अरुण तिवारी, BHOPAL. आने वाले 3 दिसंबर को भले ही ईवीएम चुनाव नतीजे उगलेगी लेकिन नतीजे तय होने में सिर्फ 39 दिन बाकी हैं। 17 नवंबर को जनता अपना फैसला ईवीएम में कैद कर देगी। अब असली तौर पर अग्निपरीक्षा का दौर शुरु हो गया है। यहां से वक्त एक-एक दिन किसी को एक-एक कदम सत्ता के पास ले जाएगा तो कोई एक-एक कदम सत्ता से दूर होता जाएगा। आने वाले 39वें दिन में यह तय हो जाएगा कि एमपी के मन में मोदी हैं या फिर कमल के बदले कमलनाथ आने वाले हैं।
आपस में टकराएंगे इन घोषणाओं के तीर
अब हम आपको बताते हैं कि बीजेपी और कांग्रेस के योद्धाओं के तरकश में कौन-कौन से तीर हैं जो आपस में टकराने वाले हैं। कौन सा तीर ब्रह्मास्त्र का काम करेगा और कौन सा बम टांय-टांय फिस्स होगा।
शिवराज के धनुष से निकले बाण
- सवा करोड़ से ज्यादा लाड़ली बहना को हर महीने 1250 रुपए।
- इन लाडली बहनों को 450 रुपए में एलपीजी सिलेंडर।
- किसानों के कर्ज का ब्याज माफ किया।
- कर्मचारियों का महंगाई भत्ता केंद्र के समान किया
- आशा-उषा कार्यकर्ता, रोजगार सहायक, अतिथी शिक्षक, पंचायतकर्मी,अतिथी विद्वान समेत संविदाकर्मी के वेतन में इजाफा
- एक लाख को नौकरी, टॉपर्स के लैपटॉप और स्कूटी
कमलनाथ के तरकश में तीर
- 1500 रुपए महिलाओं के खाते में हर महीने
- 500 रुपए में गैस सिलेंडर
- पांच हॉर्स पॉवर के सिंचाई पंप को मुफ्त में बिजली
- किसानों के पुराने बिजली के बिल माफ
- 100 यूनिट बिजली माफ, 200 यूनिट हाफ
- एनपीएस की जगह ओपीएस लागू
मोदी-शाह के साथ भाई-बहन का मुकाबला
मध्यप्रदेश में सीधा मुकाबला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के साथ भाई-बहन यानी राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के बीच है। बीजेपी की पूरी ताकत मोदी और शाह ही हैं। जिस तरह बीजेपी के थीम सांग में एमपी के मन में मोदी से साफ हो गया कि चेहरा सिर्फ मोदी हैं। अमित शाह ने टिकट की तीन सूची जारी कर अपना दखल और दबदबा दोनों दिखा दिया। मोदी और शाह की सभाएं भी मध्यप्रदेश में एक के बाद एक होती आ रही हैं। वहीं कांग्रेस की कमान राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के हाथों में है। प्रियंका ने जबलपुर, ग्वालियर, मोहनखेड़ा में जनता की नब्ज पर हाथ रखने की कोशिश की और योजनाओं की गारंटी दी तो राहुल गांधी ने शाजापुर में किसानों के साथ ओबीसी की नब्ज को थामा।
एक तरफ कमलनाथ, दूसरी तरफ सिर्फ कमल
इस बार के चुनाव में एक बात अलग तरह की है। कांग्रेस हमेशा से चुनाव के बाद सीएम तय करती रही है। चुनाव में उसका सीएम फेस नहीं होता लेकिन इस बार कांग्रेस का मुख्यमंत्री चेहरा कमलनाथ पहले से ही घोषित हैं। दूसरी तरफ बीजेपी चेहरे पर चुनाव लड़ती है लेकिन इस बार कोई चेहरा नहीं है बल्कि सिर्फ चुनाव चिन्ह कमल है। 79 टिकट बांटकर बीजेपी कांग्रेस से आगे निकल गई है तो उसे अंदरुनी विरोध का सामना भी करना पड़ा है। टिकट की सूची में आठ दिग्गजों जिनमें सात सांसद और एक राष्ट्रीय महासचिव हैं। इन सात सांसदों में तीन केंद्रीय मंत्री भी शामिल हैं।
इस सूची से ये साबित हो गया है कि बीजेपी आर-पार की लड़ाई लड़ रही है। वहीं कांग्रेस अभी टिकट के मंथन की प्रक्रिया ही कर रही है। कांग्रेस के साथ बड़ी बात ये है कि उसके पाले में बीजेपी के बड़े नेता आ गए हैं जो चुनाव लड़ते नजर आ सकते हैं। इनमें दीपक जोशी,भंवरसिंह शेखावत, वीरेंद्र रघुवंशी जैसे नेता शामिल हैं। बीजेपी ने जनआशीर्वाद यात्रा निकाली तो उसके जवाब में कांग्रेस ने जन आक्रोश यात्रा निकालकर जनता के बीच माहौल् बनाने की कोशिश की।
बीजेपी में बगावत,कांग्रेस के कुनबे में कलह
ये सारी कहानी पर्दे के सामने की है तो पर्दे के पीछे भी एक कहानी है। इस कहानी के किरदार अपनी-अपनी भूमिकाएं तलाश रहे हैं। बीजेपी के सामने बगावत का संकट है। अमित शाह ने टिकट के सारे सूत्र अपने हाथों में रखे हुए हैं। किसका टिकट कटेगा किसका बचेगा और कौन कहां से चुनाव लड़ेगा ये सूची जारी होने के बाद ही पता चल रहा है। जिस तरह से पिछली सूची में बड़े नेताओं के नाम आने के बाद उन्होंने हैरानी जताई इससे ये साफ जाहिर हो रहा है कि इस बार बड़े प्रयोग हो रहे हैं वे भी गुपचुप तरीके से। इन प्रयोगों से प्रदेश के नेताओं में अंदरुनी तौर पर कसमसाहट है। वहीं टिकट के बाद नजर आ रहे विरोध ने मुश्किलें बढ़ा दी हैं। पार्टी के बड़े नेता कांग्रेस में शामिल होकर उनके खिलाफ ही ताल ठोंक रहे हैं। कुछ नेता आम आदमी पार्टी में शामिल होकर उनके ही वोट कटवा साबित होने वाले हैं।
वहीं कांग्रेस के कुनबे की कलह कोई नई नहीं है। जन आक्रोश यात्रा के सात चेहरों के जरिए इस आग पर मिट्टी डालने का काम किया गया। लेकिन उसमें भी दिग्विजय सिंह और उनके पुत्र जयवर्धन सिंह का नाम और चेहरा न होने से विवाद की स्थिति बन गई। वहीं टिकट को लेकर आपसी सहमति नहीं बन पा रही है। स्क्रीनिंग कमेटी में सुरेश पचौरी, अरुण यादव और अजय सिंह शामिल हो गए हैं। स्क्रीनिंग कमेटी की कई बैठकों के बाद भी उम्मीदवार के सिंगल नाम तय नहीं हो पाए हैं। वहीं युवा नेता दिल्ली जाकर बड़े पदों पर अपना नियुक्ति पत्र ला रहे हैं। प्रदेश में प्रभारी बनाकर सांसद रणदीप सुरजेवाला को भेजा गया है। लेकिन अंदरुनी तौर पर सुरजेवाला के साथ भी स्थिति सहज नहीं है।