RAIPUR. छत्तीसगढ़ में चुनाव से पहले धान खरीदी के मसले पर बीजेपी और कांग्रेस में जबरदस्त जुबानी जंग चल रही है। दोनों की पार्टियां धान खरीदी का श्रेय लेने में लगी हैं। इसी बीच शुक्रवार को रायपुर में बीजेपी ने 'मोदी की गारंटी' नाम से अपना घोषणा पत्र जारी किया। घोषणा पत्र जारी करते हुए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने किसानों और धान खरीदी को लेकर सबसे बड़ा वादा किया। अमित शाह ने कहा कि बीजेपी की सरकार 21 क्विंटल प्रति एकड़ धान 3100 रुपए के मूल्य से खरीदेगी और एकमुश्त भुगतान करेगी। इस तरह जब दोनों ही पार्टियों में धान खरीदी की रकम का क्रेडिट लेने की होड़ मची है तो सवाल तो उठता है कि यह पूरा मामला क्या है।
छत्तीसगढ़ की सत्ता चॉबी है धान
सबसे पहले बात करते हैं छत्तीसगढ़ के भौगोलिक क्षेत्रफल और कुल फसली क्षेत्र की। छत्तीसगढ़ का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल है 136.03 लाख हेक्टेयर और अनुमानित फसली क्षेत्र 56.44 लाख हेक्टेयर है। छत्तीसगढ़ प्रमुख रूप से खरीफ फसल प्रधान राज्य है, जिसके 83% क्षेत्र में खरीफ और मात्र 17% क्षेत्र में रबी फसलें उगाई जाती हैं। छत्तीसढ़ की सत्ता चाबी धान है क्योंकि यहां मूल रूप से धान की ही खेती की जाती है और इसीलिए छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है। धान की खरीदी छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी विपणन संघ यानि 'मार्कफेड' के माध्यम से होती है। मार्कफेड राज्य सरकार के सहकारिता विभाग की एक एजेंसी है जो किसानों को धान का बीज और जरूरी खाद खरीदने के लिए ब्याज रहित कर्ज देती है। किसान क्रेडिट कार्ड के जरिए सहकारी साख समितियों से अपनी खेती के लिए खाद, बीज और नगद राशि बिना किसी ब्याज के ले सकते हैं। इन्हीं समितियों के माध्यम से मार्कफेड किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी मिनिमम सपोर्ट प्राइज यानी एमएसपी पर धान खरीदता है। छत्तीसगढ़ में अभी ऐसी 2739 समितियां हैं। यानि धान बीज और खाद देने से लेकर धान की खरीदी तक का पूरा नियंत्रण राज्य सरकार के पास होता है।
धान की कस्टम मिलिंग
अब बात करते हैं धान की कस्टम मिलिंग की। मार्कफेड अपनी 2739 समितियों की मदद से धान की खरीदी करता है। खरीदी गई धान को चावल बनाने के लिए राइस मिलर्स को दिया जाता है। प्रदेश में 1500 से अधिक राइस मिलर्स रजिस्टर्ड हैं जिन्हें धान को प्रोसेस कर चावल बनाने के लिए दिया जाता है। इसके लिए 40 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से भुगतान होता है जिसे मार्कफेड के माध्यम से राज्य सरकार करती है। प्रोसेसिंग में माना जाता है कि धान का केवल 55 से 70 प्रतिशत हिस्सा ही चावल में तब्दील हो पाता है। बाकी हिस्सा भूसा और टूटन के रूप में वेस्ट में चला जाता है। छत्तीसगढ़ सरकार ने मिलर्स को अरवा धान के एक क्विंटल के बदले 67 किलो और उसना धान के एक क्विंटल धान के बदले 68 किलो वापस करने का आदेश दे रखा है। तय मात्रा के हिसाब से चावल बनाकर मिलर्स को राज्य सरकार को वापस लौटाना होता है।
चावल जमा करके एमएसपी ऐसे होती है रिलीज
