकई गंभीर हैं। सिंधिया को बीजेपी में लाने का श्रेय तोमर को भी जाता है, लेकिन धीरे- धीरे दोनों के बीच हालात खराब होते चले गए। जिसका असर नगरीय निकाय चुनाव में नजर आया। जहां ग्वालियर और मुरैना दोनों ही नगर निगम बीजेपी के हाथ से निकल गईं। चुनाव नजदीक आते-आते कार्यकर्ताओं में मनमुटाव और नाराजगी बढ़ी। जिसका नतीजा ये हुआ कि शिवराज सरकार की गेमचेंजिंग योजनाएं भी ग्वालियर चंबल में बेअसर साबित हो रही है। पीएम मोदी के दौरे भी इस अंचल में फाइनल नहीं हो पा रहे। इन हालातों को देखते हुए अंदाजा लगाया जा सकता है कि दिग्गजों वाले अंचल में बीजेपी के लिए फाइट कितनी टफ है।
बचे हुए दिनों में ग्वालियर चंबल में निकल रही रथ यात्राओं के चेहरे कौन होंगे ये देखना भी दिलचस्प होगा।
बीजेपी के अपने ही उस रणनीति की हवा निकाल रहे हैं
2020 में दलबदल के बाद बीजेपी की सरकार तो बनी लेकिन ग्वालियर चंबल सहित कुछ और सीटों पर बीजेपी के लिए हालात खराब होते गए। विचारधारा और अनुशासन वाली पार्टी में विचार बेमेल होते गए और अनुशासन वक्त के साथ लचर होता गया। अब हालात ये हैं कि बीजेपी बार-बार रणनीति बदलकर चुनाव प्रचार के लिए उतर रही है लेकिन उसके अपने ही उस रणनीति की हवा निकाल रहे हैं। जनदर्शन में किए गए बड़े बदलाव इस बात का इशारा है कि बड़े नेताओं के नाम के बीच जुड़ रहे बनाम को इरेज करने का कोई टूल फिलहाल पार्टी के नेताओं के हाथ नहीं लगा है।