नितिन मिश्रा, RAIPUR. छत्तीसगढ़ में किसानों ने लॉकडाउन में येलो और पिंक मशरूम की खेती की। तमिलनाडु की एक यूनिवर्सिटी ने इन मशरूम पर रिसर्च की है। जिसमें पता चला है कि इन मशरूम्स में कैंसर से लड़ने की क्षमता है। अब इन मशरूम्स को उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र के शहरों में भी सप्लाई किया जा रहा है। वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि मशरूम वेजिटेरियन लोगों के लिए प्रोटीन का सबसे अच्छा माध्यम है।
तमिलनाडु की युनिवर्सिटी ने की रिसर्च
छत्तीसगढ़ में उगाए जा रहे येलो और पिंक मशरूम पर तमिलनाडु की पेरियार यूनिवर्सिटी ने रिसर्च की है। जिसमें पिंक मशरूम में कैंसर से लड़ने वाले तत्वों की मौजूदगी का पता चला है। बॉयोकेमिस्ट्री डिपार्टमेंट के पीएचडी रिसर्च स्कॉलर अमल जनार्दनम ने इन मशरूम्स पर रिसर्च की है। उन्होंने रिसर्च में पाया कि इसमें एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी तत्व हैं। शरीर का इम्यून सिस्टम जब सही ढंग से काम नहीं कर पाता, तो इस स्थिति में इंफ्लेमेशन कम होने लगता है। जबकि ऑटो इम्यून रिस्पांस को ठीक रखने के लिए इंफ्लेमेशन का ठीक रहना जरूरी है। पिंक मशरूम में इंफ्लेमेशन को ही बूस्ट करने के गुण पाए गए हैं। इसीलिए रंगीन मशरूम कई बीमारियों के साथ कैंसर में भी राहत दे रहे हैं।
कोरोना काल की मेहनत ने दी नई पहचान
किसानों की कोरोना काल की मेहनत ने उन्हें नई पहचान दी है। अब नए किसानों को भी कलरफुल मशरूम उगाने की ट्रेनिंग दी जा रही है। गुलाबी मशरूम को उगने में 15 से 20 दिन का समय लगता है। जबकि येलो मशरूम को उगाने के लिए ठंडक चाहिए होती है। कलरफुल मशरूम की डिमांड लगातार बढ़ते से रोजगार मिल रहा है। मशरूम्स का उपयोग ड्राई फॉर्म में बनाकर बिस्किट और बडी बिजौरी भी बनाई जा रहीं है।
इन जगहों पर हो रही खेती
राजनांदगांव, नवा रायपुर के तेंदुवा, बसना, अभनपुर और धमतरी ने इन मशरूम्स की खेती की जा रही है।