अब जानते हैं कि राज्य सरकार चावल जमा करके एमएसपी कैसे रिलीज करती है। राज्य सरकार यह चावल सीधे खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम (नान) को 40% और 60% सेंट्रल पूल के लिए फूड कार्पोरेशन ऑफ इंडिया में जमा कराती है। चावल जमा होने के बाद एमएसपी के आधार पर खरीदे गए धान की कीमत रिलीज की जाती है। इसी पैसे से राज्य सरकार धान खरीदी के लिए लिया गया कर्ज चुकाती है।
राज्य और केंद्र दोनों ओर से सियासी खेल
अब धान खरीदी को लेकर बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं के बयानों की पड़ताल करें तो समझ आएगा कि किसानों के रजिस्ट्रेशन से लेकर बीज, खाद और कर्ज देने से लेकर धान खरीदकर चावल बनाने की प्रक्रिया पूरी तरह राज्य सरकार की एजेंसी मार्कफेड करती है, लेकिन आखिर में केंद्र सरकार के तय पैमाने पर प्रति क्विंटल धान के बदले 67 और 68 किलो चावल जमा करने पर ही एमएसपी के रूप में धान का भुगतान होता है, लेकिन ज्यादातर लोग यहीं कन्फ्यूज हो जाते हैं। चूंकी भुगतान चावल जमा होने के बाद होता है इसलिए लोग इसे चावल की कीमत समझ लेते हैं। यानी धान खरीदी में राज्य और केंद्र सरकार का अपना-अपना क्राइटेरिया और नियम होता है। नियम के हिसाब से देखा जाए तो राज्य सरकार के दावे सिर्फ दावे हैं। वैसे आपको बता दें कि धान खरीदी नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट यानी एनएफएसए से जुड़ी है, जिसे केंद्र सरकार नियंत्रित करती है। साल 2013 में केंद्र की यूपीए सरकार एनएफएसए लेकर आई थी। ताकि खरीदी प्रक्रिया को आसान बनाया जा सके और अब प्रक्रिया की सरलता को छोड़कर राज्य और केंद्र सरकार सियासी खेल रही हैं।
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यह कहते हैं पीएम मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि धान का एक-एक दाना केंद्र सरकार खरीदती है, भूपेश बघेल झूठ बोलते है। पीएम ने 30 सितंबर से लेकर अब तक हुई 4 सभाओं में हर बार यही बात दोहराई है।
यह कहते हैं सीएम भूपेश
सीएम भूपेश बघेल मार्कफेड जो कर्ज लेकर धान खरीदी करता है, उस प्रोसेस को बताकर कहते हैं कि राज्य सरकार धान खरीदती है। मोदी और भूपेश दोनों का अपनी अपनी जगह सहीं लेकिन सच छुपा है इन दोनों बातों के बीच कहीं ।
यह बोल गए थे जयराम रमेश
बीते दिनों कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इस बात को स्वीकार किया था कि धान खरीदी के लिए पैसा तो केंद्र सरकार ही देती है, फिर वादे के अनुसार बचा हुआ पैसा राज्य सरकार मिलाती है। हालांकि कांग्रेस ने इस बयान के डैमेज कंट्रोल करने की भी कोशिश की।
सच क्या है...
किसानों के रजिस्ट्रेशन से लेकर बीज, खाद और कर्ज देने से लेकर धान खरीदकर चावल बनाने की प्रक्रिया पूरी तरह राज्य सरकार की एजेंसी मार्कफेड करती है। लेकिन फाइनली केंद्र द्वारा तय पैमाने पर प्रति क्विंटल धान के बदले 67 और 68 किलो चावल जमा करने पर भुगतान धान का होता है, एमएसपी के रूप में। लेकिन ज्यादातर लोग यही कन्फ़यूज होते हैं, चूंकी भुगतान चावल जमा होने के बाद होता है इसलिए लोग इसे चावल की कीमत समझ लेते हैं।